मेघालय

मेघालय की एक बेहतरीन परंपरा को अब यूनेस्को ने दी मान्यता

Shiddhant Shriwas
30 May 2022 9:33 AM GMT
मेघालय की एक बेहतरीन परंपरा को अब यूनेस्को ने दी मान्यता
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इस समय मेघालय के 72 गांवों में लगभग 100 जीवित रूट ब्रिजों के बारे में जानकरी है. जलाशयों के दोनों किनारों पर मौजूद 'फिकस इलास्टिका' पेड़ की जड़ों को उलझा कर ग्रामीण 10 से 15 साल की अवधि में इन जीवित रूट ब्रिज को बनाते हैं.

शिलांग. मानव के प्रकृति के एक साथ बिना उसे नुकसान पहुंचाए रहने और उपयोग करने की मेघालय की एक बेहतरीन परंपरा को अब यूनेस्को ने भी मान्यता दी है. यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में मेघालय के गांवों के फैले रूट ब्रिज को भी शामिल किया गया है. मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा (Conrad K Sangma) ने जानकारी दी है कि मेघालय के 70 से अधिक गांवों में लोगों और प्रकृति के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक, सामाजिक और वनस्पति संबंधों को सामने लाने वाले जीवित जड़ों के पुलों (living root-bridges) को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल किया गया है।

मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के संगमा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर पोस्ट किया कि 'यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि 'जिंगकिएंग जेरी: लिविंग रूट ब्रिज कल्चरल लैंडस्केप्स ऑफ मेघालय' (Jingkieng Jri: Living Root Bridge Cultural Landscapes of Meghalaya) को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची में शामिल किया गया है.' उन्होंने कहा कि 'मैं इस आगे बढ़ रही यात्रा में समुदाय के सभी सदस्यों और हितधारकों को बधाई देता हूं.'
गौरतलब है कि मेघालय के ग्रामीण जलाशयों के दोनों किनारों पर मौजूद 'फिकस इलास्टिका' (ficus elastica) पेड़ों की जड़ों को इस तरह से शुरुआत में ही उलझा देते हैं कि लगभग 10 से 15 साल की अवधि में उनसे जीवित जड़ों के पुलों का विकास हो जाता है. इन आपस में मजबूती से उलझी हुई पेड़ों की जड़ों पर पुल बना दिया जाता है. इस समय राज्य के 72 गांवों में लगभग 100 ज्ञात जीवित रूट ब्रिज फैले हैं.
भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के विजय राघवन ने कहा कि मेघालय के लिविंग रूट ब्रिज लोगों और प्रकृति के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक, सामाजिक और वनस्पति संबंधों को सामने लाते हैं. ये यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल करने के योग्य हैं. पिछले साल रूट-ब्रिजों पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन को आयोजित किया गया था. जहां वैज्ञानिकों ने ऑर्किड, उभयचर और स्तनधारियों की उन अनूठी प्रजातियों के बारे में अपने रिसर्च को सामने रखा जो इन रूट-पुलों पर पाए जा सकते हैं.


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