ओडिशा

Orissa के पुरातत्व सर्वेक्षण-अध्ययन दल पहुँचे, शासकीय लक्ष्मणेश्वर स्नातकोत्तर महाविद्यालय खरौद

Gulabi Jagat
28 July 2024 1:55 PM GMT
Orissa के पुरातत्व सर्वेक्षण-अध्ययन दल पहुँचे, शासकीय लक्ष्मणेश्वर स्नातकोत्तर महाविद्यालय खरौद
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Shivrinarayan शिवरीनारायण: डॉ. त्रिलोचन प्रधान संबलपुर विश्वविधालय उड़ीसा के अत्ताबीरा महाविधालय बरगढ़ के नेतृत्व में एक अध्ययन दल पुरातत्व सर्वेक्षण एवं खोज में छत्तीसगढ़ की कांशी के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मणेश्वर महादेव की नगरी खरौद पहुंचे। इस दल का शोध विषय है "ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अनुसंधान के अंतर्गत- उड़ीसा एवं छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का अध्ययन"। इस कार्य हेतु उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर और छत्तीसगढ़ स्थित भगवान जगन्नाथ स्वामी की मूल भूमि शिवरीनारायण के नर- नारायण मंदिर के अंतर्संबंधों एवं उनके इतिहास के रहस्यों को जानना और अध्ययन करना है। उड़ीसा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर के भगवान जगन्नाथ जी का अंतर्संबंध शिवरीनारायण के माघ पूर्णिमा मेले की शुरुआत व पूजा अर्चना व इस अनादि कालीन धर्म धरा भूमि को जोड़कर देखा जाता है। क्विदंती है कि प्रत्येक माघी पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ स्वामी जी एक दिन के लिए शिवरीनारायण मंदिर में विराजते हैं। साथ है इस सर्वेक्षण व अध्ययन दल द्वारा खरौद स्थित 1181 ई. चेदि - संवत् 917 के लक्ष्मणेश्वर मंदिर के रहस्यों एवं इतिहास का पता लगाना भी है। इस मंदिर में जड़ित शिलालेख में कलिंग राज से रत्नदेव तक हैहयवंशी राजाओं के पूर्ण वंशावली और विरासत को जानना और समझना है। इसी क्रम में सिरपुर की ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन भी करना शामिल है।
इस दोरान डॉ. त्रिलोचन प्रधान और वरिष्ठ पत्रकार एवं संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार होता द्वारा महाविधालय के प्राचार्य डॉ. जी. सी. भारद्वाज से भेट वार्ता और खरौद तथा शिवरीनारायण के ऐतिहासिक पहलुओं पर गंभीर चर्चा शामिल है। इस दौरान प्राचार्य डॉ. जी सी भारद्वाज ने खरौद पर अपने अध्ययन की महत्वपूर्ण बातें भी बतलाई। इस अध्ययन दल ने महाविधालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. ए. आर. बंजारे और नगर के वरिष्ठ पत्रकार सुबोध शुक्ला से भी भेट वार्ता की। इस दौरान ऐतिहासिक और आधुनिक दो प्रकार की विचार धाराएं सामने आयी,जिसमें आधुनिक विचारधारा एवं मानवशास्त्रियों द्वारा पुरी में बौद्ध स्तूप होने की बात कही जाती है।
संभवतः पुरातत्व वेत्ता जी. डी. बेगलर की 1874 के बाद छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का द्वितीय अध्ययन होगा। जिसमें उसकी अस्मिता एवं विरासत शामिल है। जो कतिपय कारणों से शोध कर्ताओं के अध्ययन का विषय नहीं बन सका। इस अध्ययन दल में डॉ. त्रिलोचन प्रधान बरगढ़, वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र होता, संजय मेहर निर्देशक राज्य हैंडलूम और ललिता मोहन मेहर प्रोग्राम आफिसर शामिल रहा। इस अध्ययन के समक्ष कई बातों में समानताएं एवं विभिन्नताएं सामने आई जो चिंतन एवं शोध का विषय है। यह समाजशास्त्र,इतिहास और मानव शास्त्र के लिए शोध का विषय है।
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