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अलवर |स्थानीय रेलवे स्टेशन ब्रिटिश हुकूमत समय का बना है। जिसका कायाकल्प आधुनिक रूप से हो गया, लेकिन जनता की मांग पर यहां रानीखेत और पूजा एक्सप्रेस ट्रेन का ठहराव नहीं हो पा रहा है। जिसका मलाल क्षेत्र के लोगों को है। रियासत काल के समय इस रेलवे स्टेशन का निर्माण पत्थरों का उपयोग कर किया और यह पत्थर जमालपुर पंचायत के सताना गांव के पहाड़ों से लाए गए थे। विशेष बात यह थी कि पत्थर चुनाई में किसी भी प्रकार का सीमेंट या चूने का उपयोग नहीं किया गया। उस समय इस पहाड़ से पत्थर पर रॉयल्टी लगती थी, जो खनन विभाग से जारी होती थी। इतना ही नहीं मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन से जयपुर सहित अन्य रेलवे स्टेशन के निर्माण के लिए यहां से पत्थर मालगाड़ी में लगेज होकर जाते थे।
घंटी बजने का सीन कैद : 1995 में रिलीज हुई करण-अर्जुन फिल्म के निर्माण के दौरान मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन में ट्रेन छूटने की घंटी बजने वाला तथा ट्रेन रवाना होने का सीन यहीं से फिल्माया गया था। उस सीन से मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन पूरे देश में प्रसिद्ध हुआ। यहां रियासत काल समय के रिकॉर्ड के अनुसार ब्रिटिश हुकूमत समय के बने इस स्टेशन पर अलवर के स्टेशन से मालाखेड़ा स्टेशन तक अलवर रियासत के राज ऋषि सवाईजय सिंह ने भी कई बार यात्रा की और वह मालाखेड़ा से बीजवाड़ नरूका सहित नाहर शक्ति धाम, पांडुपोल तक भ्रमण के लिए आते रहे हैं।अब हुए कई कार्य
पुराने समय के मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन का अब कायाकल्प आधुनिक रूप से हुआ है। जहां दो प्लेटफार्म, दो पटरी तथा विद्युतीकरण का कार्य हो चुका है। रेलवे स्टेशन भी एयर कंडीशन बनाया गया है। मालाखेड़ा रेलवे स्टेशन का कोड एमकेएच के नाम से है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 264 मीटर यानी 866 फीट के करीब है। सताना के पहाड़ से निकाले गए पत्थर से निर्मित यह रेलवे स्टेशन एयर कंडीशनर के समान ही ठंडा रहता था तथा ट्रेन के आवागमन के दौरान तेजी के धड़-धडाहट से किसी भी प्रकार का कंपन स्टेशन की बिल्डिंग में नहीं होता था।
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