राजस्थान

आधा पेरिस बस जाए इतने में फैला, रोबोट करते हैं सफाई; 22 लाख घर इससे रोशन

SANTOSI TANDI
3 July 2023 8:24 AM GMT
आधा पेरिस बस जाए इतने में फैला, रोबोट करते हैं सफाई; 22 लाख घर इससे रोशन
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REET, APRO से लेकर UPSC एग्जाम में कई बार एक सवाल बार-बार पूछा गया, विश्व का सबसे बड़ा सोलर पार्क कहां स्थित है? इसका जवाब है जोधपुर जिले का गांव भड़ला। करीब 14 हजार हेक्टेयर में फैला ये सोलर पार्क बेमिसाल है। दूर-दूर तक जहां भी नजर जाएगी, सिर्फ सोलर पैनल दिखाई देंगे। ऐसा लगता है जैसे सोलर पैनल का कोई शहर बस गया हो।
सैटेलाइट से देखने पर ऐसे लगता है जैसे नीले रंग का आसमान ही जमीन पर उतर आया हो। यह पार्क इतना बड़ा है कि फ्रांस की राजधानी पेरिस की आधी आबादी यहां बस सकती है। पार्क की सुरक्षा के लिए बनी दीवार की लंबाई नापी जाए तो ये करीब 200 किमी लंबी होगी। जहां 300 से ज्यादा गाड्‌र्स 24 घंटे इसकी सुरक्षा में तैनात रहते हैं।
भड़ला पार्क में हर साल 5 अरब 46 करोड़ यूनिट बिजली बनती है, जिससे 24 घंटे तक लगातार 22 लाख घरों को बिजली सप्लाई हो सकती है। 9,900 करोड़ की लागत से चार फेज में बने इस पार्क से दुनिया की बेहतरीन कंपनियां इतनी बिजली पैदा कर रही हैं कि चीन भी मुकाबला नहीं कर पा रहा।
इस सोलर प्लांट से राजस्थान ही नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश जैसे कई राज्यों में सस्ती दरों पर बिजली सप्लाई होती है। हाल ही में बिपरजॉय तूफान के दौरान चेतावनी जारी हुई थी कि भड़ला सोलर पार्क को इससे नुकसान पहुंच सकता है। तूफान के गुजरने के बाद भास्कर टीम विश्व के सबसे बड़े सोलर पार्क की ग्राउंड रिपोर्ट करने पहुंची। खास बात यह रही कि तूफान सोलर पार्क का कुछ नहीं बिगाड़ सका। हमने यहां दुनिया के सबसे बड़े सोलर पार्क बनने की कहानी जानी...।
भड़ला में ऐसा क्या? जहां बनाया गया सबसे बड़ा सोलर पार्क
भास्कर टीम जयपुर से करीब 320 किलोमीटर दूर भड़ला गांव पहुंची। सबसे पहला सवाल मन में आया कि आखिर भड़ला को ही सोलर पार्क के लिए क्यों चुना गया? हमने लोगों से कई तरह की बातें सुनी थी कि जोधपुर को सूर्य नगरी कहते हैं…सूर्य की सीधी किरणें जोधपुर की धरती पर पड़ती हैं…यहां सूर्यवंशियों का राज था, इसलिए सूर्य देवता मेहरबान रहते हैं…वगैरह, वगैरह। हमारी मुलाकात यहां 1000 मेगा वॉट क्षमता का प्लांट लगाने वाली कंपनी सौर्य ऊर्जा के मैनेजर अवनीश मिश्रा से हुई। उन्होंने असली कारण बताया।
भड़ला सोलर पार्क का ड्रोन शूट: ऐसे लगता है मानो नीले रंग के आसमान का अक्स जमीन पर दिखाई दे रहा हो, लेकिन ये एक कतार में लगे बड़े-बड़े सोलर पैनल हैं, जिन्हें गिन पाना आसान नहीं।
भड़ला सोलर पार्क का ड्रोन शूट: ऐसे लगता है मानो नीले रंग के आसमान का अक्स जमीन पर दिखाई दे रहा हो, लेकिन ये एक कतार में लगे बड़े-बड़े सोलर पैनल हैं, जिन्हें गिन पाना आसान नहीं।
