भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य कोटा में बने क्रोकोडाइल पॉइंट से हर साल पर्यटकों से कमा रहा 6 लाख रूपए
कोटा: चन्द्रलोई मगरमच्छों के लिए वरदान साबित हो रही है। नदी में अनगिनत मगरमच्छ हैं, जिनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। भारी भरकम मगरमच्छ यहां आने वाले पर्यटक व स्थानीय बाशिंदों को रोमांचित करते हैं तो भय में भी डाल देते हैं। शहर में आबादी के बीच गुजरते नदी-नालों में सैंकड़ों मगरमच्छ पल रहे हैं। शेडयूल-1 का एनीमल होने के बावजूद इनके संरक्षण के प्रति वन विभाग गंभीर नहीं है। हालात यह हैं, कहीं कैमिकल युक्त गंदे नालों में तो कहीं प्रदूषित होती नदियों में पानी का सुल्तान बेकद्री का शिकार है। जबकि, नदी-नालों के आसपास वनविभाग की बेशकीमती जमीन हैं, जो यूं ही अतिक्रमण की भेंट चढ़ रही हैं। जल-जंगल, जमीन बचानी हैं तो नदी किनारे क्रोकाडाइल प्वाइंट विकसित करना ही होगा। दरअसल, भैंसरोडगढ़ सैंचुरी की तर्ज पर शहर में भी क्रोकोडाइल डेस्टीनेशन बनाया जाना चाहिए। इसके दो बड़े फायदे होंगे। जल-जंगल जमीन सुरक्षित रहेगी वहीं, पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। भैंसरोड़गढ़ को प्रतिवर्ष पर्यटकों से लाखों की आमदनी होती है।
16 किमी क्षेत्र में मगरमच्छों की संख्या अधिक
वन्यजीव प्रेमी शेख जुनैद ने बताया कि चन्द्रलोई नदी मानस गांव के पास चंबल में मिल जाती है, लेकिन इससे पहले करीब 15 से 16 किलोमीटर में मगरमच्छों की काफी संख्या है। रायपुरा, देवलीअरब, राजपुरा, जग्गनाथपुरा, बोरखंडी हाथीखेड़ा, अर्जुनपुरा में इन्हें बड़ी तादाद में देखा जा सकता है। हालांकि क्षेत्र में मगरमच्छों की गिनती कभी नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि चन्द्रेसल गांव में प्राचीन मठ है। इसमें शिव मंदिर है। इस मठ के पास चन्द्रलोई नदी नदी के किनारों में इन्हें आए दिन सुस्ताते देखा जा सकता है। लगता है जैसे मगरमच्छों ने भगवान शिव की शरण में अपना डेरा डाल लिया है। वन्यजीवों की प्रथम श्रेणी का प्राणी होने के बावजूद वन विभाग मगरमच्छों की ओर ध्यान नहीं दे रहा।
भैंसरोडगढ़ की प्रतिवर्ष कमाई 6 लाख
भैंसरोडगढ़ अभ्यारणय में क्रोकोडाइट प्वाइंट 195 स्वायर किमी में फैला हुआ है। जिसे देखने के लिए यहां प्रतिवर्ष 6 हजार पर्यटक आते हैं, जिनसे करीब 6 लाख रूपए की आय होती है। रेंजर दिनेश नाथ ने बताया कि सैंचुरी में प्रवेश के लिए 85 रुपए का टिकट है। जिनमें स्टूडेंट्स से 40 तथा विदेशी पर्यटकों से 450 रुपए वसूले जाते हैं। इसके अलावा कार के 305, बाइक के 55, तीन पहिया वाहनों के 300 तथा बस लेकर सैंचुरी में घुमने का किराया 450 रुपए है। यहां चंबल नदी का विहंग्म नजारा और मगरमच्छों का झुंड देख सैलानी रोमांचित हो उठते हैं। ऐसा ही क्रोकोडाइल प्वाइंट कोटा शहर में भी बनाया जाना चाहिए।
वो प्वाइंट जहां सालभर रहता है पानी
चंद्रलोही नदी के कुछ ऐसे प्वाइंट हैं, जहां पूरे वर्ष पानी भरा रहने के कारण मगरमच्छों का जमावड़ा लगा रहता है। जिसमें देवलीअरब, राजपुरा, अर्जुनपुरा, चंद्रसेल, बोरखंडी, हाथीखेड़ा, धाकड़खेड़ी एनिकट, मानसगांव शामिल हैं।
सर्दी आते ही किनारों पर डेरा
नेचर प्रमोटर जैदी ने बताया कि सर्दी आने के साथ ही ये किनारे पर आ जाते हैं दिनभर धूप का आनंद लेते रहते हैं। हाथीखेड़ा, मानसगांव में एक साथ 10 से 12 मगरमच्छों का झुंड देखा जा सकता है।
