छालों की कसम खाने वाले पायलट आखिर इतना कैसे झुकेः
निकम्मा, नाकारा और गद्दार शब्द सुनने वाला शख्स आखिरकार कैसे झुक गया। यह बात सचिन पायलट समर्थकों, पत्रकारों और राजनीतिज्ञों को समझ में नहीं आ रही है। इस बात का क्या गारंटी है कि आगे ये शब्द नहीं सुनने पड़ेंगे। रात-दिन पायलट- पायलट करने वाले न्यूज चैनलों पर पायलट के लिए राजनीतिक न्याय मांगने वाले राजनीतिक पंडित भी हैरान हैं कि आखिर गहलोत ने क्या जादू किया जो पायलट इतना झुक गए। उन्हें जन संघर्ष यात्रा में कई किलोमीटर पैदल चले युवाओं के छालों का भी ख्याल नहीं रहा। वे सोच रहे हैं कि पायलट को आखिर मिला क्या? क्या उन्हें केंद्र की राजनीति में लाया जा रहा है या राजस्थान की राजनीति में महत्वपूर्ण पद देने की तैयारी है। इस प्रश्न का सही उत्तर तो किसी को पता नहीं है। लेकिन, अपना करियर दांव पर लगा चुके कई पत्रकार औऱ नेता पायलट के पैंतरा बदलने से इसलिए परेशान हैं क्योंकि अगर कांग्रेस सरकार रिपीट होती है, तो उनका एडजस्टमेंट कैसे होगा। उन्हें कैसे राजनीतिक पद मिलेगा। बल्कि चुनाव में टिकट मिलेंगे भी या नहीं। अब बस सबको सिर्फ सितंबर तक इंतजार करना होगा।
हर ट्रांसफर लिस्ट में आने का महत्वपूर्ण मौका
राजस्थान में ब्यूरोक्रेसी की ट्रांसफर लिस्ट गहलोत सरकार में अक्सर आधी रात के बाद आती है। कभी-कभी तो तड़के भी आ जाती है। लेकिन, ट्रांसफर लिस्ट में कुछ आईएएस अफसरों के नाम ऐसे होते हैं, जिनका हर छह महीने में ट्रांसफर हो जाता है। एक सीधा-साधा नियम है कि अगर कोई विवाद नहीं हो तो कम से कम दो साल तक एक पद पर एक अफसर रह सकता है। लेकिन, कई आईएएस अफसरों का नाम तो हर लिस्ट में आ जाता है। वह एक-दो महीने में संबंधित विभाग का काम समझते हैं या पॉलिसी लागू करने वाले होते हैं, उससे पहले अगले विभाग में उनका ट्रांसफर हो जाता है। इसलिए अब कई आईएएस अफसर सिर्फ सीएम की बजट घोषणा के अलावा कुछ भी क्रांति नहीं कर रहे हैं। मुख्य सचिव की बैठकों में जाना और सीएम की बजट घोषणा पर ही ध्यान दे रहे हैं। अगर कोई आम व्यक्ति अपने कार्य के लिए आता भी है, तो कई अफसर मिलते नहीं हैं या सीएस के साथ मीटिंग का हवाला देकर फरियादी को रफूचक्कर कर देते है।
राज्यमंत्री की सरकारी बाइपास सर्जरीः
सीएम के प्रमुख शासन सचिव से पंगा लेने वाले सूचना एवं जनसम्पर्क राज्यमंत्री की आखिरकार सरकारी बाइपास सर्जरी हो गई है। यानि अब सरकारी फाइलें उन्हें बाइपास करके सीधे मुख्यमंत्री तक भेजी जाने लगी हैं। इससे पहले मुख्यमंत्री के पास फाइले राज्यमंत्री से रूट होकर जाती थीं। इसमें अनावश्यक देरी होती थी और मुखिया जी को कांग्रेस सरकार रिपीट करवानी है। फाइलों की चैनल बढ़ने से मीडिया मनीजमेंट गड़बड़ा रहा था। इसलिए मीडिया, मार्केटिंग गुरु घंटालों ने नया रास्ता निकाल लिया। नई व्यवस्था में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की फाइलें अब सीधे एसीएस के बाद सीएम को जा रही हैं। इससे डीआईपीआर के काम में तेज आई है। इससे पहले राज्यमंत्री के कारण पॉलिसी की फाइलें तो दो या तीन महीने, अन्य ममलों की फाइले एक या दो हफ्ते तक राज्यमंत्री के दफ्तर में धूल चाटती थीं। अब राज्यमंत्री भी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ऐसी कौन सी फाइल उन्होंने लटका दी, जिसकी वजह से उनका फाइलों के लूप वाला पत्ता कट गया।
