राजस्थान

शाम 4 बजे 'शांतिदूत' सुब्बाराव का किया जाएगा अंतिम संस्कार

Shantanu Roy
28 Oct 2021 8:05 AM GMT
शाम 4 बजे शांतिदूत सुब्बाराव का किया जाएगा अंतिम संस्कार
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सुदूर दक्षिण से आए युवक ने 70 के दशक में बागी समर्पण का सूत्रधार बनकर न केवल महात्मा गांधी के हिंसा पर अहिंसा की जीत के सिद्वांत को प्रतिपादित कर दिखाया, बल्कि चंबल अंचल के हिंसाग्रस्त जीवन में शांति सद्भाव के शीतल मंद सुगंध युक्त झोके भी प्रवाहित भी किया.

जनता से रिश्ता। सुदूर दक्षिण से आए युवक ने 70 के दशक में बागी समर्पण का सूत्रधार बनकर न केवल महात्मा गांधी के हिंसा पर अहिंसा की जीत के सिद्वांत को प्रतिपादित कर दिखाया, बल्कि चंबल अंचल के हिंसाग्रस्त जीवन में शांति सद्भाव के शीतल मंद सुगंध युक्त झोके भी प्रवाहित भी किया. अंचल में शांति स्थापित करने वाले डॉ. एसएन सुब्बाराव 'भाईजी' (Dr. SN Subbarao) का बुधवार सुबह राजस्थान के जयपुर में निधन हो गया. बुधवार शाम सुब्बाराव का पार्थिव शरीर मुरैना में गांधी आश्रम में लाया गया. आज याने गुरुवार को सुब्बाराव का अंतिम संस्कार (Subbarao Funeral) शाम 4 बजे किया जाएगा.

गुरुवार को शाम चार बजे गांधीवादी विचारक डॉ. एसएन सुब्बाराव का अंतिम संस्कार किया जाएगा. अंतिम संस्कार में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी शामिल होंगे. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सुब्बाराव के निधन पर शोक जताया था. उन्होंने कहा इसे अपूरणीय क्षति बताया है. पद्मश्री से सम्मानित सुब्बाराव को तबीयत खराब होने पर कुछ दिन पहले यहां एसएमएस (सवाई मानसिंह) अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
डॉक्टर एसएन सुब्बाराव जवाहरलाल नेहरू के सलाहकार के रूप में काम करते थे और उनके बहुत नजदीक थे. 60 के दशक में सुब्बाराव कांग्रेस के राष्ट्रीय सेवा दल के को-ऑर्डिनेटर भी थे. नेहरू जी के सलाहकार होने के नाते चंबल अंचल में सिंचाई के लिए शुरू की जाने वाली नहर परियोजना का अवलोकन करने मुरैना जिले में आए थे. इसी दौरान उन्होंने चंबल अंचल की समस्या को जाना और समझा तथा उसके निराकरण के लिए काम करना शुरू किया. राहुल गांधी ने भी उनके निधन पर दुख जताया.
डकैतों को समर्पण के लिए किया था प्रेरित
डॉक्टर एसएन सुब्बाराव ने जौरा में नहर परियोजना के अवलोकन के समय समाज के लोगों के साथ 10 समस्या के उन्मूलन के लिए विचार-विमर्श शुरू किया. इस दौरान उन्होंने डकैतों से भी प्रत्यक्ष रूप से संबंध स्थापित किए. डकैतों को समाज की मुख्यधारा में वापस लौटने के लिए प्रेरित किया. इसके साथ उन्होंने डकैतों को शासन और प्रशासन से हर संभव मदद दिलाने का काम किया. उसका परिणाम ये हुआ कि सन 1972 में दो चरणों में 672 इनामी डकैतों का आत्मसमर्पण कर लिया.


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