ओडिशा

कोणार्क मंदिर एक बार फिर मिट्टी को लेकर खबरों में, 118 साल बाद खुलने जा रहा है 'गर्भगृह'

Gulabi
6 Jan 2022 1:37 PM GMT
कोणार्क मंदिर एक बार फिर मिट्टी को लेकर खबरों में, 118 साल बाद खुलने जा रहा है गर्भगृह
x
118 साल बाद खुलने जा रहा है ‘गर्भगृह’
ओडिशा का प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर (Konark Sun Temple) एक बार फिर खबरों में है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब कोणार्क सूर्य मंदिर के जगमोहन या मुखशाला परिसर में दबी मिट्टी को सुरक्षित रूप से निकाले जाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) इस खास मंदिर से उस मिट्टी को निकालने का प्लान बना रहा है, जो करीब 118 साल पहले अंग्रेजों ने इसे गिरने से बचाने के लिए भर दिया था. अगर मिट्टी (Sun Temple Sand) को निकाल लिया जाता है तो 100 से भी ज्यादा साल बाद इस मंदिर के जगमोहन परिसर को खोल दिया जाएगा.
रिपोर्ट्स के अनुसार, पुरातत्व सर्वेक्षण संस्था (एएसआई) की तरफ से प्रक्रिया शुरू हुई है और अभी ये मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है. इसके लिए कई कमेटियां बनाई गई है और जल्द ही जगमोहन परिसर के भीतर फंसी मिट्टी को निकालने का काम शुरू किया जाएगा. ऐसे में जानते हैं कि इस मिट्टी को किस कारण से दबाया गया था और यह मिट्टी कहां दबाई गई है. साथ ही जानेंगे कि किस तरह से मिट्टी को निकाला जाएगा और इसका कितना महत्व है…
क्या है मामला?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ओडिशा के सूर्य मंदिर के अंदरूनी हिस्सों से रेत को सुरक्षित रुप से हटाने के लिए रोडमैप तैयार कर रहा है. इस हिस्से को जगमोहन कहा जाता है, जो इस मंदिर का मध्य भाग है. आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर मंदिर से रेत निकालने का मामला इतना गंभीर क्यों है. दरअसल, कई साल पहले मंदिर की स्थिति जर्जर हो गई थी और लग रहा था कि मंदिर ढह ना जाए, इसलिए इसके ढहने से बचाने के लिए इसे सपोर्ट देने के लिए मिट्टी भर दी गई थी.
किसने भरवाई थी मिट्टी?
इस रिपोर्ट के अनुसार, 13वीं शताब्दी में बने इसे मंदिर में साल 1903 में मिट्टी भर दी गई थी. इससे पहले साल 1900 में लेफ्टिनेंट गवर्नर सर जॉन वुडबर्न ने भी यहां का दौरा किया था. इसके बाद इस मंदिर की भव्यता उस दौरान भी काफी प्रसिद्ध थी. यहां तक कि उस दौर में इसे भारत की सबसे शानदार इमारतों में एक घोषित किया गया था और इस भव्यता का वर्णन किया गया था. इस पर कई तरह की रिपोर्ट भी तैयार की गई, जिसमें मिट्टी भरने की बात सामने आई है. हालांकि, इस गिरने से बचाने के लिए कोणार्क मंदिर में मिट्टी भरी गई थी.
किस तरह से भरी गई है मिट्टी?
बता दें कि आप ऊपर की तस्वीर में देख रहे होंगे कि एक स्ट्रक्चर है. इसमें सिर्फ गेट ही दिखता है और अंदर हर तरह मिट्टी ही भरी है. इसे गिरने से रोकने के लिए हर मंदिर में खाली जगह में पूरी मिट्टी भर दी गई है ताकि ये गिरे नहीं.
क्या है जगमोहन?
अगर जगमोहन की बात करें तो जगमोहन का मतलब है मंदिर के बीच सभा हॉल. ओडिशा में हिंदू मंदिर में एक हॉल जैसा स्पेस होता है, उसे जगमोहन कहा जाता है. ऐसा ही कोणार्क मंदिर में था. दरअसल, यह प्रवेश द्वार से गर्भगृह से बीच जो स्पेस होता है, उसे जगमोहन कहा जाता है. बता दें कि यह मंदिर सूर्य को समर्पित है.
मंदिर से जुड़ी खास बातें
अगर मंदिर की बात करें तो साल 1884 में इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. इस मंदिर के दोनों और 12 पहियों की लाइन है. कहा जाता है कि ये 24 पहिए घंटों को प्रदर्शित करते हैं. इसके ही एक पहिया की फोटो 10 रुपये के नोट में छपी हुई है, जो कि आपने देखी होगी. इस मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने करवाया था. अपनी शिल्पकला को लेकर यह मंदिर पूरी दुनिया में फेमस है.
कई तरह की कहानियां भी हैं चर्चा में
कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी के आस-पास मुस्लिम सेना ने इस मंदिर पर आक्रमण कर दिया था. जिसके बाद पुजारियों ने सूर्य देवता की मूर्ती को जगन्नाथ मंदिर में रख दिया था. कहते हैं इस मंदिर के सबसे ऊपर एक चुंबकीय पत्थर रखा है. जिसके कारण समुद्र से गुजरने वाला कोई भी जहाज उसकी ओर खिंचा चला आता है. कहा ये भी जाता है कि मंदिर के ऊपर इसलिए चुंबक रखा गया है, जिससे दीवारों का बैलेंस बना रहे.
Next Story