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रथ यात्रा के नौ वें दिन यानी एकादशी के दिन घुरती रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. जिसे लोग रथ मेला के नाम से जानते हैं. घुरती रथ यात्रा के दिन भी सुबह से ही मौसीबाड़ी मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. पूरा परिसर जय जगरनाथ के नारे से गूंजता रहा. भगवान नौ दिनों तक मौसीबाड़ी में रहने के बाद घुरती रथ यात्रा के दिन अपने घर लौटते हैं. श्रद्धालु रथ को खींच कर मौसीबाड़ी से जगरनाथपुर मंदिर तक ले जाते हैं.
मौसीबाड़ी मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता
एकादशी के दिन राजधानी में जगन्नाथ मंजिर जयकारों से गूंज उठा. जहां जगन्नाथ रथ यात्रा के नौवे दिन घुरती रथ मेले का आयोजन किया गया. नौ दिनों तक मौसीबाड़ी में रहने के बाद भगवान घुरती रथ मेले के दिन अपने मुख्य मंदिर पहुंचते हैं. जहां नौ दिनों तक मौसीबाड़ी में विधि विधान से पूजा के बाद रथ पर सवार होकर भगवान जगन्नाथ, भ्राता बलभद्र और माता सुभद्रा मुख्य मंदिर लौट जाते हैं. ऐसे में इस दिन मेले की रौनक देखते ही बनती है. मान्यता है कि मंदिर में नौ दिन बाद जब भगवान अपने भाई बहन के साथ लौटते हैं तो उस दौरान माता लक्ष्मी उनसे नाराज होती हैं.
मेले का साल भर रहता है इंतजार
लगभग नौ से दस दिनों तक चलने वाले इस मेले का राजधानी रांची के साथ-साथ आस-पास के लोगों को खूब इंतजार रहता है. क्योंकि इस रथ यात्रा के दौरान भक्ति के साथ-साथ लोगों को रोजगार का जरिया भी मिलता है. इस मेले में हजारों की संख्या में लोग आते हैं. मंदिर में आस्था का सैलाब उमड़ता है. मेले में आने वाले लोग पूजा के साथ साथ खरीदारी करना नहीं भूलते. इस मेले में बच्चों के मनोरंजन के सभी साधन होते हैं. चारों तरफ नजर दौरान आप को ये परिसर अपनी ओर आकर्षित करता रहेगा. घुरती रथ मेला के समापन के साथ ही अगले रथ मेले का इंतजार शुरु हो जाता है. इस मेले की भव्यता और इसकी सुंदरता को आनंद लेने हर साल कई जिलों से लोग रांची पहुंचते हैं.
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