राजस्थान
राजस्थान विश्वविद्यालय में ’’राष्ट्र-अभ्युदय एवं भारतीय ज्ञान परम्परा के संवाहक महर्षि दयानन्द सरस्वती
Tara Tandi
15 March 2024 10:01 AM GMT
x
जयपुर । राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा भारतीय संस्कृति और राष्ट्रोत्थान के लिए किए कार्यों से प्रेरणा लेने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे नई पीढ़ी को स्वामी दयानंद सरस्वती जी के विचार-अवदान से संस्कारित करते हुए समाजोत्थान में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करें। उन्होंने स्वामीजी द्वारा "वेदों की ओर लौटें" नारे के आलोक में उनके विचारों को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वेदोद्धारक के रूप में अंधविश्वास, सामाजिक रूढियों और कुरुतियों के निवारण में स्वामीजी ने जो भूमिका निभाई, उसे जन जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है।
श्री मिश्र शुक्रवार को राजस्थान विश्वविद्यालय के मानविकी सभागार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ’’राष्ट्र-अभ्युदय एवं भारतीय ज्ञान परम्परा के संवाहक महर्षि दयानन्द सरस्वती’’ में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद जी क्रांतिकारी समाज सुधारक और विचारक थे।
राज्यपाल ने कहा कि राजस्थान स्वामी जी की कर्मभूमि रहा हैं। यहीं उन्होंने "सत्यार्थ प्रकाश" की रचना की और यहीं उन्होंने अजमेर में परोपकारिणी सभा का गठन किया। सामाजिक कुरीतियों के निवारण के साथ महिला शिक्षा के लिए भी उन्होंने क्रांतिकारी कदम उठाएं।
श्री मिश्र ने कहा कि महर्षि दयानंद जी ने आजादी से पहले ही शिक्षा में नवाचार अपनाते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाने की बात कही थी। उन्होंने स्वामीजी के वैज्ञानिक चिंतन की चर्चा करते हुए कहा कि वैदिक संस्कृति के सूत्रों के सहारे उन्होंने पूरे विश्व को यह बताया कि भारत सभी क्षेत्रों में विश्वगुरु है। उन्होंने कहा कि कर्मकांड से इतर स्वामीजी ने वेदों को विज्ञान से जोड़ते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाया। उन्होंने नई शिक्षा नीति के संदर्भ में महर्षि दयानद सरस्वती के उस शैक्षिक चिंतन को आगे बढ़ाए जाने पर जोर दिया, जिसमें कहा गया है कि शिक्षा से ही मनुष्य में विद्यमान अज्ञानता, कुटिलता तथा बुरी आदतों से छुटकारा मिलता है।
मुख्यवक्ता के रूप में सारस्वत अतिथि गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमदेव शतांशु ने महर्षि दयानंद सरस्वती के वैदिक चिंतन, उनके सामाजिक सुधारों और कार्यों की चर्चा करते हुए कहा कि वह ऐसे ऋषि थे जिन्होंने भारत की ज्ञान परंपरा को व्यावहारिक रूप में जन जन के लिए व्याख्यायित किया। उन्होंने स्वामीजी द्वारा शिक्षा सुधार, हिंदी को बढ़ावा देने और स्वराज के लिए किए उनके कार्यों से प्रेरणा लेने का आह्वान किया। उन्होंने दयानंद जी के साहित्य, वेद व्याख्याओं और तर्क शास्त्र के जरिए भारतीय विज्ञान से जुड़े योगदान के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अल्पना कटेजा ने स्वामीजी के विचारों को युगानुकुल बताते हुए उनके योगदान से नई पीढ़ी को जोड़े जाने के लिए विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल में इसे ले जाकर मूर्त रूप देने का विश्वास दिलाया।
संगोष्ठी के संयोजक प्रो. राजेश कुमार पुनिया ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी। आर्य प्रतिनिधि सभा राजस्थान के प्रधान श्री किशन लाल गहलोत ने सभी का आभार जताया।
राज्यपाल श्री मिश्र ने इस अवसर पर श्री वसंत जेटली और डॉ. राजेश्वरी भट्ट को उनके संस्कृत में योगदान के लिए सम्मानित भी किया। उन्होंने आरंभ में संविधान की उद्देशिका का वाचन करवाया और मूल कर्तव्यों को पढ़कर सुनाया।
Tagsराजस्थान विश्वविद्यालयराष्ट्र-अभ्युदयभारतीय ज्ञान परम्परासंवाहक महर्षिदयानन्द सरस्वतीRajasthan UniversityRashtra-AbhyudayaIndian Knowledge TraditionCarrier MaharishiDayanand Saraswatiजनता से रिश्ता न्यूज़जनता से रिश्ताआज की ताजा न्यूज़हिंन्दी न्यूज़भारत न्यूज़खबरों का सिलसिलाआज की ब्रेंकिग न्यूज़आज की बड़ी खबरमिड डे अख़बारJanta Se Rishta NewsJanta Se RishtaToday's Latest NewsHindi NewsIndia NewsKhabron Ka SilsilaToday's Breaking NewsToday's Big NewsMid Day Newspaperजनताjantasamachar newssamacharहिंन्दी समाचार
Tara Tandi
Next Story