इसके पीछे यह कारण नहीं है कि जोधपुर में गर्मी ज्यादा पड़ती है या फिर सूर्य की किरणें सीधी आती हैं। सोलर पार्क बनाने के लिए सबसे ज्यादा टेम्परेचर वाली जमीन नहीं, बल्कि पूरे साल साफ मौसम रहने वाली और हजारों हेक्टेयर बंजर जमीन चाहिए थी, ताकि कंपनियां कम लागत में आसानी से सोलर प्लांट लगा सकें। सोलर पैनल से बिजली बनाने के लिए 25 से 30 डिग्री का तापमान होना चाहिए। लंबी रिसर्च के बाद पता चला कि ये सारी चीजें भड़ला गांव में मौजूद थीं।
जहां, ये पार्क लगाया गया है वह भी ऊंचाई वाली जगह पर है। इसलिए विश्व का सबसे बड़ा सोलर पार्क बनाने के लिए भड़ला गांव को चुना गया। यहां राजस्थान में सबसे ज्यादा सनी डेज, यानी साफ मौसम वाले दिन होते हैं। सूरज से आने वाली किरणों का रेडिएशन 5.72kWh/m²/ होता है। हाल ही में आए बिपरजॉय तूफान का असर भी पार्क पर नहीं पड़ा।
राजस्थान सरकार और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRI) की संयुक्त राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम लिमिटेड (RRECL) कंपनी ने वर्ष 2015 में इस पार्क की शुरुआत की थी।
राजस्थान सरकार और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRI) की संयुक्त राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम लिमिटेड (RRECL) कंपनी ने वर्ष 2015 में इस पार्क की शुरुआत की थी।
1 करोड़ सोलर पैनल, 14 हजार हेक्टेयर में फैला पार्क
राजस्थान सरकार एवं IL&FS की जॉइंट वेंचर कंपनी सौर ऊर्जा के प्लांट हेड गिरिश राघवेंद्र राव ने बताया कि करीब 14 हजार हेक्टेयर में फैले इस पार्क में करीब 1 करोड़ सोलर पैनल लगे हुए हैं। पार्क में सबसे ज्यादा सोलर पैनल 1 हजार मेगावाट के सौर्य ऊर्जा के प्लांट में लगे हुए हैं। यहां करीब 40 लाख सोलर पैनल हैं, जिनसे बनने वाली बिजली पावर ग्रिड के जरिए घरों तक सप्लाई होती है।
रोबोट करते हैं सोलर प्लेट की सफाई
भड़ला सोलर पार्क के चारों तरफ रेत के धोरे हैं, जहां से हर दिन मिट्‌टी उड़कर सोलर प्लेट पर आ जाती है। सोलर प्लेट पर मिट्‌टी आने से बिजली नहीं बन पाती है। सबसे बड़ी चुनौती थी 1 करोड़ सोलर प्लेट को हर दिन साफ कैसे किया जाए। ऐसे में सोलर प्लेट को सफाई का जिम्मा रोबोट को सौंपा गया।
सोलर पैनल की सफाई करते रोबोट, इन्हें कंट्रोल रूम से कमांड किया जाता है। साफ-सफाई का ये काम शाम सूरज ढ़लने के बाद किया जाता है।
सोलर पैनल की सफाई करते रोबोट, इन्हें कंट्रोल रूम से कमांड किया जाता है। साफ-सफाई का ये काम शाम सूरज ढ़लने के बाद किया जाता है।
रोजाना शाम साढ़े 5 बजते ही ये रोबोट करोड़ों सोलर प्लेटों की सफाई में जुट जाते हैं। रोबोट मशीन में व्हील लगे होते हैं, जिससे ये सोलर प्लेट की एक पूरी कतार में बार-बार चक्कर काटकर सफाई करते हैं। सफाई करने के लिए माइक्रो फाइबर से बने ब्रश का इस्तेमाल होता है, ताकि पैनल को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचे और अच्छे से सफाई हो जाए।
