पंजाब से आया एक बच्चा दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास के सामने अपने परिवार के साथ फोटो खिंचा रहा है और पीछे से गोलियों के चलने की आवाजें आने लगती हैं। वापस अपने गांव जाने के लिए मां के साथ निकले इस बच्चे के सामने ही उसके ऑटोवाले को पेट्रोल छिड़ककर जिंदा जला दिया जाता है। मां अपने बच्चे को लेकर दुकानों की ओट में छिपी है और वहीं गिरे कांच के टुकड़े उठाकर अपने बेटे की 'जूड़ी' खोलकर उसके बाल काट देती है। ये 1984 का हिंदुस्तान है।
देश में बीते 50 साल की घटनाओं को एक प्रेम कहानी के जरिये कैद करती आमिर खान की नई फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' सोशल मीडिया के उन 'शूरवीरों' के निशाने पर आई फिल्म है जिन्हें किसी भी खान सितारे की फिल्म से चिढ़ है। एक फिल्म बनती है और चलती है तो मुंबई के हजारों परिवारों के घर चूल्हा जलने की गारंटी बनती है। चंद लोगों से चिढ़े लोग अगर पूरी फिल्म इंडस्ट्री का इन बॉयकॉट से ऐसे ही तमाशा बनाना चाहें तो अलग बात है, नहीं तो फिल्म 'लाल सिंह चड्ढा' हिंदी सिनेमा के सफर का एक प्रशंसनीय दस्तावेज है जिसे देख हर उस इंसान को रोना आ जाएगा, जिसने जीवन में एक बार भी मोहब्बत की है।