पंजाब
अकाली दल पर बरसे इकबाल सिंह लालपुरा, कहा - धर्म के मामलों में राजनीतिक पार्टी का क्या काम?
Shantanu Roy
6 Nov 2022 5:40 PM GMT
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जालंधर। पंजाब के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों एस.जी.पी.सी. के चुनावों का बोलबाला है। राज्य में शिरोमणि अकाली दल से लेकर भाजपा तक में इन चुनावों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। आरोप प्रत्यारोप लग रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल जहां बीबी जागीर कौर के मैदान में उतरने से खफा है, वहीं पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर बादल बीबी जागीर कौर की रणनीति के पीछे इकबाल सिंह लालपुरा का नाम लेकर बाकायदा यह कह रहे हैं कि पूरी बिसात उनकी बिछाई हुई है। इसके साथ कई अन्य मसलों पर हमने इकबाल सिंह लालपुरा से बात की, प्रस्तुत हैं उसके अंश :
सिख सियासत का केंद्रीयकरण क्या आपके द्वारा हो रहा है?
मैं पिछले 63 सालों से एक अमृतधारी सिख हूं। मेरी सिख धर्म में पूरी आस्था है। मैं यह भी जानता हूं कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को धर्म के अंदर दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए और मैं जिस पार्टी या संस्था से संबंध रखता हूं, वह भी किसी धर्म या धार्मिक संस्था के बीच दखलअंदाजी नहीं करते। मैंने तो राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनने के बाद अपना धार्मिक पद भी इसलिए छोड़ दिया।
आप पर एस.जी.पी.सी. सदस्यों को लालच देने का आरोप लगा रहे हैं बादल ?
मैं आज करीब 4 महीने उपरांत पंजाब आया हूं। पी.एम. नरेंद्र मोदी को रिसीव करने के लिए मैं पंजाब आया हूं। मैं किसी भी तरह से राजनीतिक तौर पर एक्टिव नहीं रहा हूं और न ही मेरी कोई रुचि है। हम भाजपा वालों ने न ही कोई उम्मीदवार खड़ा किया है और न ही भाजपा को एस.जी.पी.सी. चुनावों में कोई रुचि है। पता नहीं अकाली दल के लोगों को किस बात की खुन्नस है और वह अपना दिमागी संतुलन खो रहे हैं।
क्या एस.जी.पी.सी. के माध्यम से सिख पॉलिटिक्स में एंट्री कर रही है भाजपा?
1954 में पहली बार एस.जी.पी.सी. ने मांग की थी कि एक आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट बनाया जाए, जिसमें देश भर के सभी गुरुद्वारों का प्रबंध एक लीडर के अधीन हो। बड़ी देर तक जोर लगाने के बाद भी यह नहीं बन सका। फिर 1997-98 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान आल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट बनाने की तैयारी की गई तथा इसका एक प्रस्ताव बनाकर प्रवानगी के लिए एस.जी.पी.सी. को भेज दिया गया। लेकिन इस दौरान कहा गया कि इस एक्ट के कारण पंजाब में बाहरी राज्यों के गुरुद्वारों की दखलअंदाजी बढ़ सकती है, जिस कारण इसे डंप करवाने की मांग की गई। यह प्रस्ताव अभी भी एस.जी.पी.सी. के पास पड़ा है। सहजधारी पंथ के पक्ष में वोट करते रहे हैं, लेकिन इन्होंने नोटिफिकेशन जारी करने को कहा, जिसमें सहजधारी का वोट अधिकार खत्म करने की बात कही गई। अटल जी की सरकार ने उसी समय नोटीफिकेशन जारी कर दिया। इसके बाद 2011 में माननीय अदालत ने इस नोटीफिकेशन को गलत करार दिया और सहजधारियों के वोट के अधिकार को खत्म करने पर भी एतराज जताया। इनके कहने पर मोदी सरकार ने फिर इस प्रस्ताव को संसद में पास किया। बादल साहिब ने जो भी कहा, वह भाजपा की सरकार ने सदा ही किया है और यह तथ्यों पर आधारित बात है। हम अब भी चाहते हैं कि सिख संस्थान मजबूत हों। चाहे इसमें करतारपुर कोरिडोर हो या वीर बाल दिवस मनाना हो, ये सब कुछ करने के लिए मोदी सरकार तैयार हैं, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार पर दोष लगाना बेबुनियाद है।
अकाली-भाजपा का फिर हो सकता है पैचअप?
अकाली दल ने कभी भी भाजपा के साथ रिश्ता बना कर रखने की बात नहीं की। एक तरफ कहते हैं कि भाजपा सिखों के धर्म में दखलअंदाजी कर रही है, लेकिन असलियत यह है कि अकाली हमेशा भाजपा को हर जगह प्रयोग करते रहे हैं। अकाली दल को तो आत्ममंथन करना चाहिए कि जिस पार्टी के साथ पिछले 26 साल से इकट्ठा काम करते रहे हैं और आज इस तरह से आरोप लगा रहे हैं। अगर कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी जैसी राजनीतिक पार्टियां एस.जी.पी.सी. में दखल नहीं कर सकतीं तो फिर क्या अकाली दल द्वारा इसमें दखलंदाजी करना सही है। अगर आप राजनीतिक हो तो खुलकर राजनीति करो और अगर धार्मिक हो तो फिर सच बोलो।
सुधीर सूरी कत्लकांड पर आप क्या कहेंगे?
