कोटा: जागो ग्राहक जागो...का नारा ऐसा चला कि अब ग्राहक जागने लगे हैं। इसका अंदाजा जिला उपभोक्ता आयोग में लगातार बढ़ रहे मामलों से लगाया जा सकता है। आयोग में मामले अधिक होने से उनके शीघ्र निस्तारण के लिए अब दो आयोग की मांग होने लगी है। कम्पनियां व दुकानदार अपने सामान को बेहतर बताकर ग्राहक को बेचता है। ग्राहक उन पर विश्वास कर सामान खरीदता है। कम्पनी व दुकानदार सामान बेचते समय ग्राहक को कई तरह की सर्विस नि:शुल्क देने का वादा भी करते हैं। लेकिन हकीकत उस सामान का उपयोग करने पर पता चलती है। सामान में डिफेक्ट होने या कम्पनी द्वारा किए गए वादे पर खतरा नहीं उतरने पर ग्राहक जब दुकानदार या कम्पनी के पास जाता है तो उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसका कारण कम्पनी व दुकानदार द्वारा अपनी सर्विस का कहीं भी आॅनलाइन रिकॉर्ड नहीं होना होता है। ऐसे में कम्पनी व दुकानदार द्वारा सेवा में कमी करने या ग्राहक को संतुष्ट नहीं कर उनसे नि:शुल्क के बदले शुल्क लेकर भी सही काम नहीं करने पर लोगों को उपभोक्ता अदालत में परिवाद पेश करने पड़ते हैं। कम्पनी व दुकानदार की सेवा में कमी और ग्राहक को नुकसान होने का ही परिणाम है कि कोटा की जिला उपभोक्ता आयोग में मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है।
जिला आयोग का बढ़ा दायरा
जिला उपभोक्ता आयोग का न केवल दायरा बढ़ा है वरन् इसका पदनाम भी बदल गया है। पहले आयोग को जिला उपभोक्ता मंच कहा जाता था। वहीं पहले जहां मंच में 20 लाख तक के मामलों की सुनवाई होती थी वह बढ़कर 50 लाख रुपए तक हो गई है।
जिला आयोग में बढ़ रहे मामले
जिला उपभोक्ता आयोग में मामलों की संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 में जहां करीब 250 मामले पेश हुए थे। वह 2021 में बढ़कर 350 से अधिक हो गए थे। वर्ष 2022 में मामलों की संख्या 450 से अधिक हो गई। जबकि वर्ष 2023 में अब तक करीब 200 मामले पेश हो चुके हैं।
जिला आयोग में नियमित, सर्किट बैंच में माह में तीन दिन सुनवाई
जिला उपभोक्ता आयोग में जहां नियमित सुनवाई हो रही है। वहीं राज्य उपभोक्ता आयोग की सर्किट बैंच में हर महीने के अंतिम सप्ताह में तीन दिन सुनवाई हो रही है। जिला आयोग के फैसलों के खिलाफ अपील सर्किट बैंच में की जा रही है। वहीं दो करोड़ तक के मामले भी राज्य आयोग की सर्किट बैंच में ही पेश हो रहे हैं। राज्य आयोग में वर्तमान में करीब 550 से अधिक मामले लम्बित हैं।
मामलों के निस्तारण में समय अधिक लग रहा
दादाबाड़ी निवासी संजय सिंह का कहना है कि जिला उपभोक्ता आयोग का गठन ही ग्राहकों को समय पर न्याय दिलाने के लिए किया गया है। ग्राहकों के जागरूक होने से मामले बढ़ रहे हैं तो उनके निस्तारण में समय भी अधिक लग रहा है। ऐसे में शीघ्र राहत के प्रयास होने चाहिए। नयापुरा निवासी मनीष सक्सेना का कहना है कि ग्राहक को पहले ही कम्पनी व दुकानदार से हुए नुकसान का सामना करना पड़ता है। वहीं आयोग में अधिक समय तक चक्कर काटने से परेशानी भी अधिक होती है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि आयोग में ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे ग्राहकों को समय पर न्याय मिल सके।
कलक्ट्रेट परिसर में है जिला व राज्य उपभोक्ता आयोग
कोटा में जिला उपभोक्ता आयोग व राज्य उपभोक्ता आयोग की सर्किट बैंच कलक्ट्रेट परिसर में संचालित हैं। जिला रसद अधिकारी कार्यालय की ऊपरी मंजिल में एक तरफ जिला उपभोक्ता आयोग व दूसरी तरफ राज्य उपभोक्ता आयोग की सर्किट बैंच संचालित हो रही है। लेकिन मामलों की संख्या बढ़ने से आयोग में सुनवाई में समय अधिक लग रहा है। जिससे उपभोक्ताओं को न्याय मिलने में समय अधिक लग रहा है।
इनका कहना है
जिला उपभोक्ता मंच का नाम जिला उपभोक्ता आयोग हो गया है। साथ ही इसका दायरा 20 लाख से बढ़कर 50 लाख तक हो गया है। सदस्यों का कार्यकाल 5 साल से घटकर 4 साल हो गया है। ग्राहकों में जागरूकता आने से आयोग में पेश होने वाले मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कोटा में एक ही जिला आयोग होने से सुनवाई में समय अधिक लग रहा है। दो आयोग बनाए जाएं तो मामलों का शीघ्र निस्तारण हो सकेगा। जिससे ग्राहकों को भी राहत मिलेगी। साथ ही आयोग के लिए अलग से भवन की व्ववस्था की जानी चाहिए।
-मनीष गुप्ता एडवोकेट
जिला उपभोक्ता आयोग में मामलों का 90 दिन में निस्तारण का प्रावधान है। जिससे ग्राहकों को शीघ्र व समय पर न्याय मिल सके। लेकिन एक आयोग होने व मामलों की संख्या अधिक होने से 90 दिन में तो नोटिस की तामील तक नहीं हो पाती। मामलों के निस्तारण में डेढ़ से दो साल तक का समय लग रहा है। जिससे ग्राहकों को न्याय कम और परेशानी अधिक हो रही है। ऐसे में यदि दो आयोग कर दिए जाएं तो शीघ्र निस्तारण होगा।
-नवीन शर्मा एडवोकेट
ग्राहकों के जागरुक होने से उपभोक्ता आयोग में हर साल मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। कोटा संभाग मुख्यालय होने से यहां दो आयोग होने चाहिए। जिससे निर्धारित समय 90 दिन में मामलों का निस्तारण हो सके। वहीं आयोग के लिए अलग से भवन भी होना चाहिए। इस संबंध में न्यायिक अधिकारी व स्वायत्त शासन मंत्री से भी चर्चा की जाएगी।
-प्रमोद शर्मा, अध्यक्ष अभिभाषक परिषद