पंजाब

आरटीए दफ्तर में बड़े घोटाले का पर्दाफाश, फर्जी फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करने का खुलासा

HARRY
20 Aug 2022 4:20 AM GMT
आरटीए दफ्तर  में बड़े घोटाले का पर्दाफाश, फर्जी फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करने का खुलासा
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पंजाब विजिलेंस ब्यूरो ने रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (आरटीए) दफ्तर संगरूर में एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश कर आरटीए, मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर और दो क्लर्कों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर लिया है। इस मामले में विजिलेंस ने इस दफ्तर के दो मुलाजिमों व एक बिचौलिए को गिरफ्तार भी कर लिया है।

विजिलेंस ब्यूरो के प्रवक्ता ने बताया कि इस घपले में आरटीए संगरूर, मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर, उनके स्टाफ व प्राइवेट व्यक्तियों की संलिप्तता सामने आई है, जो सरकार के तय नियमों का पालन करने के बजाय एक-दूसरे के साथ मिलकर विभिन्न किस्मों के वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करने के बदले में पंजाब में काम कर रहे विभिन्न एजेंटों से रिश्वत लेते थे।
विजिलेंस के मुताबिक ट्रांसपोर्ट विभाग के नियमों के मुताबिक सभी व्यापारिक वाहनों को सड़कों पर चलने के लिए आरटीए दफ्तर से फिटनेस सर्टिफिकेट लेना पड़ता है। ऐसे सभी वाहनों का दस्तावेजों समेत मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर द्वारा अपने दफ्तर में मौके पर ही निरीक्षण करना होता है।
यह अधिकारी एजेंटों व बिचौलिए की मिलीभगत के साथ वाहनों की फिजिकल वेरिफिकेशन किए बिना ही मॉडल के हिसाब से 2800 रुपये से लेकर 1000 रुपये प्रति वाहन रिश्वत के तौर पर लेते थे और फिर फिटनेस सर्टिफिकेट जारी कर देते थे। इस संबंधी शिकायतें मिलने के बाद विजिलेंस ब्यूरो की टीम ने मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर संगरूर के दफ्तर की अचानक जांच की।
मौके पर ही तीन आरोपियों को काबू कर लिया गया, जिनमें एजेंट धरमिंदर पाल उर्फ बंटी निवासी संगरूर, क्लर्क गुरचरन सिंह और डाटा एंट्री ऑपरेटर जगसीर सिंह शामिल रहे। साथ ही करीब 40 हजार रुपये की रिश्वत की राशि व घोटाले से संबंधित कई दस्तावेज भी बरामद किए गए। मामले में आरटीए रविंदर सिंह गिल, मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर महिंदरपाल, क्लर्क गुरचरन सिंह, डाटा एंट्री ऑपरेटर जगसीर सिंह, बिचौलिए धरमिंदरपाल उर्फ बंटी व सुखविंदर सुक्खी और अन्य एजेंटों के खिलाफ विजिलेंस थाना पटियाला में केस दर्ज किया गया है।
करीब आठ सालों से चल रहा था फर्जीवाड़ा
जांच में सामने आया है कि पिछले आठ सालों से यह सब काम चल रहा था और हर महीने 2000-2500 वाहनों को फिटनेस सर्टिफिकेट जारी किए जाते थे। इस दौरान आरोपी रिश्वत के तौर पर बड़ी रकम वसूलते थे। मामले में फिलहाल जांच जारी है और अन्य अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है।

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