पंजाब
लम्पी स्किन बीमारी से पशु पालकों में दहशत, विभाग ने जारी की एडवाइजरी
Shantanu Roy
4 Aug 2022 4:47 PM GMT

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बड़ी खबर
बठिंडा। पशुओं में फैल रही लम्पी स्किन बीमारी (एल.एस.डी.) से पशु पालकों में दहशत का माहौल है जबकि पशु पालन विभाग ने एडवाइजरी जारी करके पशु पालकों को कुछ नियमों का पालन करने तथा किसी प्रकार की घबराहट में न आने की अपील की है। बठिंडा में दर्जनों पशु इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। नई बीमारी होने के कारण पशु पालकों को इसके बारे कोई जानकारी नहीं है। विभाग की ओर से लिटरेचर प्रकाशित करवाकर ग्रामीण इलाकों में वितरित किया जा रहा है जबकि पशु पालकों को जागरूक करने के लिए कैंप भी लगाए जा रहे हैं।
विभाग करेगा पशु पालकों को जागरूक
पशु पालन विभाग पंजाब की ओर से सभी जिलों में डिप्टी डायरैक्टरों को पत्र जारी करके इस बीमारी को लेकर योग्य कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। विभाग के पत्र में कहा गया है कि बीमारी को देखते हुए वैटरनरी अधिकारियों व इंस्पैक्टरों को तुरंत प्रभावित क्षेत्रों में भेजकर काम शुरू करवाया जाए। पशु पालकों को बीमारी के कारणों, लक्षणों व रोकथाम के बारे जागरूक किया जाए। इस बारे में गुरुद्वारों व अन्य धार्मिक स्थलों से मुनादी करवाकर भी पशु पालकों को बीमारी के प्रति जागरूक करने की हिदायतें दी गई हैं।
क्या है लम्पी स्किन बीमारी
विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार लम्पी स्किन बीमारी चमड़ी से संबंधित एक छूत की बीमारी है। ये कैपरी पाक्स वायरस द्वारा फैलाई जाती है व गाय और भैंसों में तेजी से फैलती है। उक्त बीमारी मक्खियों, मच्छरों व चीचड़ों के माध्यम से फैलती है। इस बीमारी में पशुओं के शरीर पर फोड़े बन जाते हैं व लगातार बुखार रहता है। माहिरों की मानें तो उक्त बीमारी आम तौर पर पशुओं के लिए जानलेवा नहीं है व पशु एक सप्ताह में अपने-आप ही ठीक होने लगता है। इस बीमारी से इंसानों के संक्रमित होने की संभावना नहीं है लेकिन इसके बावजूद लोगों को सावधानियां बरतनी चाहिए।
रोकथाम व बचाव के लिए उपाय
बीमारी का पता चलते ही संबंधित वैटरनरी डाॅक्टरों को तुरंत सूचित किया जाए।
बीमारी से पीड़ित पशुओं को अन्य पशुओं से अलग रखा जाए।
पशुओं में प्रयोग होने वाले सामान को भी अलग किया जाए।
मक्खी, मच्छर व चीचड़ों की रोकथाम पहल के आधार पर की जाए।
प्रभावित क्षेत्र से पशुओं की आवाजाही को पूरी तरह रोका जाए
पशु पालक रखें इन बातों का ध्यान
कुछ दिनों तक पशुओं की खरीदो-फरोख्त बंद कर दी जाए।
बीमारी से पीड़ित सांड से ब्रीडिंग का काम न करवाया जाए।
पशुओं की देखभाल करने वालों को सैनेटाइजर व दस्तानों का प्रयोग करना चाहिए।
डेयरी फार्म या पशु बाड़े में फार्मलीन 1 फीसदी व सोडियम हाइपोक्लोराइट के घोल का छिड़काव किया जाए।
बीमार पशुओं की संभाल करने वाले कर्मियों को तंदरुस्त पशुओं से दूर रखा जाए।
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