नजरिया : यह स्वागतयोग्य है कि सुप्रीम कोर्ट उस याचिका की सुनवाई करने को तैयार है, जिसमें यह मांग की गई है कि दोषियों को राजनीतिक पार्टी बनाने और किसी दल का पदाधिकारी बनने पर रोक लगाई जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को शीघ्र सुनने की आवश्यकता नहीं समझी, लेकिन यह आशा की जाती है कि वह उस पर गंभीरता से विचार करने के साथ ही ऐसा कुछ करेगा, जिससे किसी आपराधिक मामले में सजा पाए नेता किसी दल में पद न धारण कर सकें और न ही अपना राजनीतिक दल बनाने पाएं।
ऐसी कोई व्यवस्था बनाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि कई ऐसे नेता हैं, जो सजायाफ्ता होने के बाद भी अपने दल में कोई न कोई पद धारण किए रहते हैं अथवा उन्होंने अपने राजनीतिक दल का गठन कर लिया है। यह और कुछ नहीं सजायाफ्ता नेताओं की ओर से पर्दे के पीछे से की जाने वाली राजनीति है। उनकी यह सक्रियता राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के प्रयासों पर पानी फेरने का ही काम करती है।
यह सही है कि ऐसे नेता चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन वे राजनीति में सक्रिय रहकर उसे प्रभावित करने का काम तो करते ही हैं। ऐसे नेता कई बार दल विशेष के कर्ता-धर्ता बनकर उसकी रीति-नीति तय करने का भी काम करते हैं। इसी तरह वे यह मिथ्या प्रचार करके लोगों की सहानुभूति अर्जित करने की भी कोशिश करते हैं कि उन्हें राजनीतिक बदले की भावना के तहत जानबूझकर झूठे मामले मे फंसाया गया।