राजस्थान

Jhunjhunu: रावण दहन की 400 साल पुरानी परंपरा पर लगी रोक, जानिये मामला

Tara Tandi
11 Oct 2024 9:10 AM GMT
Jhunjhunu: रावण दहन की 400 साल पुरानी परंपरा पर लगी रोक, जानिये मामला
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Jhunjhunu झुंझुनू: दशहरे के मौके पर जहां देशभर में रावण के पुतलों का दहन किया जाता है वहीं राजस्थान के झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी कस्बे में एक अनोखी परंपरा के चलते रावण के पुतले के साथ-साथ उसकी सेना पर बंदूकों से फायरिंग की जाती है। यह दादूपंथी समाज की 400 साल पुरानी परंपरा है लेकिन इस बार पुलिस ने नए कानूनी प्रावधान के तहत इसकी अनुमति नहीं दी है, इसलिए इस बार धनुष-बाण से ही रावण के पुतले का दहन होगा।
400 सालों से है झुंझुनू में परंपरा
जिले के उदयपुरवाटी कस्बे में बसे दादूपंथी समाज के लोग एक अनोखी परंपरा निभाते हैं। यह परंपरा दशहरा उत्सव के दौरान रावण दहन की है, जिसमें बंदूकों से फायरिंग की जाती है। यह आयोजन जमात क्षेत्र में होता है और दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। नवरात्रि के शुरू होते ही दादूपंथियों का दशहरा उत्सव भी शुरू हो जाता है, जिसका आगाज जमात स्कूल के बालाजी महाराज मंदिर में ध्वज फहराकर किया जाता है। नवरात्रि के पहले दिन से चांदमारी क्षेत्र में परंपरागत तरीके से बंदूकों से रिहर्सल की जाती है, जो उत्सव की भव्यता को दर्शाती है।
उत्सव में होता है विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
दशहरा उत्सव के दौरान दादूपंथी समाज में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। शस्त्र पूजन और कथा-प्रवचन के बाद, विजय पताका फहराने के लिए रणभेरी, नोबत, ढोल-ताशा और झाल की ध्वनियां गूंजती हैं। हर रोज दुर्गा सप्तशती और दादूवाणी के पाठ, चांदमारी की रस्म, श्री दादू मंदिर और बालाजी मंदिर में विशेष आरती का आयोजन होता है। इसके अलावा रसोई पूजा, चादर दस्तूर, सवामणी-प्रसाद और अधिवेशन जैसे कार्यक्रम भी होते हैं, जो समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को दर्शाते हैं।
दादूपंथी समाज के दशहरा महोत्सव में रावण की सेना देखने के लिए भारी भीड़ जमा होती है। इस अनोखे आयोजन में रावण दहन के दौरान मिट्टी के मटकों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें सफेद रंग से रंगा जाता है. ये मटके एक-दूसरे के ऊपर इस तरह से रखे जाते हैं कि रावण के दोनों तरफ उसकी सेना दिखाई देती है। आयोजन के दौरान सबसे पहले रावण की सेना पर गोलियां दागी जाती हैं, इसके बाद रावण पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई जाती हैं, जिससे वह जल जाता है। यह अनोखी परंपरा समाज की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है और लोगों को आकर्षित करती है।
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