राजस्थान

झुंझनूं से एक अजीबोगरीब मामला आया सामने, आश्रम के शिखर में निकला 150 साल पुराना गाय का घी, महंत ने किया ये दावा

Renuka Sahu
24 May 2022 5:51 AM GMT
A strange case came to the fore from Jhunjhunu, 150 years old cows ghee came out in the summit of the ashram, Mahant claimed this
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फाइल फोटो 

राजस्थान के झुंझनूं से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जहां एक आश्रम के शिखरबंद में लगाए कलश में रखा घी 150 साल बाद भी उसी ताजगी व महक के साथ मिला है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजस्थान के झुंझनूं से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जहां एक आश्रम के शिखरबंद में लगाए कलश में रखा घी 150 साल बाद भी उसी ताजगी व महक के साथ मिला है. 150 साल पुराने इस घी के कलश को देखने के लिए आश्रम में लोगों की भीड़ जुट रही है.

आश्रम के शिखरबंद में लगा था कलश
जानकारी के मुताबिक, ये मामला झुंझुनूं के बिसाऊ के समीप गांव टांई के नाथ आश्रम का है. गांव के भवानी सिंह ने बताया कि इन दिनों आश्रम के नवनिर्माण का कार्य चल रहा है, जब शिखरबंद को हटाया गया तो उसमें घी से भरे कलश को सुरक्षित तरीके से वहां से उतारा गया. घी देखने में एकदम ताजा तथा सुगंध भी ताजातरीन घी के जैसे मिली तो ग्रामीणों को उस कलश व घी को देखने की होड़ सी हो गई.
आश्रम को बने हो गए हैं 150 साल
आश्रम के सोमनाथ महाराज ने बताया कि नवनिर्माण के दौरान शिखर बंद बनते समय ​दोबारा इसी घी से भरे कलश को यहां ​स्थापित किया जाएगा. आश्रम के महंत सोमनाथ महाराज कहते हैं आश्रम को बने करीब 150 साल से ज्यादा हो गए हैं, निर्माण के वक्त ही शिखर में घी का कलश रखा गया था. ऐसे में घी 150 साल पुराना है. महंत ने बताया कि अक्सर वो सुनते थे कि गाय का घी लंबे समय तक ताजा रहता है.
काफी पुराना है आश्रम का इतिहास
आपको बता दें कि झुंझुनूं मुख्यालय से चूरू रोड पर करीब 35 किलोमीटर दूर मन्नानाथ पंथियों का आश्रम बना हुआ है. इस आश्रम का इतिहास काफी पुराना है. ग्रामीण के मुताबिक इस आश्रम का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है. राजा अपना राजपाट छोड़कर तपस्या के लिए आए थे. बाबा गोरखनाथ ने उन्हें कहा था कि जहां पर यह घोड़ा रूक जाए. वहीं पर अपना तपस्या स्थल बना लेना. राज रशालु का घोड़ा इसी भूमि पर आकर रूका था. रशालु ने यहां पर तपस्या की थी.
आश्रम को लेकर ये है मान्यता
गोरखनाथ अपने शिष्य को संभालने के लिए टांई की इस तपस्या भूमि पर आए थे. रशालु तपस्या में लीन थे. बाबा गोरखनाथ उन्हें मन्ना नाथा नाम दिया था. तब ही मन्ना नाथी पंथ शुरू हुआ था. ग्रामीण बताते है कि टांई का नाम भी इसी मठ से जुड़ा हुआ है. कहते हैं कि गोरखनाथ के शिष्य रशालु ने अपना झोला एक सूखी टहनी पर टांग दिया था. इससे वह सूखी टहनी हरी हो गई थी. यहीं से इस गांव का नाम टांई पड़ गया था. गांवों में पेड़ की टहनी को भी टांई कहते हैं.
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