राजस्थान
पिता राजीव के दौरे से कनेक्शन, आदिवासी महिला को देख सस्ता कर दिया था गेहूं
SANTOSI TANDI
9 Aug 2023 10:24 AM GMT
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सस्ता कर दिया था गेहूं
सांसदी बहाल होने के बाद राहुल गांधी बुधवार को पहली बार कोई सभा करेंगे। कांग्रेस इसकी शुरुआत अपने कोर आदिवासी वोट बैंक के गढ़ से करने जा रही है।
विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राहुल गांधी बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम आ रहे हैं। यहीं से वह अपनी सांसदी और मणिपुर हिंसा जैसे मुद्दों पर पीएम मोदी पर जुबानी हमला बोलेंगे। इससे पहले राहुल आज 12 बजे संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान मोदी सरकार को घेरेंगे। वह I.N.D.I.A. के सांसदों के मणिपुर दौरे में सामने आई बातों को सदन में रखेंगे।
इसके बाद वह राजस्थान में जनसभा के लिए रवाना होंगे। राहुल दोपहर बाद करीब 3 बजे तक उदयपुर एयरपोर्ट पर पहुंचेंगे। यहां से लगभग 4 बजे तक वह बांसवाड़ा सभा स्थल पर होंगे।
मानगढ़ धाम राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र चार राज्यों के आदिवासी समाज के लिए आराध्य स्थल है। इनमें से मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसी साल चुनाव हैं। ऐसे में यहां से राहुल गांधी राजस्थान की 25 और मध्यप्रदेश की 45 सीटों काे साधने की कोशिश करेंगे।
इसी के साथ राजस्थान में कांग्रेस की सेंट्रल लीडरशिप के चुनावी दौरों की शुरुआत हो जाएगी। अगस्त के महीने में ही राहुल गांधी राजस्थान में तीन और सभाएं करेंगे।
एक संयोग ये भी है कि आज से करीब 38 साल पहले राहुल के पिता राजीव गांधी ने भी आदिवासी क्षेत्रों का दौरा किया था। तब उन्होंने एक आदिवासी महिला के हाल देखकर देशभर में गेहूं सस्ता कर दिया था। उनके दौरे के बाद कांग्रेस को राजस्थान में भारी बहुमत मिला था।
मंगलवार को राहुल गांधी की सभा की तैयारियों का जायजा लेते प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय सहित अन्य नेता।
मंगलवार को राहुल गांधी की सभा की तैयारियों का जायजा लेते प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय सहित अन्य नेता।
38 साल पहले आए थे राजीव गांधी
कांगेस ने इस सभा के लिए भी खास दिन चुना है। अब से ठीक 38 साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी राजस्थान आए थे। राजीव गांधी का वो दौरा इसलिए खास था क्योंकि इसी दौरे के बाद देशभर में आदिवासियों को सस्ता गेहूं देने की शुरुआत हुई थी। साथ ही कई महत्वपूर्ण योजनाओं को राजीव गांधी ने राजस्थान के उसी दौरे की मदद से धरातल पर उतारा था।
8 अगस्त 1985 को राजीव गांधी उदयपुर के खेरवाड़ा इलाके के दौरे पर आए थे। तब राजीव गांधी ने 2 किलोमीटर पैदल यात्रा कर राजस्थान के आदिवासी इलाकों के हालात को जाना था। यहां राजीव गांधी को आदिवासी इलाकों की वास्तविक चुनौतियों का अंदाजा लगा था।
