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राजस्थान | प्रदेशभर में महिलाओं से दुष्कर्म लगातार बढ़े हैं। इस साल जून तक ही तीन वर्ष पूर्व की तुलना में 14.71% अधिक केस दर्ज हुए। ऐसे में महिला दुष्कर्म के लिए अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट की जरूरत भी लगातार बढ़ी है। अभी इन केसों की सुनवाई महिला उत्पीड़न मामलों की विशेष कोर्ट में हो रही है। इन्हीं में अत्याचार से जुड़े केस भी चलते हैं, ऐसे में दुष्कर्म पीड़िताओं को जल्दी न्याय नहीं मिलता। वर्षों इंतजार करना पड़ रहा है। हालात ये हैं कि प्रदेशभर में महिलाओं व युवतियों से दुष्कर्म के करीब 1400 केस पेंडिंग हैं।
इनमें भी 307 केस तो 5 साल से ज्यादा समय से चल रहे हैं। 50 से ज्यादा मामलों को तो चलते 8-10 साल बीत चुके हैं। इनमें सामूहिक दुष्कर्म और दुष्कर्म के बाद हत्या तक के मामले भी हैं। पूर्व जिला व सेशन न्यायाधीश व वेलफेयर सोसायटी ऑफ फॉर्मर जजेज, राजस्थान के अध्यक्ष डॉ. पवन कुमार जैन व डॉ. योगेश गुप्ता का कहना है कि राज्य सरकार व हाईकोर्ट प्रशासन को महिलाओं व युवतियों के साथ होने वाले गैंगरेप व दुष्कर्म मामलों में जल्द फैसले के लिए अलग से फास्ट ट्रैक खोलने चाहिए।
राजस्थान हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस पानाचंद जैन का कहना है कि संविधान के आर्टिकल 21 के अनुसार हर नागरिक को सस्ता, सुलभ व त्वरित न्याय मिलना चाहिए। राज्य सरकार विशेष कोर्ट के लिए बजट मुहैया कराए ताकि गैंगरेप व दुष्कर्म पीड़िताओं को जल्द न्याय मिले। दुष्कर्म केसों में 30 जून तक 6 माह में चार्जशीट दायर होने के बाद केवल 3.5% केसों में ही फैसला हो पाया है। कानूनविद डॉ. सीपी गुप्ता कहते हैं कि मेडिकल व एफएसएल रिपोर्ट में देरी से भी ट्रायल में देरी होती है।
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Harrison
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