नदी के बीच-बीच में जहां पानी सूख जाता है, वहीं बीच में आकर बैठ जाते हैं। दिनभर धूप सेकते हैं। कई बार तो ये बस्ती की ओर भी रुख कर लेते हैं। ये चतुर भी इतने हैं कि जरा सी आहट होते ही तेजी से पानी में छलांग लगा लेते हैं।
इनका खौफ भी गहरा
नदी के आसपास बसे क्षेत्र के वासियों में मगरमच्छों का खौफ है। लोगों ने नदी में नहाना व सब्जियां धोना भी बंद कर दिया है। कब कहां किसे मगरमच्छ अपने जबड़े में जकड़ ले। क्षेत्रवासियों के अनुसार कई बार इस तरह की घटनाएं पहले भी हो चुकी है। कुछ साल पहले एक बालक को मगरमच्छ ने शिकार बना लिया था। नदी में पानी पीने के लिए आने वाले मवेशियों को भी ये शिकार बना लेते हैं।
चंद्रलोही की कोख में पल रहे सैंकड़ों मगरमच्छ
45 किलोमीटर लंबी चंद्रलोही नदी की कोख में सैंकड़ों मगरमच्छ पनप रहे हैं, जो जगह-जगह पानी के बीच चटटानों पर झुंड के रूप में धूप सेंकते नजर आ रहे हैं। जिन्हें देखकर पर्यटक व स्थानीय बाशिंदे रोमांचित हो रहे हैं तो वहीं अनहोनी से भयभीत भी रहते हैं। नदी किनारे खेती-बाड़ी है, जहां काम करने वाले किसानों को हादसे का डर सताता है। क्षेत्रवासियों ने पूर्व में भी नदी किनारों पर तार फेंसिंग करवाने की मांग की थी लेकिन प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। पूर्व में कई हादसे भी हो चुके हैं।
भैंसरोडगढ़ की तर्ज पर हो काम
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने बताया कि शहर में आबादी के बीच से गुजर रही चंद्रलोही नदी, किशोर सागर तालाब व रायपुरा नाले में बड़ी तादाद में मगरमच्छ हैं। यहां भैंसरोडगढ़ अभयाण्य की तर्ज पर क्रोकोडाइल प्वाइंट विकसित किया जाना चाहिए। जिससे पयर्टन को बढ़ावा मिलेगा। वहीं, मगरमच्छों का संरक्षण हो सकेगा। साथ ही रिहायशी इलाकों में मगरमच्छ आने की घटनाओं से भी निजात मिल सकेगी। वहीं, क्रोकोडाइल डेस्टीनेशन बनने से शहर में पर्यटकों का रुझान बढ़ेगा। जिससे वन विभाग को अच्छी-खासी आमदनी भी होगी।
चंद्रलोही किनारे बसे ये गांव
ग्रामीण दीन दयाल शर्मा ने बताया कि चंद्रलोही नदी केबल नगर के उपरी क्षेत्र मंदिरगढ़ से शुरू हो रही है। नदी के दोनों किनारों पर कई गांव बसे हैं। जिनमें मांदलिया, केबल नगर, मवासा, जामपुरा, नगपुरा, भीमपुरा, कैथून, संजय नगर, चैनपुरा, जालीखेड़ा, आरामपुरा, खेड़ारसूलपुर, भोजपुरा, रामराजपुरा, अर्जुनपुरा, बोरखंडी, हाथीखेड़ा, जगदीशपुरा व मानसगांव होते हुए चंबल नदी में मिल जाती है। नदी के किनारों पर तार फेंसिंग नहीं होने से इन इलाकों के बाशिंदों को अनहोनी का डर सताता है।
जालियां लगाकर करें सुरक्षित, क्रोकोडाइल पॉंइंट बने
जैदी बताते हैं कि इन मगरमच्छों व नदी के संरक्षण को लेकर सरकार को ठोस योजना बनानी चाहिए। नदी के घाट पर किनारों से कुछ दूरी पर फैंसिग कर दी जाए तो यह सुरक्षित रह सकते हैं और ग्रामीणों का भय भी दूर हो सकता है। पूर्व में इन मगरमच्छों को रेस्क्यू करने की बात भी सामने आई थी, 25 वर्षों में इनकी संख्या कई गुना बढ़ गई है। सरकार घाट व मवेशियों के पानी पीने के स्थानों को चिन्हित कर फेंसिंग की व्यवस्था करे। नदी किनारे प्राचीन चन्द्रेसल मठ है। यह पुरातत्व की दृष्टि से भी काफी महत्व रखता है। यहां काफी पर्यटक आते हैं, इसे देखते हुए क्षेत्र में क्रोकोडाइल पाइंट विकसित कर दिया जाए तो सोने पे सुहागा होगा।
हर साल 90 से ज्यादा मगरमच्छों का रेस्क्यू
