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जयपुर। मांड गायन से धोरो की धरती और रेगिस्तानी क्षेत्र का मस्तक ऊंचा हो जाता है। शुक्रवार की शाम कृष्णायन सभागार में इस मांड गायन की मिठास घुल गई। मौका था जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित मांड गायकी कार्यशाला के समापन समारोह का। कार्यशाला में 45 प्रतिभागियों ने प्रसिद्ध मांड गायक और प्रशिक्षक अली मोहम्मद-गनी मोहम्मद के साथ मंच साझा किया और हारमोनियम, तबला और सारंगी के साथ राजस्थानी गीत गाए। इस मधुर प्रस्तुति का दर्शकों ने खूब लुत्फ उठाया. इस दौरान जवाहर कला केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत और बड़ी संख्या में कला प्रेमी मौजूद रहे. कार्यक्रम में युवक-युवतियां पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए. प्रस्तुति की शुरुआत 'केसरिया बालम, पधारो म्हारे देश' से हुई.
नायक-नायिका के बीच प्रेम भरे संवाद को व्यक्त करने वाले गीत 'बन्ना नाथ म्हारी भेजाई रे' तथा विरह भाव से भरे गीत 'म्हारा सजनिया रे', 'अरे ओलुड़ी घाणी आवे रे' भी प्रस्तुत किए गए। प्रतिभागियों ने मनवर गीत 'बन्ना थानै चंद बदाणी परनावां' समेत कई गीतों से महफिल सजाई। तबले पर परमेश्वर कथक और सारंगी पर अमीरुद्दीन ने संगत की। मांड गायन सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध नजर आए। हर गाने के बाद सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। प्रतिभागियों ने कार्यशाला से जुड़े अपने अनुभव भी साझा किये। उन्होंने कहा कि मांड गायन प्रदेश की गौरवशाली संस्कृति का हिस्सा है, कार्यशाला के माध्यम से उन्हें इससे जुड़ने का अवसर मिला। गौरतलब है कि जवाहर कला केंद्र की ओर से 10 दिवसीय मांड गायन कार्यशाला का आयोजन किया गया था. इसमें अली मोहम्मद व गनी मोहम्मद ने प्रतिभागियों को मांड गायन के गुर सिखाए।
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