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कांग्रेस में कल जो घटनाक्रम घटित हुआ, इसके लिए प्रभारी महासचिव अजय माकन जिम्मेदार है । उन्होंने बिना विधायकों की राय जाने बिना जबरन ऐसा मुख्यमंत्री थोपने की कोशिश कर रहे थे जिस नाम पर विधायकों को अंदरूनी नाराजगी थी । प्रभारी महासचिव की भूमिका में माकन असफल साबित हुए । ऐसे ही महासचिवों के कारण कांग्रेस का बेड़ा गर्क हो रहा है ।
प्रभारी महासचिव होने के नाते अजय माकन की यह जिम्मेदारी थी कि वे विधायक और पार्टी के बड़े नेताओ से बात करते । बजाय विधायको की नब्ज टटोलने के वे कई घंटों पांच सितारा होटल में ही मस्त रहे । चूंकि मल्लिकाजुर्न खड़गे पहली दफा पर्यवेक्षक के तौर पर जयपुर आए थे । उनको राजस्थान की राजनीति और कांग्रेसी विधायको के मिजाज के बारे में ज्यादा जानकारी नही थी । लेकिन माकन दर्जनों बार राजस्थान आ चुके है तथा यहां की राजनीतिक आबोहवा से पूर्णतया वाकिफ है ।
पता चला है कि राजस्थान में तुरन्त सीएम बदलने का सुझाव भी अजय माकन का था । उन्होंने सोनिया से मुलाकात कर इस बात के लिए राजी कर लिया कि गहलोत के स्थान पर सचिन पायलट को सीएम बनाने में कतई देरी नही करनी चाहिए । आनन फानन में माकन और खड़गे को पर्यवेक्षक नियुक्त कर उन्हें जयपुर भेजा गया । सबसे बड़ी गलती यही हुई । आने से पहले इन दोनों पर्यवेक्षकों ने गहलोत को भी विश्वास में नही लिया और नया सीएम थोपने के लिए मेहमानों की तरह जयपुर आ धमके ।
प्रभारी होने के नाते माकन को बखूबी पता था कि गहलोत और पायलट के रिश्तों में खटास है । जब उन्हें पता था तो उन्होंने गहलोत को ओवरटेक कर पायलट को सीएम बनाने में इतनी जल्दबाजी क्यो दिखाई ? गहलोत जब सीएम पद छोड़ने के लिए राजी होगये थे, ऐसे में दिल्ली से एकाएक पर्यवेक्षक भेजना विधायको का सरासर अपमान था । माकन को यह भी पता है कि गहलोत सीएम पद के लिए पायलट के नाम पर सहमत नही है तो उन्होंने आलाकमान को अंधेरे में क्यो रखा ?
जिस अंदाज में दोनों पर्यवेक्षक फैसला लादने के लिए जयपुर आए थे इससे विधायको के साथ साथ गहलोत का आक्रोशित होना स्वभाविक था । गहलोत प्रारम्भ से नही चाहते थे कि उनके स्थान पर पायलट कुर्सी पर काबिज हो । लेकिन इसके बावजूद आलाकमान के नाम पर पायलट को थोपने की कोशिश की तो गहलोत ने दिखा दिया कि उनकी इच्छा के बिना राजस्थान में पत्ता भी नही हिल सकता है । माकन की बचकाना हरकतों की वजह से गहलोत, पायलट, आलाकमान के साथ साथ पूरी पार्टी की जबरदस्त किरकिरी हुई ।
हालांकि रायता काफी फैल चुका है । फिर भी आपसी सहमति से इस मामले को निपटाया जा सकता है । यह तो अब तय हो ही गया है कि कांग्रेसी विधायको को सीएम के रूप में पायलट स्वीकार नही है । गहलोत इस पद पर बने नही रहना चाहते । ऐसे में किसी अन्य अनुभवी और बुजुर्ग विधायक को सीएम बनाकर कांग्रेस अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः पा सकती है । अनुशासनहीनता का चाबुक दिखाकर विधायको को डराया और धमकाया नही जा सकता है । आपसी सुलह से हर समस्या का समाधान निकल सकता है । फिर इस समस्या का समाधान क्यो नही
न्यूज़ क्रेडिट: specialcoveragenews
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