पंजाब
भारत के बंटवारे के लिए कनाडा में वोटिंग, शिमला को 'खालिस्तान' की राजधानी बनाने का प्लान
Shantanu Roy
28 Sep 2022 2:06 PM GMT
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बड़ी खबर
पंजाब। खालिस्तान के समर्थक एक फिर भारत में बंटवारे की साजिश को जोर देने पर लगे हैं। इसके लिए अमेरिका की सिख फॉर जस्टिस यानी SFJ संस्था दुनिया के कई देशों में खालिस्तान के समर्थन में जनमत संग्रह करा रही है। इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 18 सितंबर को कनाडा में भी जनमत संग्रह हुआ जिसमें करीब 10 से 12 हजार लोगों ने हिस्सा लिया। जनमत संग्रह में लोगों से पूछा गया था- 'क्या आप भारत से अलग एक नया खालिस्तान देश चाहते हैं?' भारतीय दूतावास ने कनाडा विदेश मंत्रालय से 'जनमत संग्रह के विरोध में शिकायत दर्ज कराई है । हालांकि कनाडा ने विचार रखने की आजादी बताकर इस कार्यक्रम पर पाबंदी लगाने से इंकार कर दिया।
93 साल पहले हो गई थी खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत
कार्यक्रम के ठीक बाद भारत सरकार ने कनाडा में रहने वाले भारतीय लोगों के लिए सतर्कता बरतने के लिए अलर्ट जारी किया। वहीं, 22 सितंबर को भारत सरकार के विदेश प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस जनमत संग्रह को हास्यास्पद बताया है। उन्होंने कहा कि ये कट्टरपंथी समूहों की देश तोड़ने की एक साजिश है। बता दें कि खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत 93 साल पहले 1929 में ही हो गई थी। साल 1929 में कांग्रेस के लाहौर सेशन में मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा। इस दौरान तीन तरह के समूहों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया जिनमें
पहला समूह मोहम्मद अली जिन्ना की अगुआई में मुस्लिम लीग था
दूसरा समूह- दलितों का था जिनकी अगुआई डॉ. भीमराव अंबेडकर कर रहे थे। अंबेडकर दलितों के लिए अधिकारों की मांग कर रहे थे।
और तीसरा समूह- गुट मास्टर तारा सिंह की अगुआई में शिरोमणि अकाली दल का था।
पहली बार इस सिख नेता ने रखी थी सिखों के लिए अलग राज्य की मांग
इस वक्त पहली बार तारा सिंह ने सिखों के लिए अलग राज्य की मांग रखी थी। 1947 में यह मांग आंदोलन में बदल गई और से नाम दिया गया पंजाबी सूबा आंदोलन। आजादी के समय पंजाब को 2 हिस्सों में बांट दिया गया। शिरोमणि अकाली दल भारत में ही भाषाई आधार पर एक अलग सिख सूबा यानी सिख प्रदेश मांग रहा था। स्वतंत्र भारत में बने राज्य पुनर्गठन आयोग ने यह मांग मानने से इंकार कर दिया। पूरे पंजाब में 19 साल तक अलग सिख राज्य के लिए आंदोलन और प्रदर्शन होते रहे। इस दौरान हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगीं।
1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब के कर दिए 3 टुकड़े
आखिरकार 1966 में इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला किया। सिखों की बहुलता वाला पंजाब, हिंदी भाषा बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ था।चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसे दोनों नए प्रदेशों की राजधानी बना दिया गया। इसके अलावा पंजाब के कुछ पर्वतीय इलाके को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया। इस बड़े फैसले के बावजूद कई लोग इस बंटवारे से खुश नहीं थे। कुछ लोग पंजाब को दिए गए इलाकों से नाखुश थे, तो कुछ साझा राजधानी के विचार से खफा थे।इसके अलावा कनाडा और यूरोप में रहने वाले अलगाववादी 40 साल से भी ज्यादा समय से खालिस्तान की मांग कर रहे हैं। 1979 में जगजीत सिंह चौहान ने भारत से लंदन जाकर खालिस्तान का प्रस्ताव रखा था। इस खालिस्तान के लिए सिंह ने एक नक्शा पेश किया था। 1969 में जगजीत सिंह पंजाब में विधानसभा चुनाव भी लड़े थे।
'खालिस्तान समर्थक की नजर हिमाचल पर भी
ब्रिटेन में जगजीत सिंह चौहान ने नई खालिस्तानी करंसी जारी कर दुनिया भर में हंगामा मचा दिया था। 1980 में भारत सरकार ने उन्हें भगोड़ा घोषित करके उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया था। हालांकि, देश लौटने के बाद भी जगजीत खालिस्तान प्रस्ताव का समर्थन करते रहे, लेकिन हिंसा का उन्होंने विरोध किया। खालिस्तान देश बनाने मांग करने वाले आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस ने कनाडा के ओंटारियो शहर में रेफरेंडम कराया है। सिख आतंकवादी संगठन का दावा है कि इसमें 1,10,000 सिखों ने हिस्सा लिया है। सिख फॉर जस्टिस ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को 'खालिस्तान' देश की राजधानी बनाई जाएगी। भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले सिख फॉर जस्टिस के आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नून ने ऐलान किया कि 26 जनवरी 2023 को भारत के 74वें गणतंत्र दिवस पर पंजाब में खालिस्तान के समर्थन में रेफरेंडम शुरू होगा।
खालिस्तान आंदोलन की खिलाफत में शहीद हुए लाला जगत नारायण
एक रागी के रूप में सफर शुरू करने वाला जरनैल सिंह भिंडरांवाले आगे चल कर आतंकी और खालिस्तान आंदोलन का बड़ा चेहरा बन गया। प्रसिद्ध सिख पत्रकार खुशवंत सिंह का कहना था कि भिंडरांवाले हर सिख को 32 हिंदुओं की हत्या करने को उकसाता था। उसका कहना था कि इससे सिखों की समस्या का हल हमेशा के लिए हो जाएगा।1982 में भिंडरांवाले ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिला लिया और असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यही असहयोग आंदोलन आगे चलकर सशस्त्र विद्रोह में बदल गया। इस दौरान जिसने भी भिंडरांवाले का विरोध किया वह उसकी हिट लिस्ट में आ गया। इसी के चलते खालिस्तान आतंकियों ने पंजाब केसरी के संस्थापक और एडिटर लाला जगत नारायण की हत्या कर दी। आतंकियों ने अखबार बेचने वाले हॉकर तक को नहीं छोड़ा। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने उस समय अकाली दल के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भिंडरांवाले का समर्थन किया।
खालिस्तान के सबसे अधिक कट्टर समर्थक इस देश में
पन्नू ने कहा कि कनाडा के लोगों ने शिमला को फिर से पंजाब की राजधानी बनाने के लिए वोट किया है। कनाडा में करीब 10 लाख सिख रहते हैं और इनमें बड़ी संख्या में खालिस्तान के कट्टर समर्थक हैं। खालिस्तान समर्थकों को लेकर भारत और कनाडा के बीच अक्सर तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। कनाडा की ट्रूडो सरकार ने ओंटारियो में रेफरेंडम पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। खालिस्तान समर्थक ज्यादातर सिख भारतीय नागरिक नहीं हैं और इनमें से ज्यादातर पंजाब के रहने वाले हैं। खालिस्तान रेफरेंडम को पाकिस्तान का साथ मिल रहा है।
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