पंजाब
JIT में घोटाले करने वालों की अब खैर नहीं, विजिलेंस टीम कसेगी शिकंजा
Shantanu Roy
7 Sep 2022 6:11 PM GMT
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बड़ी खबर
जालंधर। इम्प्रूवमैंट ट्रस्ट जालंधर में करोड़ों रुपए के एल.डी.पी घोटालों के अलावा विभिन्न स्कीमों में बिना मंजूरी की गई रजिस्ट्रियों सहित अनेकों मामलों संबंधी शिकायतों की निकाय विभाग के चीफ विजिलेंस अधिकारी छानबीन कर रहे हैं, वहीं अब मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंची शिकायतों के बाद पुलिस के विजिलेंस विभाग ने भी कई मामलों की जांच शुरू कर दी है। पुलिस विजिलेंस ने ट्रस्ट से एस.सी.ओ. नंबर 20 बी.एस.एफ. कालोनी, प्लाट नंबर 12 लाजपत नगर, मास्टर तारा सिंह नगर सहित कई संपत्तियों के रिकॉर्ड में की गई हेराफेरी की जांच को लेकर संबंधित फाइलों को तलब किया है। इस संबंध में ट्रस्ट के ई.ओ. राजेश चौधरी ने कहा कि विजिलेंस विभाग ने जो रिकार्ड मांगा है, उसे जल्द ही भेज दिया जाएगा। विजिलेंस रिकॉर्ड की जांच के बाद अनियमितता को लेकर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई अमल में लाएगा।
कैंसिल हुए एस.सी.ओ. को 17 वर्षों बाद नियमों के विपरीत रैगुलर करने को लेकर बकाया कराया जमा
इम्प्रूवमैंट ट्रस्ट ने रिटायर्ड पी.सी.एस. अधिकारी आर.सी.पॉल को बी.एस.एफ. कालोनी में वर्ष 1995 में खुली बोली में एक एस.सी.ओ. अलाट किया था। अलाटी ने कीमत का एक चौथाई हिस्सा बोली के समय जमा कराया व बकाया रकम की 5 किस्तें बनी। अलाटी ने इसमें केवल 1 किस्त अदा की व बकाया किस्तों को बंद कर दिया। इस एस.सी.ओ. की शिकायत विजिलेंस के पास पहुंची है। पेमेंट न मिलने के कारण 2003 में ट्रस्ट हाउस की मीटिंग में प्रस्ताव पास करके एस.सी.ओ की अलॉटमैंट को कैंसिल कर दिया था। इसके बाद प्रस्ताव को सरकार के पास भेजा गया जिसे मंजूर कर लिया गया था। 2009 में इस एस.सी.ओ. को एक खुली नीलामी में भी शामिल किया था, लेकिन कोई इच्छुक सामने नहीं आया। 2015 में पहले अलाटी आर.सी.पॉल की मौत हो गई।
इसी एस.सी.ओ को लेकर हुए गड़बड़ घोटाले में इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट ने वर्ष 2020 में कैंसिल हो चुके एस.सी.ओ. की बकाया रकम और ट्रांसफर फीस को मिलीभगत से ट्रस्ट अकाउंट में जमा करा कर ट्रांसफर फीस 1,29,200 रुपए की रसीद जिसका नंबर 76660 तिथि 1 जुलाई 2020 को पामिला पवार नामक महिला के नाम जारी कर दिया। ट्रस्ट ने कैंसिल हो चुके एस.सी.ओ. की बकाया रकम और ट्रांसफर फीस को एक पॉवर ऑफ अटॉर्नी को आधार बना कर किया, जोकि पहले अलाटी स्व. आर.सी. पॉल से उक्त महिला को मिली हुई थी। ट्रस्ट नियमों के मुताबिक अगर किसी अलाटी का प्लाट या एस.सी.ओ. किन्हीं कारणों से कैंसिल हो जाता है तो उसको बहाल करने का अधिकार केवल सरकार के पास होता है, जबकि उक्त अलाटी के हालातों व बकाया न जमा करा पाने की मजबूरी को देखते हुए अगर चाहे तो बहाल करती है।
