जोधपुर: शहर में साहित्य कुंभ-2023 के दूसरे दिन रविवार को कई संवाद सत्रों में अलग-अलग विषयों पर विचार मंथन का दौर चला। साहित्य और समाज के सरोकार विषय पर हुए संवाद सत्र में मंथन के दौरान सामाजिक सरोकार में साहित्य की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए यह निष्कर्ष उभर कर आए कि साहित्य प्राथमिक रहेगा तभी उसमें समाज की अभिव्यक्ति होगी। साहित्य समाज की संवेदना को व्यक्त करता है और यह समाज की समीक्षा भी है। नन्द भारद्वाज, जयपुर की अध्यक्षता में हुए सत्र का संचालन बीकानेर के शंकर सिंह राजपुरोहित ने किया। सत्र में बीकानेर के मालचन्द तिवाड़ी और मधु आचार्य, जोधपुर के मीठेश निर्मोही एवं प्रो. जहूर खां मेहर जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों ने मंच साझा किया।
समकालीन लेखन के अभिनव प्रयोग, विषय पर संवाद सत्र: डॉ. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल (जयपुर) के संचालन में समकालीन लेखन के अभिनव प्रयोग विषय पर हुए संवाद सत्र में डॉ. बृजरत्न जोशी (बीकानेर), डॉ. पल्लव (नई दिल्ली) ने अपने विचार रखे। डॉ. दुर्गा प्रसाद ने कहा कि भाषा का इतिहास बड़ा पुराना है, अगर गहनता के साथ विश्लेषण किया जाए तो देखने में आता है कि तब से लेकर आज तक हर भाषा में कई तरह के बदलाव हुए हैं और भाषा का बदलाव एक तरह का प्रयोग ही है।
गांधी-नेहरू की सार्वकालिकता आज भी प्रासंगिक: राजस्थान साहित्य उत्सव के दूसरे दिन मीराबाई सभागार में दिन की शुरूआत गांधी-नेहरू दर्शन की सार्वकालिकता विषय पर चर्चा के साथ हुई। फारुख आफरीदी ने मंच संचालन की जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने कहा कि नेहरू गांधी इस दुनिया में हमेशा ही प्रासंगिक रहेंगे। खास तौर पर आज की युवा पीढ़ी को इस बात को जानना जरूरी है कि गांधी और नेहरू की धरोहर कितना महत्त्त्व रखती है।
सत्र में बनारस से आए प्रो. सतीश राय व जस्टिस गोविन्द माथुर ने भी अपने विचार रखे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मीडिया का बदलता स्वरूप पर हुई सार्थक चर्चा: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मीडिया का बदलता स्वरूप विषय पर संवाद सत्र आयोजित किया गया। सत्र की अध्यक्षता ओम थानवी ने की। सत्र में पत्रकारिता जगत से जुड़े जाने माने नाम प्रो. सुधि राजीव, नारायण बारेठ, अमित वाजपेयी, मनोज वार्ष्णेय, डॉ. यश गोयल ने अपने विचार रखे।