जयपुर: राजस्थान में बेटियों की शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, लेकिन बाल विवाह से अभी भी मुक्ति दूर है। गांव तो गांव, शहरों में भी अभी उड़ान से पहले ही बेटी को बाल विवाह कर जिम्मेदारियों से बांध रहे हैं। राजस्थान के शहरों में ही 15.1 फीसदी बेटियां बालिग होने से पहले ही वधू बना दी जा रही है। गांवों में तो हालात और भयावह है। यहां 28.3 फीसदी बेटियां बचपन में ही विवाह कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय फैमिली हैल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान देश में बाल विवाह में पांचवे नंबर पर है। पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, असम के बाद सबसे ज्यादा बेटियों को छोटी उम्र में शादी कर दी जाती है। सैम्पल सर्वे के अनुसार 25 फीसदी बेटियों के हाल यहां बालिग होने से पहले ही पीले कर दिए जाते हैं। देशभर के औसतन से यह 1.7 फीसदी ज्यादा है। उत्तर भारत में तो राजस्थान सबसे ज्यादा बाल विवाह वाला राज्य है। प्रदेश में वर्तमान में करीब 8.30 करोड़ जनसंख्या है। इनमें से 4.40 करोड़ पुरूष और 3.90 करोड़ महिलाएं हैं।
कम उम्र में शादी के साइड इफेक्ट: 14 जिले ऐसे जहां दो से ज्यादा बच्चे हो रहे कम उम्र के विवाह जिन जिलों में ज्यादा हो रहे हैं, उनमें दंपत्तियां बच्चे भी दो से ज्यादा पैदा कर रही है। इनमें बाड़मेर, बांसवाड़ा, जालौर, जैसलमेर, उदयपुर, पाली, राजसमंद, सिरोही, सवाईमाधोपुर, धौलपुर, बारां, भरतपुर, डूंगरपुर और करौली जिले हैं। बेटियों की यहां बालिग होने पर शादियां बढ़े तो दो बच्चों की सोच भी मूर्तरूप ले।
कम उम्र में गर्भवती होने से एनीमिक और बीएमआई में भी कमी आती है
जल्द शादी और जल्द गर्भवती होने महिलाओं की एनीमिक होने और बॉडी मॉस इंडेक्स भी कम रहता है। प्रदेश में अभी 54.4 फीसदी महिलाएं एनीमिक हैं, वहीं 19 फीसदी महिलाएं ऐसी है जिनका उम्र और लंबाई के हिसाब से वजन यानी बॉडी मॉस इंडेक्स नहीं है। बाल विवाह रूके तो महिलाओं में पैदा होने वाली यह समस्याएं भी घटेगी।