राजस्थान

ऐसे आइडिया जिन्होंने बदल दी तस्वीर व तकदीर, शुरुआत से लेकर सफलता तक की साझा की जानकारी

Admin Delhi 1
27 Jan 2023 2:09 PM GMT
ऐसे आइडिया जिन्होंने बदल दी तस्वीर व तकदीर, शुरुआत से लेकर सफलता तक की साझा की जानकारी
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कोटा: कोटा के दशहरा मैदान में दो दिन तक आयोजित कृषि महोत्सव में देशभर के स्टार्टअप ने अपना जलवा बिखेरा। देश के विभिन्न क्षेत्रों से कृषि के क्षेत्र में नवाचार करने वाले युवाओं ने टीम के साथ अपने उपलब्धियों को मेले में प्रदर्शित किया। इस दौरान कई स्टार्टअप ऐसे थे, जिनके बारे में किसानों को जानकारी नहीं थी, लेकिन वह खेती-किसानी के लिए काफी काम के थे। ऐसे में किसानों को यह स्टार्टअप और उनकी तकनीक काफी पसंद आई। इस दौरान कुछ स्टार्टअप ने शुरुआत से लेकर सफलता तक की जानकारी दैनिक नवज्योति के साथ साझा की।

कबाड़ बेट्री से बना डाला फर्टिलाइजर: देश में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। हर वर्ग इससे आहत है। इलेक्ट्रानिक उत्पादों में आने वाली बेट्री भी प्रदूषण का कारण बन रही थी। ऐसे में वैज्ञानिक अपर्णा विल्सन इस बेट्री के माध्यम से नवाचार करने की सोची और अपनी टीम के साथ मिलकर खराब बेट्री को री-साइकिल कर फर्टिलाइजर बना दिया, जो अब फसलों का उत्पादन बढ़ाने में काम आ रहा है। वैज्ञानिक विल्सन ने बताया कि देश में हर साल 6 हजार करोड़ की बेट्री खराब हो जाती है, जो बाद में प्रदूषण फैलाती है। विदेशों में खराब बेट्री का री-साइकिल कर कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं। इस कारण उन्होंने भी भारत में वेस्ट बेट्री को री-साइकिल करने का निर्णय किया। फिर अपनी टीम के साथ मिलकर इस सम्बंध में गहन रिसर्च किया और बेट्री से मेगजीन और सल्फर निकालकर फर्टिलाइजर का निर्माण किया, जो अब खेती में काम आ रहा है। विल्सन ने बताया कि उनकी फर्म करीब वर्ष 2019 में एलोवेरो से बेट्री का निर्माण कर चुकी हैं। इको फ्रेंडली होने के कारण उनके प्रोडक्ट को काफी सराहना मिली थी। अब फर्टिलाइजर को काफी अच्छा रेस्पोंस मिल रहा है।

नवाचार से 20 महिलाओं को मिल रहा रोजगार: कुन्हाड़ी निवासी वंदना गौड़ ने अपने हाथ के हुनर को स्टार्टअप में बदल दिया और अब कई महिलाओं को रोजगार दे रही है। वंदना ने बताया कि वह हर साल घर पर अचार बनाती थी। परिवार के सदस्य उसके स्वाद की काफी तारीफ करते थे। इस पर उसने परिवार के सदस्यों के सहयोग से हर तरह के अचार बनाने का कार्य शुरू किया। वर्ष 2019 में घर पर ही लहसुन, कैरी सहित अन्य सामग्री के अचार बनाने लगी तो परिचितों को बेचना शुरू किया। लोगों को इसका स्वाद काफी भाया और दुकानों पर भी बिक्री करने की सलाह दे डाली। सभी का प्रोत्साहन मिलने पर उसका उत्साह बढ़ता चला गया और अचार के साथ जूस बनाने के कार्य भी हाथ में ले लिया। इसके लिए बकायदा कृषि विज्ञान केन्द्र में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। उसके बाद 18 औषधियों को मिलाकर आंवला का जूस बनाया। यह बिलकुल अलग तरह का जूस था। औषधियों को मिलाने से यह पौष्टिकता से भरपूर था। इस कारण ग्राहकों को यह काफी पसंद आया। इस तरह से अचार के साथ जूस की भी बिक्री की जाने लगी। मांग बढ़ने पर मोहल्ले की महिलाओं को इस कारोबार में शामिल कर लिया। वर्तमान में करीब 20 महिलाओं को इस काम से रोजगार मिल रहा है।

