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शाहकोट। जहां मलसियां-शाहकोट क्षेत्र में हर तरह का नशा आम मिल जाता है, वहां गरीब लोग रसायन युक्त शराब पीकर मौत को गले लगा रहे हैं। अगर पुलिस की बात करें तो अवैध शराब या नशीले पदार्थों की ओवरडोज से अचानक किसी की मौत हो जाती है तो उसका पोस्टमॉर्टम करना उचित नहीं समझा जाता और बिना पोस्टमॉर्टम के ही उसका संस्कार कर दिया जाता है। इससे मौत का कारण भी मृत व्यक्ति के साथ ही दफन हो जाता है। शाहकोट इलाके में पिछले 6 महीने से ड्रग की ओवरडोज और कैमिकलयुक्त शराब की वजह से कई लोग इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। ज्यादातर मामलों में पोस्टमार्टम न होने के कारण इलाके में नशे से होने वाली मौतों का रिकॉर्ड साफ रखा जा रहा है। नशे में धुत होकर या जमीन पर लेटने वाले युवाओं के दृश्य आम देखने को मिल जाते हैं। हालांकि पंजाब में सरकार बदल गई है, लेकिन नशे का कारोबार पहले की तरह जारी है और इलाके में हर तरह का नशा उपलब्ध है। नशीली दवाओं की रोकथाम संबंधी मान सरकार द्वारा दिए गए बयान सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।
नशा करने वाले युवक सड़कों, बाजारों और चौकों पर घूमते अथवा गिरे हुए दिखाई देते हैं। क्या भगवंत मान सरकार या आला पुलिस अधिकारियों की ओर से युवाओं की संदिग्ध मौतों का पोस्टमार्टम न करने के निर्देश हैं? संदिग्ध परिस्थितियों में हुई युवकों की मौत के संबंध में समाचार छपने के बावजूद प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है। पोस्टमॉर्टम नहीं होने से किसी भी युवक की मौत नशे के सेवन से होने का कारण सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। क्षेत्र में रसायन युक्त शराब की बड़े पैमाने पर बिक्री से तरनतारन जैसी त्रासदी कभी भी हो सकती है। शायद पुलिस और प्रशासन इसी तरह की त्रासदी होने का इंतजार कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि करीब 20 वर्ष पूर्व शाहकोट के एक बड़े गांव कुलार में जहरीली शराब पीने से दर्जनों लोगों की जान चली गई थी। पुलिस द्वारा इस तरह की उपेक्षा को ड्रग तस्करों के साथ पुलिस में कुछ काली भेड़ों की मिलीभगत का परिणाम कहा जा सकता है। नशों के खिलाफ पंजाब के डी.जी.पी. द्वारा मुख्यमंत्री का जिक्र करते हुए शुरू किया गया अभियान शायद एक घोषणा बन कर ही रह गया है।
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