वन विभाग के रेस्क्यू टीम के सदस्य धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि साल करीब 90 से ज्यादा मगरमच्छों का आबादी क्षेत्रों से रेस्क्यू किया जाता है। पिछले साल की बात करें तो 85 से ज्यादा मगरमच्छों का रेस्क्यू कर चुके हैं। शहर के विभिन्न रिहायशी इलाकों में आए दिन मगरमच्छ के आने के मामले सामने आ रहे हैं। गत वर्ष नवम्बर माह में बोरखेड़ा व स्टेशन क्षेत्र के भदाना इलाके में तीन-तीन मगरमच्छों का रेस्क्यू किया गया। बोरखेड़ा क्षेत्र में तो आए दिन कॉलोनियों में मगरमच्छों की मौजूदगी बनी रहती है। रेस्क्यू टीम मगरमच्छों को पकड़ सावनभादौं डेम में छोड़ती है।
वन्यजीव प्रेमियों ने दिए सुझाव
- नाले किनारे चारों तरफ तार फेंसिंग कर दी जाए।
- वन विभाग को लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलानी चाहिए, ज्यादा से ज्यादा हेल्पलाइन नम्बर बांटना चाहिए।
- एक से ज्यादा क्रोकोडाइल रेस्क्यू टीम बनाई जाए।
- वन्यजीव विभाग रेस्क्यू के दौरान मगरमच्छों पर टेगिंग जरूर करवाएं।
- नहर व नालों में मृत जीव-जंतु, जानवर, मटन-चिकन के अवशेष व खाद्य सामग्री न फेकें।
- जब मगरमच्छों को भोजन नहीं मिलेगा तो वह आबादी क्षेत्रों से सटे नहर-नालों में नहीं आएंगे।
मगरमच्छ को मारने पर 7 साल की सजा
बायोलॉजिकल पार्क के फोरेस्टर बुद्धराम जाट ने बताया कि मगरमच्छ शेड्यूल-1 श्रेणी का वन्यजीव है। इसे नुकसान पहुंचाने या मारने पर गैर जमानती 7 साल की सजा का प्रावधान है। जबकि, जुर्माने का प्रावधान नहीं है। कई बार आबादी क्षेत्र में घुस जाने के दौरान लोग मगरमच्छ पर पत्थरों से हमला कर देते हैं।
पर्यटकों के लिए व्यू प्वाइंट विकसित करेंगे
शहर के सभी नदी-नाले चंबल से जुड़े हैं, जहां हर जगह मगरमच्छ की मौजूदगी है। क्रोकोडाइल प्वाइंट बनाने के लिए ऐसी जगहों का चयन किया जाता है, जहां सालभर पानी भरा रहता हो। चंद्रलोही नदी व रायपुरा नाले से जुड़ी ऐसी ही जगहों को चिन्हित कर रहे हैं। इसी दिशा में देवलीअरब नाले को चिन्हित किया है। जल्द ही यहां क्रोकोडाइल प्वाइंट विकसित किया जाएगा। नाले के चारों ओर तार फेंसिंग कर पर्यटकों के लिए व्यू प्वाइंट विकसित करेंगे। बजट के लिए सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेज दिए हैं। बजट आते ही कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
-जयराम पांड्य, डीएफओ वन मंडल कोटा
रायपुरा से देवली अरब तक हो फेंसिंग
चंद्रलोही नदी करीब 45 किमी लंबी है और मानसगांव के पास चंबल में मिल जाती है। चंद्रलोही में बड़ी संख्या में मगरमच्छ हैं। वन विभाग को यहां क्रोकोडाइल प्वाइंट बनाकर पर्यटन विकसित करना चाहिए। जिससे वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास सुरक्षित रहेगा। वहीं, बेशकीमती वनभूमि अतिक्रमण से मुक्त रहेगी। वहीं, रायपुरा नाले में पूरे साल पानी भरा रहता है, इसलिए यहां बड़ी तादाद में मगरमच्छ रहते हैं। ऐसे में रायपुरा से देवलीअरब तक फेंसिंग कर क्रोकोडाइल प्वाइंट बनाना चाहिए।
-डॉ. कृष्नेंद्र सिंह नामा, बायोलॉजिस्ट एवं रिसर्च सुपरवाइजर
पानी का ट्रीटमेंट जरूरी
शहर में क्रोकोडाइल प्वाइंट बनना ही चाहिए। लेकिन, उससे पहले नदी-नालों के पानी का ट्रीटमेंट करना जरूरी है। रायपुरा नाले में फैक्ट्रियों का कैमिकलयुक्त पानी का प्रवाह होता है और यह पानी देवलीअरब होते हुए चंद्रलोही में मिलता है। जिससे नदी-नालों का पानी दूषित हो रहा है। इसमें रहने वाले मगरमच्छों का जीवन काल घट जाता है। इसके अलावा प्रजन्न क्षमता खत्म हो सकती है। साथ ही कई विकार पैदा हो सकते हैं।
-हरिमोहन मीणा, चंबल विशेषज्ञ, सवाईमाधोपुर