कोटा: उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी, ठगी के मामलों में पिछले पांच साल से निरंतर वृद्धि होती जा रही है। इससे जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में निरंतर पैंडेंसी बढ़ रही है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लागू होने से आयोग में तीन गुने मामले बढ़े हैं । इनमें ई-मार्केटिंग जैसे आॅन लाइन धोखाधड़ी, बैकिंग, इश्योरेंश, चिकित्सकीय और कार्पोरेशन के मामले ज्यादा शामिल हैं। आयोग में रोजाना लगभग पांच से दस परिवाद दर्ज हो रहे हैं, लेकिन स्टॉफ की कमी के चलते सुनवाई समय पर नहीं हो पा रही है। इससे उपभोक्ताओं को तीन-चार महीने की तारीख दी जा रही है। परिवादों का समय पर निस्तारण नहीं होने से उपभोक्ताओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उपभोक्ता कानून में बदलाव होने से पहले रोजाना एक-दो परिवाद आते थे लेकिन अब तीन गुने परिवाद दर्ज किए जा रहे हैं। इससे आयोग में निरंतर परिवादों की संख्या बढ़ रही है।
यह थी पहले स्थिति: वर्ष 2007 में मात्र एक परिवाद दर्ज हुआ था। वर्ष 2008, 09,10, 11, 12, 13, 14 तक एक-एक ही परिवाद दर्ज हुआ था। वर्ष 2015 में पांच मामले दर्ज किए गए। इसके बाद वर्ष 2016 में एक साथ 68 मामले उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत दर्ज हुए थे। वर्ष 2017 में तीन प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। 186 परिवाद नए आए तथा सात प्रकरण अनुपालना आदेश में थे। कुल 193 की पैंडेंसी रही थी। उपभोक्ता आकड़ोंं पर नजर डालें तो वर्ष 2018 मेें 1.24 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी। पैडेंसी घटकर 157 परिवाद ही रह गई थी।
ऐसे होने लगी मामलों में बढ़ोतरी:
वर्ष 2019 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लागू होने के बाद से आयोग में निरंतर उपभोक्ताओं के मामलों में वृद्धि हो रही है। वर्ष 2020 में कारोना काल के दौरान 209 मामले दर्ज किए गए तथा पैंडैसी बढ़कर 241 पर पहुंच गई। इसके अलावा वर्ष 2019 में नए कानून में आॅन लाइन मार्केटिंग की धोखाधड़ी तथा दस से पचास लाख तक के मामलों की सुनवाई के लिए जिला स्तर पर ही संशोधन किया गया। जिसमें आॅन लाइन धोखाधड़ी शॉपिंग, इंश्योरेंश, चिकित्सकीय,टेली शोपिंग, के्रडिट कार्ड, आॅन लाइन टिकट, रेलवे तथा परिवहन से संबधित मामलों को सेवा दोष में शामिल किया गया है। इसके अलावा माल की सेवा, क्वालिटी मात्रा शुद्धता मानक कीमत, उपभोक्ता जगरुकता सहित अन्य सेवादोष के मामलों को जोड़ दिया गया है। इससे मामलोंं में निरंतर वृदिÞध हो रही है।
328 मामलोें का निस्तारण, 1768 पैंडेंसी
2021 में मामले 330 नए दर्ज किए गए तथा 363 की पैंडेंसी चल रही थी। एक जनवरी से 31 दिसंबर 2022 तक 591 दर्ज किए गए तथा पूरे वर्ष में यहां जुलाई2022 से अध्यक्ष का पद रिक्त होने के बावजूद 328 मामलों का निस्तारण किया गया। जबकि कुल 1768 मामले अभी निस्तारण के लिए चल रहे हैं।
स्टॉफ की कमी: जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग कोटा में निरंतर स्टॉफ की कमी चल रही है। यहां चार पद क्लर्क व चार पद ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के हैं लेकिन केवल दो-दो ही कर्मचारी हैं। 21 जुलाई 2022 से अध्यक्ष पद भी रिक्त चल रहा है। हालांकि महीने के दूसरे व चौथे सप्ताह में बूंदी जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष रविन्द्र कुमार माहेश्वरी को लगाया गया है। जिससे शेष दिनों में उपभोक्ताओं को तारीख पर तारीख दी जा रही है तथा उनके मामलों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है।
नई कोर्ट नहीं खुली अभी तक: उभोक्ता संरक्षण अधिनिपयम 2019 में एक्ट के संशोधन के बाद जिन जिलों के आयोग में पांच सौं से अधिक केस पैडिंग होने पर एक नया कोर्ट स्थापित करने का प्रावधान किया गया, लेकिन यहां निरंतर पैंडेसी बढ़ने के बाद अभी तक कोई नया कोर्ट नहीं खोला गया है। जबकि जयपुर में चार, जोधपुर में दो तथा तीसरे को खोलने की तैयारी चल रही है, जबकि कोटा में एक ही कोर्ट के होने से फैसले नहीं हो पा रहे है। इतना ही नहीं यहां पर पिछले कई महीनों से अध्यक्ष का पद भी रिक्त चल रहा है।
