पंजाब
पंजाब में मुकाबला बहुकोणीय है लेकिन किसी के लिए आसान नहीं सत्ता की डगर, त्रिशंकु विधानसभा की तरफ हो सकता है मतदाताओं का रुझान
Renuka Sahu
21 Feb 2022 3:47 AM GMT
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फाइल फोटो
पंजाब में मालवा, माझा और दोआबा में इस बार कांटे की टक्कर है। मुकाबला बहुकोणीय है लेकिन सत्ता की डगर किसी के लिए आसान नहीं है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पंजाब में मालवा, माझा और दोआबा में इस बार कांटे की टक्कर है। मुकाबला बहुकोणीय है लेकिन सत्ता की डगर किसी के लिए आसान नहीं है। वजह साफ है कि इस बार पंजाब में सत्ता के चाहने वाले कई हैं। अब तक की सियासत में कांग्रेस और अकाली ही आमने -सामने होते थे। पिछले चुनाव से आम आदमी पार्टी मैदान में आ गई और अपनी जगह बनाई। लेकिन इस चुनाव में मतदान प्रतिशत कम होने के कारण समीकरण बदल गए हैं।
भाजपा, शिअद, कांग्रेस, आप, संयुक्त समाज मोर्चा के अलावा दोआबा में हाथी भी चिंघाड़ने के लिए तैयार खड़ा है। कांग्रेस कैप्टन को अलविदा कहने के बाद जहां वापसी के लिए बेताब हैं, वहीं अकाली दोबारा से सत्ता की हनक पाने की कोशिश कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी पिछली बार रह गई कसर पूरा करना चाह रही है तो भाजपा पंजाब में सत्ता की भागीदारी के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
सूबे में पिछले एक सप्ताह से चल रही सियासी हवा अचानक बदल गई है और चुनाव आते आते समीकरण बदल गए हैं। उत्तर प्रदेश के बाद भाजपा ने अपना पूरा जोर पंजाब में लगा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार जनसभाएं कीं और अमित शाह को मैदान में उतारा। राष्ट्रवाद को मुददा बनाकर चुनाव में कूदी भाजपा पंजाब में इस बार धर्मगुरुओं और डेरों के सहारे अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।
वहीं, आम आदमी पार्टी मालवा में भगवंत मान के सहारे सत्ता का सिंहासन पाना चाह रही है। पिछली बार की गलतियों को दरकिनार कर आप ने पंजाब में सधा हुआ चुनाव लड़ा है। लेकिन ऐन वक्त पर अरविंद केजरीवाल के ही पुराने साथी कुमार विश्वास ने उन पर हमला बोल दिया। विश्वास के हमले के बाद भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों ने आप को निशाने पर ले लिया।
भाजपा के पुराने दोस्त रहे अकाली इस बार अलग चुनाव लड़ रहे हैं। डेरा सच्चा सौदा के वोटों की आस दोनों ही दलों को है। इसके अलावा पंथक वोट के सहारे अकाली फिर से मैदान में आना चाह रहे हैं। जबकि 22 किसान जत्थेबंदिया का संयुक्त समाज मोर्चा किसानों के दम पर पंजाब में ताल ठोक रहा है। बलबीर सिंह राजेवाल मोर्चे के मुख्य चेहरे हैं। अभी हाल ही में किसान आंदोलन से वापस हुए लोग पंजाब पहुंचे हैं। संयुक्त मोर्चा को पूरी उम्मीद है कि सत्ता न सही लेकिन सत्ता में दखल पूरा होगा।
मतदान कम और पार्टियां अधिक
पंजाब में 15 साल बाद मत प्रतिशत गिरा है, अन्यथा पंजाबी मतदान में आगे रहे हैं। 2007 में 77.20 प्रतिशत मतदान हुआ था और अकालियों ने सरकार बनाई थी। 2012 में 78.30 प्रतिशत मतदान हुआ और अकालियों की वापसी हुई। 2017 के चुनाव में 77.20 प्रतिशत मतदान हुआ तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की ताजपोशी हुई। इस बार मतदान कम 68.03 प्रतिशत हुआ है और सत्ता की चाबी भी सभी दल चाह रहे हैं।
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