चुनावी लिहाज से राजस्थान में राहुल गांधी का दौरा कहां रखा जाए, इसे लेकर पिछली सीडब्ल्यूसी बैठक में राजस्थान की वर्किंग कमेटी के मेंबर रघुवीर मीणा ने चर्चा की थी। ऐसे में अब ठीक 38 साल बाद आदिवासी दिवस के मौके पर वह ट्राइबल इलाके में आ रहे हैं।
खेरवाड़ा तहसील के सुंदरा गांव के आस-पास मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के साथ जीप में दौरा करते हुए राजीव गांधी। जीप में आगे की तरफ बैठीं सोनिया गांधी। (फाइल फोटो)
खेरवाड़ा तहसील के सुंदरा गांव के आस-पास मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के साथ जीप में दौरा करते हुए राजीव गांधी। जीप में आगे की तरफ बैठीं सोनिया गांधी। (फाइल फोटो)
टेलीग्राम भेजकर आदिवासियों के हाल जानने को कहा था
राजीव गांधी के दौरे को लेकर सीडब्ल्यूसी सदस्य रघुवीर मीणा और उस इलाके को करीब से समझने वाले पूर्व उप-जिला प्रमुख लक्ष्मीनारायण पंड्या बताते हैं कि 8 अगस्त 1985 को जब अकाल पड़ा हुआ था, तब राजीव गांधी ट्राइबल एरिया में विजिट करना चाह रहे थे। उनका खेरवाड़ा-डूंगरपुर का दौरा रखा गया।
इससे पहले आदिवासी बेल्ट के ही एक व्यक्ति ने राजीव गांधी को टेलीग्राम भेज दिया था। टेलीग्राम में लिखा गया था कि अगर आपको वास्तव में आदिवासी इलाकों के हाल देखने हैं तो खेरवाड़ा के धनोल गांव में आकर देखें। वो टेलिग्राम राजीव गांधी ने अपने पास रख लिया था।
पंड्या आगे बताते हैं कि जब राजीव गांधी खेरवाड़ा आए तो उन्होंने अपने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी से कहा कि उन्हें धनोल गांव में जाना है। उस दौरान सोनिया गांधी भी उनके साथ थी। गांव पहाड़ियों से होकर कच्चे रास्ते पर काफी अंदर पड़ता था। बरसात के मौसम में कीचड़ भी भरा हुआ था। गाड़ियां भी वहां नहीं जा सकती थी। ऐसे में राजीव गांधी अपने लवाजमे के साथ लगभग 2 किमी पैदल चलकर वहां तक पहुंचे।
राजीव गांधी ने सोनिया गांधी के साथ यहां आदिवासी महिलाओं से मुलाकात कर उनके हालात जाने थे। उस दौर में राजस्थान के कई इलाके अन्न की कमी से जूझ रहे थे। (फाइल फोटो)
राजीव गांधी ने सोनिया गांधी के साथ यहां आदिवासी महिलाओं से मुलाकात कर उनके हालात जाने थे। उस दौर में राजस्थान के कई इलाके अन्न की कमी से जूझ रहे थे। (फाइल फोटो)
अनाज पीसती महिला को देख गेहूं सस्ते किए थे
इस दौरान उनके साथ सीएम हरिदेव जोशी, पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह, शीला कौल सहित अन्य नेता थे। राजीव गांधी जब पहाड़ी पर पहुंचे तो वहां उनकी नजर एक झोंपड़ी पर पड़ी। वहां एक बुजुर्ग महिला चक्की मोटा अनाज जिसे देशी भाषा में कांगणी कहा जाता है, वह पीस रही थी।
इसपर राजीव गांधी ने जब महिला से पूछा कि गेहूं क्यों नहीं इस्तेमाल करते हो तो महिला ने कहा कि गेहूं महंगा है, 5 रुपए किलो मिलता है।
जबकि मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा इत्यादि) 1.5 रुपए किलो ही मिल जाता है। इसपर राजीव गांधी ने महिला से कहा कि अगर गेहूं भी 1.5 रुपए किलो मिल जाए तो क्या इस्तेमाल करोगी?
