कोटा न्यूज़: प्रदेश का सबसे बड़ा अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क अपनी चमक खोता जा रहा है। करोड़ों की लागत से बना वन्यजीव पार्क को खुद वन विभाग ही बर्बाद करने पर तुला है। एक ही साल में बायोलॉजिकल पार्क की कमाई अर्श से फर्श पर पहुंच गई। जनवरी से अब तक पार्क को 9 लाख रूपए का नुकसान हो चुका है। वहीं, 18 हजार से ज्यादा पर्यटकों की संख्या घटी है। महंगा टिकट लेकर पार्क में आने वाले पर्यटक खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं। दरअसल, 143 हैक्टेयर में फैला अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क गत 1 जनवरी से शहरवासियों के लिए खोला गया था। पहले ही दिन हजारों पयर्टक वन्यजीवों का दीदार करने पार्क पहुंचे थे। जिनसे लाखों का राजस्व प्राप्त हुआ। इसी माह 20 हजार से ज्यादा पयर्टक आए थे, जिनसे बायोलॉजिकल पार्क को 10 लाख रूपए की कमाई हुई। लेकिन कमाई का यह आंकड़ा ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका और अगले ही महीने से आय में गिरावट का सिलसिला शुरू हो गया जो बदस्तुर जारी है। हालात यह हैं कि दिसम्बर तक राजस्व घटकर 1 लाख रह गया। असल में बड़े वन्यजीव व सुविधाओं के कारण पर्यटकों का मोहभंग हो गया और टिकट का पैसा अखरने लगा। इसके बावजूद सुविधाओं में विस्तार को लेकर विभाग ने अब कोई कदम नहीं उठाया। बजट के अभाव में यहां र्प्याप्त सुविधाएं नहीं होने से सैलानियों का रूझान माह दर माह कम होता गया, जिससे बायोलॉजिकल पार्क को होने वाली आय में भारी गिरावट होती गई। हालात यह हो गए, मई में 1801 पयर्टक ही यहां घूमने आए जिनसे 81 हजार 980 राजस्व ही प्राप्त हो सका। पांच महीने में ही राजस्व लाखों से हजारों पर पहुंच गया।
जनवरी में हुई थी 10 लाख की कमाई: पार्क से मिले आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी माह में सर्वाधिक राजस्व प्राप्त हुआ हुआ था। पार्क ने 31 दिनों में ही 10 लाख की कमाई की थी। इस माह कुल 20 हजार 682 पर्यटक घूमने आए थे। शनिवार-रविवार छुट्टी के दिन सैलानियों की जबरदस्त भीड़ रही। ऐसे में शाम 4 बजे तक पार्क में प्रवेश दिया गया। माह के अंत तक बायोलॉजिकल पार्क कुल 9 लाख 99 हजार 880 रुपए की कमाई कर चुका था। लेकिन, कमाई का यह आंकड़ा फरवरी से माह दर माह लगातार गिरता गया।
साल में सबसे कम कमाई अप्रेल में:
143 हैक्टेयर में फैला अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में कैफेटेरिया, इंटरपिटेक्शन हॉल, ई-रिक्शा सहित अन्य सुविधाओं के अभाव में विजिट के दौरान परेशानियों के चलते पर्यटकों का मोह भंग होता गया। नतीजन, पांच माह के सफर में बायोलॉजिकल पार्क को अप्रेल में सबसे कम राजस्व मिला। इन 30 दिनों में यहां कुल 1 हजार 723 पर्यटक ही पहुंचे, जिनसे 76 हजार 660 रुपए की ही कमाई हो सकी। यह शुरुआती पांच महीने का सबसे कम राजस्व है।
पैसे और समय की बर्बादी:
बोरखेड़ा निवासी अजय कुश्वाह ने बताया कि वे गत पांच महीने पहले परिवार के साथ अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क घूमने गए थे। यहां प्रत्येक सदस्य के 50 रुपए टिकट लेने के बावजूद अंदर कोई बड़ा वन्यजीव नहीं दिखा। लॉयन व टाइगर नहीं होने से बच्चे मायूस हो गए। बैठने के लिए छायादार शेड तक नहीं है। धूप में परेशान हो गए। यहां आना पैसे और समय की बर्बादी है। विभाग जितना टीकट का पैसा लेता है उतनी सुविधा भी तो देनी चाहिए। वहीं, कोटड़ी निवासी मजहर व अशरफ खान का कहना है कि बायोलॉजिकल पार्क के नाम पर वन विभाग पर्यटकों की जेब काट रहा है। पैसा खर्च करने के बावजूद बब्बर शेर, टाइगर, मगरमच्छ, घड़ियाल, अजगर सहित अन्य बडेÞ वन्यजीव देखने को नहीं मिले। इलेक्ट्रिकल व्हीकल नहीं होने से तीन किमी लंबे ट्रैक पर पैदल घूमना मुश्किल हो जाता है। यहां न तो कैफेटेरिया है और न ही बच्चों के मनोरंजन की सुविधा। वन्यजीवों के नाम पर गिनती के जानवर हैं, जिनकी भी साइटिंग नहीं होती। वाटरकूलर भी पर्याप्त नहीं है। पानी के लिए भी भटकना पड़ता है।
