राजस्थान

राजस्थान में कांग्रेस के पर्याय बन चुके हैं अशोक गहलोत

Ashwandewangan
19 Jun 2023 6:30 PM GMT
राजस्थान में कांग्रेस के पर्याय बन चुके हैं अशोक गहलोत
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जयपुर। राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए राजनीतिक चौसर बिछनी शुरू हो गई है। राजनीति की समझ रखने वाले पंडित मान रहे हैं कि कांग्रेस और भाजपा की चुनावी रणनीति को अभी और स्पष्ट होना है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने ही दम पर चुनावी माहौल को बनाने के लिए निकल पड़े हैं। वो कांग्रेस आलाकमान के अंतिम निर्णय का इंतजार किए बिना जनवरी से ही चुनावी तैयारी में उतर गए हैं। उनका इस बार का बजट भी आगामी चुनावों को समर्पित ही था। इसके अलावा नए जिलों की घोषणा ने भी गहलोत सरकार के प्रति असंतोष को बढ़ने से रोका है। राजस्थान के सभी जिलों में गहलोत का जाना तथा वहां की राजनीतिक परिस्थितियों को निकटता से समझना उनको राजनीतिक बढ़त दे रहा है।

उधर सचिन पायलट सिवाय कसमसाने के कुछ कर नहीं पा रहे हैं, एक के बाद एक अवसर चूकने के कारण उनके समर्थक भी अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ रूख कर रहे हैं। पांच साल पहले सचिन पायलट का जो कद राजस्थान और कांग्रेस में था, वो अब सिमटकर चुल्लू भर रह गया है। पहले सचिन पायलट समर्थक यह मानते थे कि सचिन पायलट की नाराजगी कांग्रेस और सरकार को भारी पड़ेगी लेकिन समय के प्रवाह में सचिन पायलट इतना पीछे चले गये हैं कि उनके पास अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की शरण में जाने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बचा है। इसीलिए वो सोनिया परिवार की शरण में है, जिससे उनकी थोड़ी बहुत राजनीतिक हैसियत इज्जत के साथ बच जाए।

सचिन पायलट को यह भी समझ में आ रहा होगा कि जितने भी विधायक उनके साथ गये थे, उनमें से ज्यादातर विधायक वो थे जिनके विधानसभा क्षेत्र में उन्हें गूजर मतदाताओं ने वोट किया था। लेकिन जब अब सचिन पायलट खुद ही अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं तो वो किस प्रकार से गूजर मतदाताओं को यह समझा पायेंगे कि वो राजस्थान में कांग्रेस का भावी चेहरा हैं, और यदि कांग्रेस दुबारा से सत्ता में लौटती है तो पायलट सत्ता के केन्द्र में होंगें !

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्य व्यवस्था देखकर यह समझ में आ रहा है कि वो ही राजस्थान में कांग्रेस का पर्याय बन रहे हैं, राजस्थान में कांग्रेस को चुनाव में जाना है तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पीछे पीछे ही चलना पड़ेगा। इस बात का सीधा सा मतलब यह है कि इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही तय करेंगे कि उन्हें किस व्यक्ति को चुनाव लड़ाना हैं और वे किस विधायक को घर बिठाना चाहते हैं। उनकी तैयारी इस ओर भी इशारा कर रही है कि वो कांग्रेस में बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे, जिससे कांग्रेस इस बार नए चेहरों पर चुनाव लडने के लिए विधानसभा क्षेत्रों में जाएगी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ये कह सकेंगें कि जिन विधायकों से जनता को शिकायत थी उन्हें बदल दिया गया है।

यह बात भी गौर करने लायक है कि कांग्रेस का संगठन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अलग हटकर कोई भी कार्यक्रम या जनांदोलन नहीं कर रहा है। पिछले दिनों कांग्रेस के कार्यकर्ता जरूर सरकार द्वारा आयोजित राहत कैंपों में सरकारी कर्मचारियों के साथ खडे़ दिखे थे, इसके अलावा पिछले साढे़ चार साल में वे भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की राजनीतिक कुश्ती का नजारा ही देख रहे थे।

इसी राजनीतिक वातावरण में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मतदाताओं के मूड को भांपते हुए अपने आप को भी हिन्दू कहना शुरू कर दिया है, वो मतदाताओं के मन मस्तिष्क में यह बात अच्छे से बिठाने की कोशिश कर रहे हैं कि सिर्फ भाजपा को ही वोट देने वाले हिन्दू नहीं हैं, जो लोग भाजपा को वोट नहीं देते वो भी हिन्दू हैं। तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मनोवैज्ञानिक बढ़त को कायम कर लिया है। अब इंतजार भाजपा का है कि वो मुख्यमंत्री गहलोत की इस मनोवैज्ञानिक बढ़त को रोकने के लिए किस तरह की रणनीति बनाती है।

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प्रकाश सिंह पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में हैं। साल 2019 में उन्होंने मीडिया जगत में कदम रखा। फिलहाल, प्रकाश जनता से रिश्ता वेब साइट में बतौर content writer काम कर रहे हैं। उन्होंने श्री राम स्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी लखनऊ से हिंदी पत्रकारिता में मास्टर्स किया है। प्रकाश खेल के अलावा राजनीति और मनोरंजन की खबर लिखते हैं।

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