अपने दौरे के बाद दिल्ली पहुंचते ही राजीव गांधी ने देशभर में आदिवासी इलाकों के लिए 1.5 रुपए किलो के भाव से गेहूं दिए जाने की योजना शुरू की थी। गरीबों के कल्याण के लिए सस्ते अनाज की शुरुआत उस दौर में यहीं से हुई थी।
उस महिला के घर की छत कच्ची होने के कारण बरसात का पानी छत से टपक रहा था। इन हालात को राजीव गांधी ने नोट किया।
बाद में जरूरतमंदों के लिए देशभर में इंदिरा आवास योजना की शुरुआत की थी। अपने इसी दौरे के दौरान उन्होंने बिजली के तार तो देखे मगर दूर-दराज घरों में बिजली नहीं मिली।
जिसके बाद कुटीर ज्योति योजना की शुरुआत की गई। इसके साथ ही गांवों में सर्विस लाइन से लेकर घर में बल्ब फ्री लगवाने की योजना शुरू की गई थी
मीणा बताते हैं कि इसी तरह खेती के लिए पानी और कुएं की जरूरत को भी राजीव गांधी ने इसी दौरे पर महसूस किया था। इसके बाद जीवनधारा कुआं योजना भी शुरू की गई थी।
आदिवासी क्षेत्र में दौरा करने का जबरदस्त असर हुआ। कांग्रेस को आगामी चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला था।
आदिवासी क्षेत्र में दौरा करने का जबरदस्त असर हुआ। कांग्रेस को आगामी चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला था।
राजीव के दौरे से कांग्रेस को मिली थी सीधी जीत
इस दौरे के बाद राजस्थान में 1985 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सीधी जीती मिली थी। तब कांग्रेस ने 113 सीटें हासिल की थी, जबकि बीजेपी को महज 39 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी।
वहीं अगर एसटी रिजर्व सीटों की बात करें तो उस साल कांग्रेस ने 25 में से 21 सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की थी। वहीं बीजेपी सिर्फ 2 सीट जीत पाई थी, 2 सीटें अन्य के खाते में गई थी। खास तौर से दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाकों में तो कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों को छोड़कर सभी जीती थी।
आदिवासियों पर फोकस क्यों?
कांग्रेस का एससी-एसटी सीटों पर फोकस, मिशन-59 चल रहा
कांग्रेस का राजस्थान में पहले से एससी-एसटी सीटों पर फोकस है। इसके लिए राजस्थान में मिशन-59 भी चलाया जा चुका है। इसके तहत कांग्रेस एससी और एसटी समुदाय की 59 सीटों पर फोकस कर रही है।
राजस्थान में 34 सीटें एससी और 25 एसटी सीटें हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 12 और बीजेपी ने 9 एसटी सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2 एसटी सीटें बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) के खाते में आई थीं।
आदिवासियों को कांग्रेस अपना कोर वोटर मानती है। आदिवासी समाज के जननायक बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए राहुल गांधी। (फाइल फोटो)
आदिवासियों को कांग्रेस अपना कोर वोटर मानती है। आदिवासी समाज के जननायक बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए राहुल गांधी। (फाइल फोटो)
बांसवाड़ा संभाग बनाया, भुनाना चाहेगी कांग्रेस
आदिवासी सीटों को फोकस करते हुए ही कांग्रेस ने इस बार बांसवाड़ा को नया संभाग बना दिया है। वहीं सलूंबर को नया जिला बना दिया है। ऐसे में आदिवासियों को साधने पर कांग्रेस का पूरा फोकस है।
बांसवाड़ा संभाग में बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जिले आएंगे। इन तीन जिलों में 11 आदिवासी सीटें हैं। इसके अलावा सलूंबर की 1 और उदयपुर में भी 4 आदिवासी सीटें हैं।
इनमें बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में 2-2, डूंगरपुर में 1, उदयपुर में 1 सीट पर ही कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में कांग्रेस इस बेल्ट में खुद को मजबूत करना चाह रही है।
बीटीपी बड़ी परेशानी, कोर वोट बैंक में सेंध लगाएगी
1990 तक कोर वोट बैंक रहे आदिवासी समुदाय में कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है। दक्षिण जिलों को देखें तो कांग्रेस से ज्यादा सीटें बीजेपी ने जीती।
बीजेपी ने उदयपुर में 4, बांसवाड़ा में 2, डूंगरपुर में 1 सीट जीती। इसके अलावा भारतीय ट्राइबल पार्टी इन इलाकों में दोनों ही पार्टी के लिए चुनौती है।
खासतौर से बीटीपी कांग्रेस को ज्यादा नुकसान करती दिख रही है। यही वजह है कि कांग्रेस यहां अपना पूरा जोर लगा रही है।
पिछले साल 1 नवंबर को जब पीएम मोदी यहां आए थे तब उम्मीद थी कि मानगढ़ धाम वह राष्ट्रीय स्मारक घोषित करेंगे, लेकिन ये आस अधूरी रही थी।
पिछले साल 1 नवंबर को जब पीएम मोदी यहां आए थे तब उम्मीद थी कि मानगढ़ धाम वह राष्ट्रीय स्मारक घोषित करेंगे, लेकिन ये आस अधूरी रही थी।
राहुल गांधी के दौरे में क्या होगा खास?