चार मास्टर कंट्रोल रूम : यहीं से डिसाइड होता है, कितनी बिजली बनानी है
सोलर पार्क चार फेस में बना हुआ है। हर फेस का अपना एक कंट्रोल रूम है। इस कंट्रोल रूम में बिजली बनाने, रोबोट और कूलिंग सिस्टम को कंट्रोल करने के लिए तीन अलग-अलग सेटअप लगे होते हैं। सोलर पैनल से कितनी बिजली बनानी है और बिजली की सप्लाई को कंट्रोल किया जाता है। सोलर प्लेट को साफ करने वाले रोबोट को नियंत्रित करने के लिए भी कंट्रोल सिस्टम है। वहीं तीसरे कंट्रोल रूम से ट्रांसफार्मर और इंवर्टर के कूलिंग सिस्टम को कंट्रोल किया जाता है।
200 किलोमीटर लंबी सुरक्षा दीवार, और 300 गार्ड करते हैं सुरक्षा
भड़ला सोलर पार्क पर 1 करोड़ सोलर पैनल लगे हुए हैं। 14 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इन अरबों की कीमत के सोलर पैनल की सुरक्षा के लिए पार्क के चारों तरफ दीवार बना रखी है। इस दीवार की लंबाई को नापा जाए तो ये करीब 200 किलोमीटर लंबी है। दीवार के ऊपर तारबंदी की गई है। इसके साथ ही हर फेस में सुरक्षा गार्ड भी तैनात किए गए हैं। करीब 300 से ज्यादा गाड्‌र्स पार्क की सुरक्षा में तैनात रहते हैं। यह गाड्‌र्स 24 घंटे पहरा देकर सोलर पार्क की सुरक्षा करते हैं।
1500 से ज्यादा कर्मचारी, सबसे पास में कस्बा 56 किलोमीटर दूर
भड़ला सोलर पार्क में 1500 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। इनमें 500 टेक्निकल और 1000 नॉन टेक्निकल कर्मचारी काम करते हैं। यहां सबसे बड़ी चुनौती है, आस-पास कोई कस्बा या शहर नहीं होना। पार्क बंजर जमीन और रेतीले धोरों के पास है। पार्क से सबसे नजदीकी कस्बा- बाप, 56 किलोमीटर दूर है। यहां जरूरत का सामान और टेक्निकल चीजें 223 किलोमीटर दूर जोधपुर शहर से मंगवानी पड़ती हैं।
सौर ऊर्जा कंपनी की ओर से स्थापित कंट्रोल रूम और उसमें बिजली के प्रोडक्शन की निगरानी करते कर्मचारी।
सौर ऊर्जा कंपनी की ओर से स्थापित कंट्रोल रूम और उसमें बिजली के प्रोडक्शन की निगरानी करते कर्मचारी।
9900 करोड़ का निवेश, डेली 33 हजार लाख यूनिट से ज्यादा बिजली
भड़ला सोलर पार्क में करीब 18 कंपनियों ने 9,900 करोड़ का निवेश किया है। सोलर प्लांट्स से सालाना 33 हजार 165 लाख यूनिट बिजली बनती है। ये इतनी है कि सालभर में 22 लाख से ज्यादा घरों को रोशन कर सकती है।
सोलर पार्क में बनने वाली बिजली को सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया व NTPC खरीदता है। बिजली को ग्रिड सब-स्टेशन व हाईटेंशन लाइनों के जरिए प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में पहुंचाया जा रहा है। यहां से 750 मेगावॉट बिजली उत्तर प्रदेश को भी सप्लाई हो रही है। पहले फेज में लगे प्लांट से मिल रही बिजली 6.45 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बेची जा रही है। वहीं, बाद में बने प्लांट्स से न्यूनतम 2.44 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली मिल रही है।