मैं हर कत्ल व हमले की निंदा करता हूं। जो कोई संविधान के खिलाफ जाकर काम करता है सरकारी तंत्र को उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। कोई भी कानून किसी का कत्ल करने व बेइज्जत करने की इजाजत नहीं देता। यह पंजाब सरकार की नाकामयाबी है, जो राज्य में कानून-व्यवस्था को दुरुस्त न कर सकी। आम आदमी पार्टी के सीनियर नेता कनाडा जाकर सिख फार जस्टिस के चीफ पन्नु के साथ फोटो खिंचवा रहा है तो फिर आप इससे लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं। क्या आप खालिस्तान को सपोर्ट करते हैं। ये सभी मुद्दे केंद्र सरकार के नोटिस में हैं।
हिंदू-सिख-ईसाई भाईचारे के बीच चल रही तकरार पर आप क्या कहेंगे?
मैं पिछले काफी समय से पंजाब सरकार को लिख रहा हूं कि मुझे ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट दी जाए। मैंने ईसाई समुदाय तथा सिख प्रतिनिधियों की अपने कार्यालय में एक बैठक भी करवाई ताकि इनकी आपस में तकरार कम हो सके। लेकिन कानून व्यवस्था तो राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। हम अपने स्तर पर सरकार को जानकारी दे सकते हैं या अलर्ट कर सकते हैं, लेकिन कानून व्यवस्था तो सरकार ने खुद ही देखनी है।
अमृतपाल की गतिविधियों व आरोपों को लेकर आप क्या कहेंगे?
मैं किसी व्यक्ति विशेष पर कोई बातचीत नहीं करना चाहता क्योंकि वह न तो संवैधानिक पद पर हैं और न ही राजनीतिक पद पर। सामाजिक संगठन बहुत से बनते हैं लेकिन इसमें ध्यान रखना चाहिए कि कहीं विदेशी ताकत का कोई हाथ तो नहीं। किसी विदेशी ताकत ने अपने मंसूबों के लिए किसी खास व्यक्ति को नियुक्त तो नहीं किया है। जिस व्यक्ति ने अमृत ही अभी दो महीने पहले छका हो, वो कैसे नियुक्त हुआ, इस सारे मामले की जांच पंजाब सरकार को करनी चाहिए।
खुफिया एजेंसियों पर भी उठ रहे सवाल?
मैं खुद बड़ी देर इंटेलिजेंस में रहा हूं। इंटेलिजेंस पर कई तरह के आरोप लगते रहते हैं। अगर इंटेलिजेंस ने अलर्ट भी किया होगा तो भी यह राज्य मशीनी तंत्र की विफलता है। थाने चौकियों पर हमले हो रहे हैं, सड़कों पर देश विरोधी नारे लिखे जा रहे हैं, रैलियां निकाली जा रही हैं, फिर भी कोई कार्रवाई न हो, इससे मुझे लगता है कि कहीं पंजाब का नुक्सान न हो जाए। क्योंकि पंजाब न हिंदू है, न मुसलमान है, पंजाब गुरुओं के नाम पर जीता है। हम सबका आपस में खून का नाता है।
सुखबीर की स्टेटमेंट को आप कैसे देखते हैं?
बड़ी कमजोरी वाली बात है कि गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी, गोलीकांड जैसे मामले सुखबीर की सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए। गोलीकांड में लोग मारे गए, उस समय अकाली सरकार थी। लोग शायद इन्हीं सभी बातों का जवाब मांग रहे हैं। मेरा नाम बेवजह उछालकर उन्हें क्या मिलने वाला है यह मुझे पता नहीं। मेरी तो इच्छा है कि एस.जी.पी.सी. मजबूत हो, लोकतांत्रिक तरीके से वहां पर काम हो ताकि सिख धर्म मजबूत हो सके।
बीबी जागीर कौर के स्टैंड को आप कैसे देखते हैं?
देखिए मैंने पहली भी कहा कि सभी चुनाव लोकतांत्रिक ढंग से होने चाहिए। हर एक का अधिकार है कि वह लोकतांत्रिक तरीके से किसी भी पद के लिए चुनाव में उतर सके। अगर इस तरह से चुनाव नहीं होंगे तो किसी के पास कोई अधिकार नहीं रह जाता कि वे अपना नॉमिनेशन भर सके। यह बड़े दुख की बात है कि 1925 में बनाए गए एक्ट की अवलेहना की जा रही है और एक्ट बनाने वाले भी ऐसे लोकतांत्रिक तरीके को अपनाने में कोताही बरत रहे हैं।
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