हालांकि राहुल की बुधवार को मानगढ़ में सिर्फ सभा होगी। इस दौरान वह गोविंद गिरी को याद करते हुए स्मारक पर जाएंगे।
राहुल मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक नहीं घोषित करने पर बीजेपी और प्रधानमंत्री को घेर सकते हैं। कांग्रेसी नेताओं का कहना है राहुल इस दौरान मणिपुर, नूंह जैसे मामलों पर बीजेपी को घेर सकते हैं।
इसके अलावा राजस्थान में नए जिले-संभाग बनाने के अलावा सरकार की योजनाएं गिनाएंगे। वहीं राहुल अपनी सांसदी के मसले पर भी बोल सकते हैं।
मानगढ़ धाम पर सियासत हुई, कांग्रेस वादा कर सकती है
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने पर काफी सियासत हुई थी। पिछले साल 1 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आए थे। माना जा रहा था कि मोदी मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करेंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। इसके लिए सीएम अशोक गहलोत ने भी पीएम को चिट्ठियां लिखी थीं। ऐसे में अब माना जा रहा है कि इसे लेकर कांग्रेस विधानसभा और आगामी लोकसभा को देखते हुए कोई वादा कर सकती है।
आदिवासियों ने कांग्रेस को हमेशा समर्थन दिया है : रघुवीर मीणा
कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य रघुवीर मीणा कहते हैं कि राजस्थान में राहुल गांधी के कैम्पेनिंग की शुरुआत मानगढ़ से होने जा रही है। राजस्थान, एमपी और गुजरात के लोग भी यहां आएंगे।
इसके बाद राहुल गांधी के इस महीने तीन और दौरे होने हैं। आदिवासी समुदाय के लिए कांग्रेस ने हमेशा किया है। रघुवीर मीणा ने दावा किया कि अगले चुनाव में भी कांग्रेस इन इलाकों में अच्छा प्रदर्शन करेगी।
बीटीपी से दोनों पार्टियों को खतरा, जमीन मजबूत करना चाहेंगे राहुल : एक्सपर्ट
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. भानू कपिल कहते हैं कि बीटीपी इन इलाकों में मजबूत हो रही है। आने वाले चुनावों में वो गेन करेगी। कांग्रेस-बीजेपी दोनों को इससे खतरा है।
आदिवासी हिंदूओं में आते हैं या नहीं इस नैरेटिव का बड़ा रोल अगले चुनावों में रहने वाला है। आदिवासी मूल रूप से कांग्रेस का वोटर था।
यहां राहुल गांधी अपना दौरा कर खोई हुई सियासी जमीन फिर से हासिल करने का प्रयास करेंगे। इन इलाकों में राहुल गांधी को जो सपोर्ट मिला है, उसी को भुनाने का प्रयास करेंगे।
कांग्रेस वहां की जनता में यह नरेटिव भी सेट करने का प्रयास करेगी कि अगर बीटीपी अगर 10 सीटें भी जीत जाती है तब भी सरकार नहीं बना पाएगी। उन्हें किसी न किसी सरकार का हिस्सा ही बनना पड़ेगा।
आदिवासियों की शहादत का धाम है मानगढ़
भील आदिवासियों के नेता गोविंद गुरु की अगुवाई अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बड़ी जंग लड़ी थी। इस जंग ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।
इसी से बौखलाए अंग्रेजी शासन ने 17 नवंबर 1913 को राजस्थान गुजरात की सीमा पर बांसवाड़ा के मानगढ़ में करीब 1500 भील आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था। उनकी याद में मानगढ़ पहाड़ी पर एक स्मारक बनाया गया था। इसे मानगढ़ धाम कहते हैं।
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