भगवंत मान ने कहा पंजाब यूनिवर्सिटी में हरियाणा को नहीं मिलेगी कोई हिस्सेदारी
चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ राज्य की भावनात्मक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और समृद्ध विरासत का हिस्सा है। यह दावा करते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सोमवार को स्पष्ट तौर पर कहा कि उनको इस शीर्ष शैक्षिक संस्था में हरियाणा के हिस्से की ज़रूरत नहीं है।
यहां पंजाब भवन में पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री मान ने कहा कि हरियाणा के किसी भी कॉलेज को यूनिवर्सिटी से मान्यता नहीं दी जाएगी। न ही यूनिवर्सिटी की सीनेट में पिछले दरवाज़े से दाखि़ले के लिए हरियाणा के किसी यत्न को कामयाब होने दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने अफ़सोस जताया कि यूनिवर्सिटी के दर्जे को बदलने के लगातार यत्न किए जा रहे हैं। लेकिन, विद्यार्थियों के हित में सरकार ऐसा बिल्कुल नहीं होने देगी। राज्य के 175 कॉलेज इस यूनिवर्सिटी से मान्यता प्राप्त हैं। पंजाब की कई पीढ़ियां इससे भावनात्मक तौर पर जुड़ी हुई हैं। मुख्यमंत्री ने कहाकि यह यूनिवर्सिटी पंजाब और इसकी राजधानी चंडीगढ़ के विद्यार्थियों को शिक्षा देती है। इस यूनिवर्सिटी का कानूनी और प्रशासकीय दर्जा पहले की तरह ही रहना चाहिए।
उन्होंने याद करवाया कि साल 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के समय इस यूनिवर्सिटी को पंजाब पुनर्गठन एक्ट की धारा 72 (1) के अंतर्गत इंटर स्टेट बॉडी कॉर्पोरेट घोषित किया गया था। विभाजन के बाद इसको पंजाब की तत्कालीन राजधानी लाहौर तबदील किया गया। उसके बाद होशियारपुर और फिर पंजाब की मौजूदा राजधानी चंडीगढ़ में तबदील कर दिया गया। पंजाब यूनिवर्सिटी का पूरा अधिकार-क्षेत्र मुख्य तौर पर पंजाब और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में है।
हरियाणा ने पंजाब यूनिवर्सिटी में से अपना हिस्सा वापस ले लिया थाः
मुख्यमंत्री ने कहाकि पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 की धारा 72 की उप धारा (4) के अनुसार यूनिवर्सिटी के रख-रखाव घाटे की ग्रांटें को संबंधित राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के यूटी प्रशासन में क्रमवार 20ः 20ः 20ः 40 के अनुपात में सांझा जाना था। लेकिन, सन् 1970 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने मर्ज़ी से यूनिवर्सिटी में से अपने राज्य का हिस्सा वापस ले लिया था। फिर 1973 में भी हरियाणा ने अपने सैनेट के सदस्यों को यूनिवर्सिटी से वापस बुला लिया था।
पीयू को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने के प्रयास गलतः
अकाली और कांग्रेसी नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य और इसके लोगों की पीठ में छुरा घोंपने के लिए सख़्त निंदा की। उन्होंने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 26 अगस्त, 2008 को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर पंजाब यूनिवर्सिटी को केंद्रीय दर्जा देने की माँग की थी। इससे भी आगे जाकर अकाली दल की सरकार ने इस संस्था को केंद्रीय यूनिवर्सिटी में तबदील करने के लिए केंद्र सरकार को कोई एतराज़ न होने का पत्र भी जारी किया था। केंद्रीय यूनिवर्सिटी के लिए एनओसी देना देशद्रोह वाला कदम है। जिसका उद्देश्य यूनिवर्सिटी पर राज्य के दावे को कमज़ोर करना था। अकाली दल को इस मुद्दे पर एक भी शब्द कहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
इस मौके पर मुख्यमंत्री के साथ कैबिनेट मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर और हरजोत बैंस, मुख्य सचिव विजय कुमार जंजूआ, मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव ए. वेनूप्रसाद, मुख्यमंत्री के विशेष प्रमुख सचिव रवि भगत और अतिरिक्त विशेष प्रमुख सचिव हिमांशु जैन उपस्थित थे।
Ashwandewangan
प्रकाश सिंह पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में हैं। साल 2019 में उन्होंने मीडिया जगत में कदम रखा। फिलहाल, प्रकाश जनता से रिश्ता वेब साइट में बतौर content writer काम कर रहे हैं। उन्होंने श्री राम स्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी लखनऊ से हिंदी पत्रकारिता में मास्टर्स किया है। प्रकाश खेल के अलावा राजनीति और मनोरंजन की खबर लिखते हैं।