पंजाब

2 पुलिसवाले 30 साल बाद फेक एनकाउंटर के दोषी, CBI ने दी उम्रकैद की सजा

Subhi
26 Aug 2022 5:04 AM GMT
2 पुलिसवाले 30 साल बाद फेक एनकाउंटर के दोषी, CBI ने दी उम्रकैद की सजा
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पंजाब पुलिस के दो पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। मामला 1992 के 30 साल पुराने फर्जी मुठभेड़ का है। मेंकेंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश राकेश कुमार गुप्ता की अदालत ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया।

पंजाब पुलिस के दो पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। मामला 1992 के 30 साल पुराने फर्जी मुठभेड़ का है। मेंकेंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश राकेश कुमार गुप्ता की अदालत ने गुरुवार को यह फैसला सुनाया। दोनों दोषियों पर 4.4 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया और अदालत ने प्रत्येक पीड़ित के परिवार के सदस्यों को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

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सीबीआई के लोक अभियोजक अशोक के बगोरिया ने बताया कि दोनों पुलिसवाले अमृतसर के पास थाना मेहता में तैनात थे। अतिरिक्त एसएचओ इंस्पेक्टर किशन सिंह (डीएसपी के रूप में सेवानिवृत्त) और सब इंस्पेक्टर तरसेम लाल (इंस्पेक्टर के रूप में सेवानिवृत्त) को धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। प्रत्येक पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

एक पुलिसवाले की हो चुकी है मौत

पीड़ितों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने कहा कि दो दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। मामले में एक और मुख्य आरोपी पुलिसवाले तत्कालीन एसएचओ मेहता इंस्पेक्टर राजिंदर सिंह मामले की सुनवाई के दौरान निधन हो गया था।

पुलिस ने किया था यह दावा

घटना 13 सितंबर 1992 की है। पुलिस ने दावा किया था कि अज्ञात आतंकवादियों को हथियार और गोला-बारूद की बरामदगी के साथ पकड़ा है। पुलिस ने दावा किया कि आरोपियों ने हिरासत से भागने का प्रयास किया इस दौरान क्रॉस फायरिंग में मारे गए। पुलिस ने अज्ञात आतंकवादियों को मारने का भी दावा किया और बाद में उनके नाम साहिब सिंह, दलबीर सिंह और बलविंदर सिंह बताए गए।

इस मामले में सीबीआई ने 28 फरवरी 1997 को मामला दर्ज किया और इंस्पेक्टर राजिंदर सिंह, तत्कालीन एसएचओ पीएस मेहता, इंस्पेक्टर किशन सिंह तत्कालीन अतिरिक्त एसएचओ मेहता और एसआई तरसेम लाल के खिलाफ आईपीसी की धारा 302/201/218 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोप पत्र दायर किया। इसमें 34 आईपीसी 1 फरवरी, 1999 को जोड़ी गई। सभी सबूत 20 अक्टूबर, 2005 तक दर्ज किए गए थे, लेकिन उसके बाद हाई कोर्ट ने मामले पर रोक लगा दी। मामला सीबीआई अदालत मोहाली में वापस कर दिया गया, इसलिए अदालत ने दोषसिद्धि और सजा की घोषणा की।


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