रोज 5 करोड़ के कोयले की बचत कर रहा भड़ला सोलर पार्क
भड़ला सोलर पार्क में हर दिन 68 लाख यूनिट बिजली बनती है। सोलर पैनल से बिजली बनाने से प्रदूषण तो न के बराबर होता है, साथ ही इतनी ही बिजली अगर कोयले से बनाएं तो हर दिन पांच करोड़ रुपए खर्च होंगे। एक यूनिट बिजली बनाने के लिए 1.12 पाउंड कोयला खर्च होता है।
सोलर पार्क के अंदर दैनिक भास्कर टीम को जानकारी देते कंपनी के मैनेजर अवनीश मिश्रा।
सोलर पार्क के अंदर दैनिक भास्कर टीम को जानकारी देते कंपनी के मैनेजर अवनीश मिश्रा।
68 लाख यूनिट बिजली बनाने के लिए 76,16,000 पाउंड मतलब 3,454 टन कोयला खर्च होता है। बिजली बनाने के लिए जो कोयला काम में लिया जाता है वो उच्च ग्रेड का होता है, जिसकी कीमत करीब 15 हजार रुपए प्रति टन होती है। ऐसे में 3,454 टन कोयल की कीमत करीब पांच करोड़ होती है। ऐसे में सोलर पैनल से बिजली बनाने से हर दिन पांच करोड़ रुपए की बचत होती है।
न कोयला न पानी, सूर्य की किरणों से ही एक साथ पैदा होती है इतनी बिजली
रोजाना 68 लाख यूनिट बिजली बनाने में न तो कोयला खर्च होता है और न ही पानी। सिलिकॉन से बनी सोलर प्लेट पर तेज धूप गिरने से बिजली पैदा होती है। ये सोलर प्लेट में दो लेयर में होती हैं। नीचे वाली लेयर में पहले से इलेक्ट्रॉन मौजूद रहते हैं। इसे पी टाइप सिलिकॉन प्लेट कहते हैं। इसमें पॉजिटिव चार्ज होता है। इसके ऊपर एन टाइप सिलिकॉन की प्लेट होती है।
जब सूरज की रोशनी एन टाइप की सिलिकॉन प्लेट से टकराती है तो नेगेटिव इलेक्ट्रॉन बनने लगते हैं। इससे पी और एन टाइप सिलिकॉन प्लेट के बीच पीएन जंक्शन बनता है। इलेक्ट्रॉन के पीएन जंक्शन में घूमने से बिजली या करंट बनता है, लेकिन यह बिजली DC (डायरेक्ट करंट) में बनती है। इसे AC (ऑल्टरनेटिव करंट) में बदलने के लिए बिजली को इन्वर्टर में भेजा जाता है, जो सोलर पैनल से बनी बिजली को DC से AC में बदलते हैं।
सूर्य पूर्व में उगता है, लेकिन प्लेट की डायरेक्शन साउथ दिशा में क्यों?
सौर ऊर्जा कंपनी के मैनेजर अवनीश मिश्रा ने बताया कि भड़ला सोलर पार्क में सभी सोलर पैनल को साउथ (दक्षिण) दिशा की तरफ रखते हैं। पैनल को दक्षिण दिशा में रखने के पीछे की सबसे बड़ी वजह है सूरज। सूरज पूर्व से निकलता है और पश्चिम दिशा में अस्त होता है। सोलर पैनल को दक्षिण दिशा की तरफ रखने से सूरज के उदय और अस्त होने तक सोलर पैनल पर छांव नहीं पड़ती है। इससे ज्यादा समय तक सूरज की तेज रोशनी सोलर पैनल को मिलती है और बिजली का प्रोडक्शन भी ज्यादा होता है।
कैसे बना दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क?
