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8 गवर्नमेंट पीजी कॉलेजों में बड़ी संख्या में रेगुलर से प्राइवेट हुए स्टूडेंट्स

Admin Delhi 1
16 May 2023 2:38 PM GMT
8 गवर्नमेंट पीजी कॉलेजों में बड़ी संख्या में रेगुलर से प्राइवेट हुए स्टूडेंट्स
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कोटा: कोटा यूनिवर्सिटी सिर्फ डिग्री ही नहीं मानसिक तनाव भी बांट रही है। विश्वविद्यालय ने अपनी सनक पूरी करने के लिए सैंकड़ों बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया। अधूरी तैयारियों व आधा सत्र खत्म होने के बावजूद सेमेस्टर प्रणाली थोपना विद्यार्थियों के लिए घातक साबित हुआ। इसके गंभीर नतीजे हाल ही में सम्पन्न हुई पीजी प्रिवियस के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में देखने को मिले। विवि के अव्यवहारिक निर्णय से महाविद्यालयों में बड़ी संख्या में विद्यार्थी रेगूलर से प्राइवेट हो गए। दरअसल, वर्तमान सत्र में हाड़ौती के 8 राजकीय महाविद्यालयों में पीजी प्रिवियस में 1 हजार 841 बच्चों ने रेगूलर एडमिशन लिया था। जिसमें से 232 स्टूडेंटस ने एग्जाम फॉर्म न भरकर नियमित से स्वयंपाठी हो गए।

कोटा विश्वविद्यालय की लापरवाही के ये आए नतीजे

8 कॉलेजों में 232 विद्यार्थी हुए रेगुलर से प्राइवेट

हाड़ौती के 8 राजकीय पीजी कॉलेजों से प्राप्त हुए आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष विभिन्न संकायों के पीजी प्रिवियस में कुल 1 हजार 841 विद्यार्थियों ने रेगूलर एडमिशन लिया है। जिसमें से 1 हजार 609 बच्चों ने प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा के लिए फॉर्म भरे हैं। जबकि, 232 ऐसे विद्यार्थी हैं, जिन्होंने एग्जाम फॉर्म न भरकर स्वयं को रेगूलर से प्राइवेट कर लिया है। जब इसकी पड़ताल की तो सबसे बड़ा कारण एक साल में दो बार परीक्षा फीस देना सामने आया। आर्थिक कमजोरी के कारण बच्चों को मजबूरन स्वयंपाठी बनने को मजबूर हुए।

आटर्स-कॉमर्स में सबसे ज्यादा स्टूडेंट्स हुए प्राइवेट

परीक्षा फॉर्म न भरकर खुद को नियमित विद्यार्थी से स्वयंपाठी बनने की दिशा में कदम उठाने वालों में सबसे ज्यादा संख्या आर्ट्स व कॉमर्स स्टूडेंट्स की हैं। शहर के दोनों आर्ट्स कॉलेज में एमए प्रिवियस में कुल 975 विद्यार्थियों ने रेगूलर एडिमिशन लिया था। जिसमें से 119 स्टूडेंट्स ने एग्जाम फॉर्म न भकर खुद को स्वयंपाठी कर लिया। इनमें सबसे अधिक संख्या गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज की है। यहां कुल 604 ने एडमिशन लिया और 81 बच्चों ने एग्जाम फॉर्म भरने से दूरी बनाई। इसी तरह दोनों कॉर्मस कॉलेज के आंकड़ें देखें तो सामने आया कि 377 ने एडमिशन लिया। जिसमें से 67 ने एग्जाम फॉर्म नहीं भरे। इनमें गवर्नमेंट कॉमर्स में 221 ने दाखिला लिया और 37 ने फॉर्म नहीं भरे। इसी तरह जेडीबी वाणिज्य में 371 ने एडमिशन लिया और 38 ने दूरी बनाई रखी। सिलेबस पूरा न होना और गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष दो गुनी फीस और साल में दो बार देना सबसे बड़ा कारण सामने आया।

सबसे कम संख्या साइंस में

सेमेस्टर सिस्टम से दूरी बनाने वालों में सबसे कम संख्या साइंस कॉलेज के विद्यार्थियों की रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि विज्ञान में सेमेस्टर प्रणाली पिछले चार-पांच वर्षों से जारी है। ऐसे में विद्यार्थी इस सिस्टम से पूरी तरह से ढल चुके हैं और सेमेस्टर उनकी आदत में आ चुका है। हालांकि, दोनों ही साइंस कॉलेज से 28 विद्यार्थियों ने एग्जाम फॉर्म भरने में रुची नहीं दिखाई। इनमें सबसे ज्यादा संख्या 21 गवर्नमेंट साइंस कॉलेज की है। वहीं, बूंदी व झालावाड़ गर्ल्स कॉलेज में भी बड़ी छात्राओं ने इस सिस्टम को नकार दिया।