भाजपा और कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की बेचैनीः
राजस्थान विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। ज्यादातर जिलाध्यक्ष चुनाव में टिकट पाने के लिए दौड़-भाग कर रहे हैं। अभी किसी भी जिलाध्यक्ष को आलाकमान से कोई संकेत नहीं मिला है। हालांकि कांग्रेस ने नए जिलाध्यक्ष बनाकर विधानसभा क्षेत्रों में बैलेंस बनाने की कोशिश की है। भाजपा के तमाम जिलाध्यक्ष इस बात के इंतजार में हैं कि उन्हें ऊपर से कोई संकेत मिले तो चुनाव की तैयारी शुरू करें। उन जगहों पर जिलध्यक्षों को उन्हीं की पार्टी के मेयर, सभापति, पालिका अध्यक्ष, पूर्व जिलाध्यक्ष, हारे हुए प्रत्याशी चुनौती के रूप में खड़े हैं। भाजपा जिलाध्यक्षों के सामने एक परेशानी और है, जिन लोगों को पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ने जिलाध्यक्ष बनाया था, वे नए प्रदेशाध्यक्ष से लाइजिंग की जुगाड़ नहीं लगा पा रहे हैं। वैसे स्थानीय नेता के चेहरे को लेकर भी भाजपाई जिलाध्यक्ष असमंजस में हैं। जो कांग्रेस या उनके समर्थक नेता पैसा खर्च कर रहे हैं, उन पर इनकम टैक्स, ईडी नजर रख रही हैं। वहीं ऐसे भाजपा नेताओं पर एसीबी की नजरें हैं। फिलहाल अभी चुनावी सियासत की नजरें धनबल पर लगी हुई है।
करप्शन के कारीगर कटघरे मेंः
बीते सप्ताह राजधानी जयपुर में सहकारिता विभाग के डिप्टी रजिस्ट्रार और इंस्पेक्टर को एसीबी ने 5 लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया। नियम-कानूनी बाध्यता की वजह से इन दोनों को सस्पेंड कर दिया गया है। लेकिन, सहकारिता सेक्टर में इन दोनों का ट्रेप चर्चा का विषय बना हुआ है। बताया जा रहा है कि डिप्टी रजिस्ट्रार को हर महीने 13 लाख रुपए ऊपर देने होते थे। ताकि वह इस पद पर बना रहे। इसके लिए डिप्टी रजिस्ट्रार ने गृह निर्माण सहकारी समितियों को टारगेट किया। क्योंकि गृह निर्माण सहकारी समितियों के फर्जीवाड़े किसी से छिपे नहीं है। एक ही प्लॉट कई लोगों को बेचने औऱ फर्जी पट्टे काटकर लाखों-करोड़ों रुपए कमाने वाले भू-माफिया से कमाना डिप्टी रजिस्ट्रार की नजर में कोई गुनाह नहीं था। लेकिन, उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि जमीनों के खेल में माहिर ये प्रॉपर्टी डीलर एक दिन डिप्टी रजिस्ट्रार औऱ इंस्पेक्टर का भी करियर बेच डालेंगे। इधऱ, कुछ छुटभैये नेता अब सचिन पायलट पर तंज कस रहे हैं कि पूर्व सीएम वसुंधराराजे के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच का मुद्दा उठा रहे थे। लेकिन, पहले तो उन मंत्री-विधायकों को बेनकाब करें जो इस सरकार में भ्रष्टाचार कर रहे हैं।