इस सोलर पार्क का निर्माण चार फेज में पूरा हुआ। पहले फेज में वर्ष 2015 में सबसे पहले 65 मेगावाट का प्लांट लगाकर इसकी शुरुआत हई। इसे राजस्थान अक्षय ऊर्जा की राजस्थान सोलर पार्क डेवलपमेंट कंपनी लि. ने विकसित किया है, जिसमें आदित्य बिड़ला ग्रुप जैसी 7 कंपनियां शामिल हुईं। ज्यादा लागत होने के कारण यहां से सरकार ने 6 रुपए 45 पैसे और 5 रुपए 43 पैसे के रेट पर बिजली खरीदना शुरू किया।
दूसरा चरण : वर्ष 2016 में 680 मेगावाट का प्लांट स्थापित किया गया। इसे भी राजस्थान अक्षय ऊर्जा की राजस्थान सोलर पार्क डेवलपमेंट कंपनी लि. ने विकसित किया है। इसमें 5 कंपनियों ने अपना प्रोजेक्ट लगाया। 65 और 70 मेगावाट प्रोडक्शन के प्लांट लगाए। खास बात यह थी कि देश की सरकारी कंपनी NTPC ने भी यहां 4 प्लांट स्थापित किए। यहां से सरकार को 4 रुपए 35 पैसे प्रति यूनिट बिजली मिलने लगी।
तीसरा चरण : वर्ष 2020 में 1000 मेगावाट का प्लांट लगाया गया। तीसरा फेज राजस्थान सरकार व IL&FS एनर्जी की जॉइंट वेंचर कंपनी सौर ऊर्जा कंपनी ने बनाया है। इससे सोलर पार्क की कुल क्षमता और बढ़ गई। पहली बार रिकॉर्ड बिजली प्रोडक्शन हुआ और जोधपुर का ये भड़ला सोलर पार्क दुनिया के नक्शे पर सबसे बड़ा सोलर पार्क बनकर चमकने लगा।
चौथा चरण : वर्ष 2020 में 500 मेगावाट का प्लांट लगा। चौथे फेज को राजस्थान सरकार व अडाणी एंटरप्राइजेज की अडाणी रिन्यूएबल पार्क कंपनी ने विकसित किया है। इस प्लांट से जब प्रोडक्शन शुरू हुआ, तो भड़ला दुनिया के सबसे बड़े चीन के हुआंगहे हाइड्रोपावर हैनान सोलर पार्क को पछाड़कर नंबर एक बन गया। पिछले तीन साल से नंबर वन का ताज भड़ला सोलर पार्क के पास ही है। चौथे चरण में लगे प्लांट से बिजली एजेंसियों को सबसे सस्ती 2 रुपए 45 पैसा प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली मिल रही है।
सरकारी स्कूल के स्टूडेंट्स को वैज्ञानिक बनाने के लिए मोबाइल साइंस लैब
राजस्थान सरकार एवं IL&FS की जॉइंट वेंचर कंपनी सौर्य ऊर्जा ने आस-पास के गांव और ढाणी में लोगों को जिंदगी में बदलाव के लिए भी काम कर रही है। इसके लिए वॉकहार्ड फाउंडेशन के जरिए काम किया जा रहा है।
23 सरकारी स्कूल में मोबाइल साइंस लैब बनाई गई है। इन लैब में 50 हजार से ज्यादा साइंस किट्स बच्चों को दिए गए हैं। साइंस लैब में 6 टीचर क्लास 3 से 10 तक के स्टूडेंट्स को साइंस सब्जेक्ट को चैप्टर को थ्योरी व प्रैक्टिकल के माध्यम से समझाया जा रहा है।
सोलर और विंड एनर्जी प्लांट स्थापित करने में राजस्थान नंबर-1
रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) के प्लांट स्थापित करने में राजस्थान देश में सबसे आगे है। प्रदेश में विंड और सोलर एनर्जी के प्लांट्स की क्षमता 21.6 गीगावाट की है। छतों पर सोलर यानी सोलर रूफटॉफ से 853 मेगावट बिजली उत्पादन के साथ राजस्थान की देश में दूसरी रैंक है। राजस्थान में अभी 23,650 मेगावाट बिजली बनाने के प्रोजेक्ट अंडर कंस्ट्रक्शन हैं। राजस्थान का वर्ष 2025 तक 37.5 गीगावाट क्षमता के प्लांट स्थापित करने का लक्ष्य है।
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