सेमेस्टर से दूरी के प्रमुख कारण

साल में दो बार दोगुना फीस

सेमेस्टर प्रणाली से दूरी बनाने का सबसे प्रमुख कारण आर्थिक भार है। प्रिवियस पूरा करने के लिए विद्यार्थियों को 6-6 माह में दो बार परीक्षा देनी है। जिसके लिए उन्हें दो बार ही एग्जाम फॉर्म भरना है। इसके लिए उन्हें गत वर्ष की तुलना में दो गुना फीस साल में दो बार देनी होगी। ऐसे में आर्थिक भार बढ़ने से विद्यार्थी रेगुलर से प्राइवेट होने को मजबूर हो गए। छात्रों ने बताया कि पिछले साल एमए प्रिवियस की फीस 1690 रुपए थी। जबकि, इस वर्ष प्रथम सेमेस्टर की फीस ही 2265 रुपए है। अब यही फीस अगले सेमेस्टर में फिर से देनी होगी। ऐसे में दो गुना फीस दो बार देना आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए संभव नहीं है। इसी कारण से स्टूडेंट्स रेगुलर होते हुए भी प्राइवेट हो गए।

ढाई माह में हो रही 6 माह की परीक्षा

शैक्षणिक सत्र 2022-23 शुरू से ही निर्धारित समय से देरी से चल रहा है। महाविद्यालयों में पिजी प्रिवियस के एडमिशन नवम्बर माह से शुरू हुए थे, जो जनवरी तक जारी रहे। क्योंकि, दिसम्बर माह सरकारी छुट्टियों व प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन में ही गुजर गया। वहीं, आयुक्तालय ने 19 जनवरी को वेटिंग में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए फिर से एडमिशन पोर्टल शुरू कर दिया। ऐसे में 27 जनवरी तक तो एडमिशन प्रक्रिया ही जारी रही। हालांकि, कक्षाओं का संचालन 15 जनवरी के मध्य शुरू हो गया था लेकिन, नियमित क्लासें फरवरी से ही संचालित हो सकी। ऐसे में विद्यार्थियों की कक्षाएं करीब डेढ़ माह ही चलने के कारण सिलेबस भी पूरा नहीं हो सका और मार्च के मध्यम प्रथम सेमेस्टर के पेपर शुरू हो गए, जो अप्रेल के प्रथम सप्ताह तक जारी रहे।

अधूरी तैयारियों ने बढ़ाया तनाव

कोटा यूनिवर्सिटी की लेटलतीफी का खामियाजा सबसे ज्यादा पीजी प्रिवियस के विद्यार्थियों को भुगतना पड़ा। एडमिशन प्रक्रिया से निपटने के एक माह बाद ही विश्वविद्यालय द्वारा पहले सेमेस्टर की परीक्षा का शेड्यूल जारी कर दिया। 27 मार्च से परीक्षाएं शुरू हुर्इं। लेकिन कॉलेजों में आर्ट्स, कॉमर्स व साइंस का कोर्स करीब 25 से 35 प्रतिशत अधूरा रहा। वहीं, इस बार 100 प्रतिशत सिलेबस पर ही एग्जाम लिए गए। ऐसे में अधूरी तैयारियों के बीच परीक्षा की टेंशन विद्यार्थियों को अवसाद में डाल रही है। इधर, उच्च शिक्षा आयुक्तालय ने विद्या संबल शिक्षकों को हटाकर विद्यार्थियों की मुसीबत और बढ़ा दी है, जो कक्षाएं लग रहीं थी अब वो भी नहीं लग पा रही। ऐसे में सिलेबस भी पूरे नहीं हो पाए।

क्या कहते हैं छात्र पदाधिकारी

यूनिवर्सिटी को पहले शैक्षणिक सत्र पटरी पर लाना चाहिए था। फिर सेमेस्टर सिस्टम लागू करते तो छात्रहित में होता। बच्चों को सेमेस्टर से अवगत कराते और कब एग्जाम होंगे, कब एग्जाम फॉर्म भरे जाएंगे, इसकी जानकारी सभी स्टूडेंट्स को मिले, ऐसा मैकेनिज्म तैयार करना चाहिए था। जब परीक्षा फॉर्म भरे जा रहे थे तो कॉलेज प्रशासन ने मुझे सूचना नहीं दी गई। परीक्षा फीस भी बड़ा कारण रही। परीक्षा फॉर्म नहीं भर पाने का दुख है। नियमित होते हुए भी अब मुझे प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में परीक्षा देनी पड़ेगी। विवि जमीनी हकीकत जानने के बाद फैसला करती तो अच्छा होता।

