राजस्थान

प्रदेश में बोली जाती हैं 340 भाषाएं, कुछ भाषाएं तो गिनती के लोग बोलते हैं: जनगणना विभाग

Admin Delhi 1
30 Oct 2022 9:05 AM GMT
प्रदेश में बोली जाती हैं 340 भाषाएं, कुछ भाषाएं तो गिनती के लोग बोलते हैं: जनगणना विभाग
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जयपुर न्यूज़: क्या आप जानते हैं कि राजस्थान में ऐसी ऐसी मातृभाषाएं बोली जाती है जिनका आपने नाम तक नहीं सुना होगा और इनकी संख्या 10- 15 या 60- 70 नहीं बल्कि 340 है। साल 2011 के जनगणना आंकड़ों का जब मातृभाषा के आधार पर अध्यनन किया गया तो कई रोचक तथ्य सामने आए। भारतीय सेंसस के अनुसार भारत में कुल 19500 से अधिक मातृभाषाएं बोली जाती हैं। 2011 के सेंसस के अनुसार राजस्थान में 340 मातृभाषाएं बोली जाती हैं। दिलचस्प यह है कि इनमें से 34 मातृभाषाएं ऐसी है जिन्हें महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा बोलती हैं। वहीं 9 मातृभाषा ऐसी है जिन्हें केवल महिलाएं बोलती हैं। 11 मातृभाषाएं पुरुष और महिला दोनों बराबर की संख्या में बोलते हैं। जयपुर स्थित जनगणना भवन में कार्यरत सांख्यिकी अन्वेषक कल्पेश गुप्ता के मुताबिक एक हैरान करने वाली बात ये है कि कुछ मातृभाषाएं तो ऐसी है जिनकी पहचान नहीं की जा सकी लेकिन वे राजस्थान में बोली जाती है। ये सभी आंकड़े लोगों के दिए गए जवाब के आधार पर है। चूंकि डाटा 2011 का है इसलिए संभव है कि इनमें से कुछ मातृभाषाएं अब राजस्थान में न बोली जाती हो।

राजस्थान में बोली जाने वाली वह मातृभाषाएं जो केवल महिलाएं बोलती हैं:

चुराही, ताडवी, दिमासा, डोरली, कलारी, काबुई, अहिराणी, खेयमनगन, संगतम

मातृभाषाएं जिन्हें बोलने वाले पुरुषों और महिलाओं की संख्या बराबर है:

करमाली, माहिडी, चेंग, हमार, मोघ, निस्सी/ डाफला, शीना, जोऊ, जाटपू, टेंगखुल

राजस्थान में बोली जाने वाली वह मातृभाषाएं जो केवल पुरूष बोलते हैं:

पूरन, हजोंग, कुलवी, चखेसंग, देवरी, सिराजी, खोंड, कोच, लीम्बू, मोनपा, पाइते, परजी, तंगसा, वांचो, यिमचुंगरू, नावैत, अनल, कुवी, लेपचा, रेयांग, वैफेई, मीच

राजस्थान में बोली जाने वाली वे मातृभाषाएं जिन्हें महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा बोलती हैं:

निमाड़ी, चंबेली, हरियाणवी, गुजराती, गवारी, हंडूरी, बड़ागा, मालवानी, भरमौरी, अफगानी/ काबुली/ पश्तों, गम्ती / गवित, गरासिया, कुकना, मावछी, भाटिया, छाकरू / छोकरी, कोंकणी, हलानी, लोहारा, खेजहा, कोम, लखेर, मारम, मिश्मी, अपतानी, नोक्टे, राई, तिब्बतन, त्रिपुरी, कैकड़ी, भंसारी, आदि गैलोंग, गुजराव, कच्छी।

इनका कहना है:

मैं समझता हूं कि बोलियों की संख्या हजारों में भी हो सकती है। मेरे अपने गांव में भी एक बोली को लगभग दस तरह से बोला जाता है। अलग- अलग समुदाय की बोली अलग- अलग है।

-ओम थानवी, भाषा जानकार

जैसे-जैसे लोग शिक्षित होते जाते हैं, उनका अपनी मूल भाषा से संपर्क टूट जाता है। अगर उस भाषा को बोलने वाले बहुसंख्यक नहीं हैं तो धीरे-धीरे वह भाषा लुप्त होने के कगार पर पहुंच जाती है।

-सीपी देवल, पद्मश्री साहित्यकार

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