इतने मामले विचाराधीन: वर्ष 2022 में बीमा कंपनी के 340, बैकिंग 218, कोपरेटिव सोसायटी के लगभग 175, मोबाइल के 150 सहित अन्य 1768 मामले विचाराधीन हैं।
उपभोक्ता आयोग में अब तक लम्बित मामले
वर्ष परिवाद पेश आदेश विविध कुल
पेंडिंग प्रार्थना पत्र पेंडिंग केश
2007 1 0 0 1
2008 1 0 0 1
2011 0 1 0 1
2015 5 0 0 5
2016 68 5 0 73
2017 186 7 0 193
2018 151 6 0 157
2019 212 16 5 233
2020 209 31 1 241
2021 330 26 7 363
2022 424 63 24 511
कुल 1587 155 37 1768
अब उपभोक्ता निवास से कर सकता है शिकायत दर्ज
नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के बाद उपभोक्ता हिन्दुस्तान में जहां का रहने वाला है वहां भी अपना केस दर्ज करा सकता है। इससे पहले दस लाख तक अर्थ के लिए जहां उसके साथ सेवा दोष हुआ है वहीं परिवाद पेश कर सकता था लेकिन अब वह जहां रहता है वहां भी कहीं का भी परिवाद दर्ज कर सकता है। एक्ट के संशोधन के बाद धारा भी बदल गई है। पहले उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 में दर्ज किया जाता था लेकिन अब परिवाद धारा 35 में दर्ज किया जाता है।
इनका कहना
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के आने से उपभोक्ताओं की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है । समय पर मामलों का निस्तारण नहीं किया जा रहा है। आयोग में स्टॉफ की कमी का भी अभाव है। मामलों के हिसाब से दो कोर्ट होने चाहिए जबकि एक ही संचालित हो रहा है। यहां अध्यक्ष का पद रिक्त चल रहा है।
-लोकेश कुमार सैनी, एडवोकेट
लगातार अध्यक्ष की कमी के कारण ही पैंडेंसी बढ़ रही है तथा अपर्याप्त स्टॉफ भी मुख्य वजह है। हालांकि एक अध्यक्ष एक सदस्य से कार्य चलाया जा सकता है, लेकिन अध्यक्ष के अभाव में कोरम पूरा नहीं हो सकता है। जिससे पैंडैंसी पर फर्क पड़ता है तथा निरंतर एक-दो से अधिक परिवाद रोजाना आने से वृद्धि हो रही है। अध्यक्ष का होना जरुरी है। जबकि अध्यक्ष के लिए सरकार की ओर से इंटरव्यू हो चुका है।
-रमेश चंद मीणा, जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के पूर्व अध्यक्ष
नया उपभोक्ता अधिनियम आने का सबसे अच्छा फायदा तो यह है कि जहां उपभोक्ता रहता है वहीं उसे मुकदमा लगाने का अधिकार दिया गया है। जबकि इससे पहले ऐसा नहीं था। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत परिवाद तय समय सीमा में निस्तारित करना होता है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर उपभोक्ता आयोग में पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति अनेक कारणों से समय पर नहीं होने से अन्य आयोग के अधिकारी कैंप करते हैं । ऐसी स्थिति में प्रकरण के निस्तारण में समय लग जाता है। इसके अलावा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ई-कॉमर्स को भी कवर किया जाता है । मिलावट खाद्य पदार्थ के मापदंड में कमी आदि से क्षति होने की स्थिति में उपभोक्ता को क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार भी दिया गया है जो 1000000 तक होता है । इसके अलावा सजा का प्रावधान है और जिला कलक्टर को भी कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार इस अधिनियम में दिया गया है । संरक्षण अधिनियम प्रभाव में आने के उपरांत उपभोक्ता को सर्वोपरि माना गया है। उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखा गया है कि उसके साथ किसी भी रीति से कोई भी सर्विस प्रोवाइडर किसी भी व्यक्ति से कोई छल कपट नहीं कर सके और उसे गुमराह करके गलत आइटम का विक्रय नहीं कर सके । उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का प्रचार प्रसार के अभाव में उपभोक्ता को उनके अधिकारों की जानकारी कम है।
-विवेक नंदवाना, वरिष्ठ अधिवक्ता