दिसम्बर तक 9 लाख का घाटा:
जनवरी बाद से बायोलॉजिकल पार्क की कमाई का आंकड़ा औंधे मुंह गिरता रहा जो साल के अंत तक जारी रहा। बब्बर शेर, टाइगर, भालू, अजगर, घड़ियाल सहित बड़े वन्यजीवों की कमी से पर्यटकों का रुझान कम होता चला गया। जनवरी में जहां 10 लाख की कमाई हुई थी वहीं 15 दिसम्बर तक घटकर 1 लाख 18 हजार रह गई। वहीं, पर्यटकों की बात करें तो 2 हजार 880 ही वन्यजीव देखने पार्क पहुंचे। सालभर में 18 हजार पर्यटक की संख्या में गिरावट दर्ज हुई। सुविधाओं की कमी के कारण सैलानियों को टिकट का पैसा तक अखरने लगा है।
18 हजार पर्यटकों की घटी संख्या:
पार्क तीन किमी लंबे दायरे में फैला हुआ है। यहां मुख्यत: बड़े वन्यजीवों की कमी के अलावा कैफेटेरिया, पर्यटकों के बैठने के लिए छायादार शेड तक नहीं है। ई-रिक्शा सुविधा नहीं होने से पर्यटकों का इतना लंबा पैदल चलना मुश्किल हो जाता है। नतीजन, जनवरी में जहां सैलानियों की संख्या 20 हजार 682 थी वहीं, दिसम्बर के मध्य तक घटकर 2 हजार 880 ही रह गई। हलांकि, गर्मी के सीजन अप्रेल में सबसे कम पर्यटक पहुंचे थे।
यहां अभी यह हैं वन्यजीव:
बायलॉजिकल पार्क में मांसाहारी वन्यजीवों में 3 पैंथर, 4 भेड़िए, 1 सियार और 3 जरख हैं। वहीं, 2 भालू थे, जिनमें से एक नर भालू की मौत हो गई। ऐसे में यहां एक ही मादा भालू है। इसके अलावा शाकाहारी वन्यजीवों में हिरण, चिंकारा, नील गाय, ऐमू पक्षी आदि वन्यजीव हैं। वर्तमान में यहां लॉयन, टाइगर और लोमड़ी का जोड़ा लाया जाना है।
चिड़ियाघर से वन्यजीवों की नहीं हुई शिफ्टिंग:
पार्क के निर्माण के दौरान 44 एनक्लोजर बनने थे लेकिन प्रथम चरण में मात्र 13 ही बन पाए। जबकि, बजट के अभाव में 31 एनक्लोजर बनने बाकी हैं। जब तक यहां एनक्लोजर नहीं बनेंगे तब तक पुराने चिड़ियाघर में मौजूद अजगर, घड़ियाल, मगरमच्छ सहित दर्जन से अधिक वन्यजीव बायलॉजिकल पार्क में शिफ्ट नहीं हो पाएंगे।
25 करोड़ मिले तो शुरू हों ये कार्य:
पार्क में द्वितीय चरण के तहत 25 करोड़ की लागत से कई निर्माण कार्य होने हैं। जिनमें 31 एनक्लोजर, स्टाफ क्वार्टर, कैफेटेरिया, वेटनरी हॉस्पिटल, इंटरपिटेक्शन सेंटर, पर्यटकों के लिए आॅडिटोरियम हॉल, छांव के लिए शेड, कुछ जगहों पर पथ-वे सहित अन्य कार्य शामिल हैं।
घटता गया राजस्व:
जनवरी- 20682- 9,99,880
फरवरी- 9839- 4,68,260
मार्च- 4730- 2,22,380
अप्रेल- 1723- 76,660
मई- 1801-81,980
जून- 4814- 2,31,020
जुलाई- 4814-3,55,190
अगस्त-8828-3,91,966
सितंबर-2933-1,20,836
अक्टूबर-3074-1,20,660
नवंबर-5398-2,03404
15 दिसंबर-2880- 1,18042
30 करोड़ से बना था पार्क:
शहर से करीब 8 किमी दूर वन्यजीव विभाग ने वर्ष 2017 में 30 करोड़ की लागत से बायोलॉजिकल पार्क का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। निर्माण 2019 में पूरा किया जाना था लेकिन कोविड के 2 साल के कारण काम समय पर पूरा नहीं हो सका। इसके बाद 21 नवंबर 2021 को प्रथम चरण का काम पूरा हुआ था। जिसके तहत पार्क में 13 एनक्लोजर बनाए गए। इसके अलावा पाथ-वे, सुविधाघर, छायादार शेड, जल व्यवस्था के लिए टैंक सहित फेंसिंग करवाई गई।
शेर, टाइगर और लोमड़ी लाने की तैयारी:
बायोलॉजिकल पार्क में दिसम्बर के अंत तक बब्बर शेर-शेरनी को उदयपुर के सज्जनगढ़ बायोलॉजिकल पार्क, बाघ-बाघिन व लोमड़ी का जोड़ा जयपुर के नाहरगढ़ से लाया जाएगा। इसकी तैयारियां पूरी कर ली गई है। इसके लिए सीडब्ल्यूएलडब्ल्यू से परमिशन मिल चुकी है। सीजेडएआई से भी सहमति मिल जाएगी। वर्तमान में अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में एक मादा भालू है, जिसका भी जोड़ा बनाने के लिए नर भालू लाने के भी प्रयास हैं। वहीं, द्वितीय चरण में बेहद महत्वपूर्ण काम होने थे, जो बजट के अभाव में नहीं हो सके। सरकार को प्रस्ताव भेजे हैं।
- अनुराग भटनागर, डीसीएफ उड़नदस्ता, सीसीएफ आॅफिस कोटा