- चंचल, छात्रा, एमकॉम प्रिवियस, जेडीबी कॉमर्स

सेमेस्टर सिस्टम अच्छा है लेकिन कोटा यूनिवर्सिटी ने लागू करने में जल्दीबाजी कर दी। शैक्षणिक सत्र पटरी पर लाने के बाद शुरू करते तो ज्यादा बेहतर होता। इस बार 6 महीने की परीक्षा ढाई माह में हो रही है। बच्चों को तैयारी का बिलकुल भी मौका नहीं मिला है। वहीं, पिछले साल प्रिवियस की फीस 1690 रुपए थी, जो साल में एक बार ही देनी थी लेकिन इस बार पहले सेमेस्टर की फीस ही 2300 रुपए रही और सेकंड सेमेस्टर में भी यही एग्जाम फीस देनी पड़ेगी। विवि को परीक्षा फीस में कमी करनी चाहिए।

- दीप्ती मेवाड़ा, छात्रसंघ अध्यक्ष, जेडीबी कॉमर्स कॉलेज

सरकारी कॉलेजों में पढ़ने वाले अधिकतर स्टूडेंट्स आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के होते हैं। इस बार एमएससी प्रिवियस में प्रथम सेमेस्टर की एग्जाम फीस 1725 रुपए थी। लेकिन, प्रैक्टिकल फीस भी देनी होती है, ऐसे में फीस बढ़कर 2300 तक पहुंच गई। आर्थिक भार बढ़ने से कई बच्चों ने इस बार फॉर्म नहीं भरे। हालांकि, साइंस में सेमेस्टर पहले से ही लागू है, लेकिन फीस बढ़ाना गलत है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा होना विवि द्वारा बताया गया है। ऐसे में 6 माह की जगह ढाई माह में परीक्षा कराना बच्चों को मानसिक तनाव की तरफ धकेलना है।

- अंजली मीणा, छात्रसंघ अध्यक्ष, जेडीबी साइंस कॉलेज

शैक्षणिक सत्र आधा बीतने के बाद कोटा विवि ने आनन-फानन में विद्यार्थियों पर सेमेस्टर सिस्टम थोप दिया। जबकि, जनवरी तक तो प्रिवियस के एडमिशन ही चलते रहे। फरवरी में क्लासें लगना शुरू हुई और मार्च के आखिरी सप्ताह में प्रथम सेमेस्टर के एग्जाम हो गए। सिलेबस पूरा नहीं हुआ, बच्चे तनाव में रहे और गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष दोगुना फीस साल में दो बार देना आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के साथ अन्याय है। विवि प्रशासन को सेमेस्टर एग्जाम फीस में कटौती करनी चाहिए।

- मनीष सामरिया, छात्रसंघ अध्यक्ष, गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज कोटा

इनका कहना

यूनिवर्सिटी प्रशासन पहले बच्चों को सेमेस्टर प्रणाली के फायदे-नुकसान की जानकारी देता और प्रचार-प्रसार करने के बाद इस सिस्टम को लागू करती तो ज्यादा बेहतर होता। वहीं, एक ही साल में दो बार सेमेस्टर एग्जाम की फीस से आर्थिक भार बढ़ने के कारण बच्चों ने खुद को स्वयंपाठी रहते हुए परीक्षा देने का मानस बनाया हो, ऐसी संभावना हो सकती है।

- डॉ. संजय भार्गव, प्राचार्य जेडीबी साइंस कॉलेज

नई शिक्षा निति के तहत सही समय पर सेमेस्टर सिस्टम लागू किया गया है। सभी कॉलेजों में अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर सिलेबस पूरा करवाया गया है। जिसका लेटर संबंधित कॉलेजों से हमें फोरवर्ड किया गया है, तभी यूनिवर्सिटी ने एग्जाम करवाएं हैं। वहीं, सेमेस्टर एग्जाम फीस के मामले में एग्जाम कंट्रोलर से बात की जा सकती है। यह मामला मेरे कार्यक्षेत्र में नहीं है।

- आरके उपाध्याय, रजिस्ट्रार, कोटा यूनिवर्सिटी

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