लुधियाना निवासी तारा सिंह ने एडवोकेट अरुण सिंगला के माध्यम से आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल में याचिका दाखिल करते हुए बताया कि वह नौसेना में नौकरी कर रहे थे। इस दौरान 1961 में भारत सरकार ने गोवा को पुर्तगालियों से आजाद करवाने के लिए गोवा ऑपरेशन ऑफ लिबरेशन ऑफ अंजदेव इसलैंड चलाया था। आईएनएस त्रिशूल से हमला करने वाली टीम के वह भी हिस्सा थे। इसके बाद बोट से दुश्मन पर हमला करने के दौरान एक गोली उनके सिर में आ लगी और उनकी खोपड़ी में फैक्चर हो गया।
गोली को पूरी तरह से निकालने पर उनकी जान को खतरा होता ऐसे में इसका एक हिस्सा अब भी उनके सिर में मौजूद है। तारा सिंह ने बताया कि उन्हें सेना से रिटायर कर डिसएबिलिटी पेंशन दी जाने लगी लेकिन 1971 में उनकी जालंधर मिलिट्री अस्पताल में जांच के बाद दिव्यांगता को 20 प्रतिशत से कम बता कर पेंशन रोक दी गई। याचिकाकर्ता ने इसी को आर्म्स ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी।
ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस हादसे के कारण याची को सेवा से मुक्त होना पड़ा, ऐसे में इसे मामूली नहीं माना जा सकता है। याची के सिर में गोली का हिस्सा अब भी मौजूद है। ट्रिब्यूनल ने याची की पेंशन समाप्त करने के फैसले को गलत करार देते हुए उनको वॉर इंजरी पेंशन के लिए योग्य करार दिया। इसके साथ ही भारत सरकार को तीन माह के भीतर पेंशन का भुगतान करने का भी आदेश दिया है।