इनका शहद विदेशों में हो रहा एक्सपोर्ट: किसान की बेटी गढ़ेपान निवासी संतोष शर्मा के पति के दोस्त हरियाणा में मधुमक्खी पालन का काम करते थे। पहले तो संतोष उनसे खरीद कर शहद को आगे बेचती थीं। लेकिन पिछले तीन साल से उन्होंने खुद मधुमक्खी पालन का काम प्रारंभ कर दिया। आज उनके पास 1200 से अधिक बी.बॉक्स हैं, जिनकी मदद से वे 31 प्रकार का शहद बना रही हैं। उन्होंने 20 श्रमिकों को रोजगार भी दे रखा है। उनका अधिकांश शहद विदेशों में एक्सपोर्ट हो रहा है।

केले के अपशिष्ट से बनाया सैनेटरी पैड: सामान्यत: उपयोग में लाए जाने वाले सेनेटरी पैड में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक होता है जो सुरक्षित नहीं है। उपयोग किया सैनेटरी पेड नष्ट होने में 300 से 500 वर्ष लगते हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। इसी सोच ने पटना की ऋचा वात्सायन को आईआईटी खड़कपुर की मदद से केले के पेड़ के अपशिष्ट से बना सैनेटरी पैड बनाने को प्रेरित किया। यह स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल हैं। बिहार में काफी महिलाएं वर्तमान में इसका उपयोग कर रही हैं। ऋचा ने बताया कि वर्ष 2019 में उन्होंने यूनिसेफ का एक आर्टिकल पढ़ा था। जिसमें मासिक धर्म वेस्ट के बारे में बताया था। ये वेस्ट भारत में बड़ी समस्या बनती जा रही थी। हर साल 130 हजार टन मेस्टूअल वेस्ट जनरेट होता है। इसके बाद उन्होंने इस फील्ड में उतरने का निर्णय किया। इससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता है। नॉर्मल सेनेटरी पैड 95 फीसदी प्लास्टिक से बने होते हैं। इससे त्वचा को नुकसान होता है।

देश-दुनिया में बढ़ी मोटे अनाज की मांग: फरीदाबाद से आई फूड टेक्नोलॉजिस्ट पलक अरोड़ा ने बताया कि दो वर्ष के शोध के बाद उन्होंने मोटे अनाज से कई प्रकार के उत्पाद बनाए हैं। इनमें पास्ता से लेकर लड्डू तक शामिल हैं। इनमें पोषण का स्तर बेहद ऊंचा रहता है, जिसकी वजह से लोगों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। सिर्फ आॅनलाइन बिक्री करने के बावजूद वह मांग को पूरा नहीं कर पा रही हैं। पलक ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष को इंटरनेशनल ईयर आॅफ मिलेट्स घोषित किया है, तब से देश-दुनिया में मोटे अनाज के प्रति जागरूकता और मांग बढ़ गई है। पहले समर्थ परिवार, रोगी तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता रखने वाले लोग ही मोटे अनाज से बने आटे की मांग करते थे, लेकिन आमजन की भी इसकी मांग बहुत बढ़ गई है।

यहां बहुत कुछ नया देखने को मिला। यहा स्टार्टअप्स ने जो उत्पाद और सेवाएं प्रदर्शित की है उनके बारे में कभी नहीं सुना था। उन्हें यहां उत्पाद बनाने के नए आइडिया भी मिले हैं। इससे खेती को नई दिशा मिलेगी। मेले का किसानों को काफी फायदा मिला है। यहां पर हर तरह की जानकारी उपलब्ध हो गई है।

-रामभरोस मीणा, किसान इन्द्रगढ़

कृषि महोत्सव में कई उत्पाद ऐसे आए थे, जिनके बारे में कोई नहीं जानता नहीं था। खेती के लिए भी नए उपकरण यहां पर देखने को मिले। वहीं उन्नत बीजों के बारे में भी जानकारी मिली। मैने में यहां से काफी मात्रा में बीज खरीदे हैं। वैज्ञानिकों ने भी खेती-किसानी के बारे में अच्छी जानकारी दी है। जिसका लाभ उठाएंगे।

-मुकेश धाकड़, किसान सुल्तानपुर

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