अब विजिलेंस जांच करेगा कि जब इस केस में सरकार ने ट्रस्ट द्वारा एस.सी.ओ को कैंसिल करने के प्रस्ताव को मंजूर कर दिया था तो फिर यह 17 वर्षों के बाद मृत व्यक्ति की पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर एक प्राइवेट अटॉर्नी होल्डर के नाम पर रैगुलर करने का प्रयास क्यों किया गया? जबकि पहले अलाटी के नाम एस.सी.ओ. कैंसिल होने के अलावा उक्त अलाटी की मौत होने के बाद पॉवर ऑफ अटॉर्नी स्वयत: एक रद्दी का कागज बन चुकी थी। इसके अलावा अगर ट्रस्ट मौजूदा समय की मार्केट वैल्यू के मुताबिक एस.सी.ओ की ऑक्शन करता तो उसे करोड़ों रुपए का रैवेन्यू मिल सकता था परंतु अधिकारियों की मिलीभगत से इस एस.सी.ओ. का नियमों की अवहेलना करते हुए वर्ष 1995 के रेट करीब 15 लाख रुपए में रैगुलर करने का प्रयास किया।
वहीं वर्ष 2021 में यह घोटाला चर्चा में आने के बाद जब नायब सिंह नामक शिकायतकर्ता द्वारा की गई शिकायत पंजाब सरकार तक पंहुची तो सरकार ने ट्रस्ट के ई.ओ. से एस.सी.ओ. को रैगुलर करने के प्रयासों और ट्रस्ट में जमा कराई गई बकाया रकम और ट्रांसफर फीस मामले की जांच रिपोर्ट मांगी। शिकायतकर्ता के अनुसार ट्रस्ट अधिकारियों ने एक बार फिर से मिलीभगत करके फाइल में संलंग दस्तावेजों को खुर्द-बुर्द कर दिया परंतु दोषी ट्रस्ट अकाउंट रिकार्ड में कैंसिल हो चुके एस.सी.ओ. को लेकर जमा कराई रकम का रिकॉर्ड संबंधी सबूत मिटा नहीं पाए। अब पंजाब सरकार ने इस एस.सी.ओ के मामले को लेकर विजिलेंस विभाग को जांच करने को कहा है। विजिलेंस की अगर निष्पक्ष जांच हुई तो ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन, सीनियर सहायक अजय मल्होत्रा व अन्य अधिकारियों के पर गाज गिरेगी।
लाजपत नगर के प्लाट नं. 12 के मामले में पूर्व चेयरमैन के प्राइवेट सहायक तक पहुंच सकते हैं विजिलेंस के हाथ
लाजपत नगर के प्लॉट नंबर 12 के मामले से संबंधित ट्रस्ट रिकार्ड से टैंपरिंग करने के मामले में पूर्व चेयरमैन के एक निजी सहायक के गिरेबान तक विजिलेंस के हाथ पहुंच सकते हैं। इस मामले में अलाटी की मौत के बाद वारिस ने प्लाट की ट्रांसफर को लेकर ट्रस्ट में अप्लाई किया था, जिस पर उस समय की ई.ओ. सुरिंदर कुमारी ने एप्लीकेशन को अप्रूव करते हुए नियमों मुताबिक प्लाट को वारिस के नाम ट्रांसफर करने से पहले किसी भी ऑब्जेक्शन को लेकर इस संबंधी नोटिस को समाचार पत्र में पब्लिकेशन कराने के लिए फाइल उस समय के चेयरमैन के पास अंतिम अप्रूवल के लिए भेज दी थी। वहीं अलाटी को जब पता चला कि उसे पब्लिकेशन नोटिस जारी होने की बजाय फाइल को लीगल ओपिनियन को भेजा गया है तो उसने ई.ओ. सुरिंदर कुमारी के समक्ष सारे मामले को रखा। सुरिंदर कुमारी ने फाइल को मंगवा कर जब जांच की तो उसने साइन किए आदेश को टैंपरिंग करके नए आर्डर जारी कर दिए गए।
ई.ओ ने सुरिंदर कुमारी ने प्राथमिक जांच में पाया कि उनके आदेश की टैंपरिंग करके लीगल ओपिनियन लिखने के पीछे उस समय के चेयरमैन के एक प्राइवेट सहायक का हाथ है तो उन्होंने इस संबंध में पूर्व चेयरमैन को अवगत कराने के अलावा इस धांधली संबंधी अपनी लिखित शिकायत उस समय के डिप्टी डायरैक्टर लोकल बॉडीज, जालंधर को की। इस मामले की जांच आज भी ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है। अब मामला विजिलेंस के सुर्पुद हो चुका है, जिसके बाद इस फाइल को भी खंगालते हुए ई.ओ. के आदेश को टैंपरिंग करने के आरोपी पर कानूनी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
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