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जालंधर। जहां एक तरफ पराली जलाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा है और कई जानें जा रही हैं, वहीं दूसरी ओर अलावलपुर के जागरूक किसानों ने इस बार अपने खेतों में पराली जलाने से इंकार कर दिया है। जानकारी के अनुसार कुछ दिन पहले शाहकोट के गांव में पराली जलाने से उठे धुएं के कारण हुए हादसे में एक घर का चिराग बुझ गया था, तो दूसरे घर के एक बुजुर्ग की भी मौत हो गई थी। इस घटना के बाद किसान खुद पराली जलाने वालों को गलत बता रहे हैं। वहीं कस्बा अलावलपुर में धान की पराली को आग लगाने की इस बार एक भी घटना अभी तक कहीं दिखाई नहीं दी, जिसका मुख्य कारण किसानों का जागरूक होना है। किसानों का कहना है कि पराली को जमीन में खपा रहें हैं। कुछ किसान पराली बिजली बनाने के प्लांटों को दे रहें हैं। किसानों की सरकार से मांग है कि नकोदर व भोगपुर की तरह बिजली बनाने के और प्लांट लगाए जाएं ताकि पराली का सही निपटारा किया जा सके। वहीं गुज्जर भी खेतों से पराली उठा रहें हैं ताकि पर्यावरण को दूषित होने से बचाया जा सके।
कस्बा अलावलपुर में पराली को आग ना लगाने का मुख्य कारण गुज्जर भाईचारे का सहयोग भी है। सर्दियों में मवेशियों के लिए चारे के रूप में पराली का इस्तेमाल किया जाता है। एक खेत की पराली को बेलर मशीन से गांठ बांध बाहर निकालने पर करीब 2800 रुपए खर्च आ रहा है। जिसमें करीब आधा खर्च किसान अदा करता है। बाकी खर्च गुज्जर उठाते हैं। पहले रीपर से पराली को काट लिया जाता है, जिसके बाद मशीन से गांठें बांध पराली को खेत से उठा लिया जाता है। किसानों ने बताया कि गुज्जर से मिलकर खर्च आधा-आधा बांट लिया है।
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