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मणिपुर में अब सबसे आगे बीजेपी
अगले साल फरवरी-मार्च में जिन 05 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, उसमें एक मणिपुर भी है. पांच साल पहले बीजेपी के 04 दलों के गठबंधन ने राज्य से कांग्रेस के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया था. कांग्रेस उसके बाद से राज्य में कमजोर पड़ी है. पिछले चुनावों से लेकर उसके विधायकों में भी टूट-फूट होती रही. उसके पास राज्य में बड़े नेता का भी अभाव है. लेकिन बीजेपी की स्थिति मजबूत होते हुए भी अफस्पा (AFSPA) कानून राज्य की सत्ताधारी पार्टी के लिए चिंता का सबब बना हुआ है, जो सेना को खासी ताकत देता है.
दरअसल पिछले दिनों नागालैंड में सुरक्षा बलों के हाथों बगैर वजह मारे गए 14 नगा नागरिकों के बाद उत्तर-पूर्व में हालात विस्फोटक हो गए हैं. सेना के खिलाफ नाराजगी फैल रही है. नार्थ-ईस्ट के सभी राज्यों में एक सुर से अफस्पा कानून को वापस लेने की मांग हो रही है. दरअसल ये इतना बड़ा मुद्दा बन गया है कि उसके असर से मणिपुर भी अलग नहीं है. आखिर बीजेपी और उसके गठबंधन दल कैसे जनता को मना पाएंगे, ये जरूर एक बड़ा सवाल है. हालांकि ये कहना चाहिए राज्य में नेताओं के बीच सबसे ज्यादा मांग बीजेपी के टिकट को ही लेकर है.
म्यांमार की सीमा पर बसा मणिपुर भारत का एक संवेदनशील राज्य है. यहां विधानसभा का कार्यकाल 19 मार्च 2022 को खत्म हो रहा है. मणिपुर में भाजपा की सरकार है. उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती सरकार बचाने की है. 2022 में उसने 40 सीटों पर जीत का लक्ष्य निर्धारित किया है. इस लक्ष्य को पाना आसान नहीं है.
2017 में भाजपा को 60 में 21 सीटें मिलीं थीं, जिसे उसने कांग्रेस के विधायकों के पालाबदल के जरिए 27 तक पहुंचा दिया था. वैसे बीजेपी यहां 04 दलों के साथ गठबंधन सरकार चला रही है. 60 सदस्यों की मणिपुर विधानसभा में बहुमत के लिए 3्1 का आंकड़ा चाहिए, जिसे बीजेपी इसबार अकेले ही जुटाना चाहती है.
इस लक्ष्य को पाने के लिए बीजेपी ने तेज-तर्रार महिला नेता ए शारदा देवी को प्रदेश की कमान सौंपी है. बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से है. मणिपुर एक छोटा राज्य है. यहां एक विधानसभा क्षेत्र में औसतन करीब 30 हजार वोटर ही होते हैं. यहां की चुनावी रणनीति अन्य राज्यों से अलग है.
पूर्वोत्तर के मणिपुर में भाजपा ने 2017 में चमत्कार किया था. पिछले दो चुनावों में जिस दल का खाता तक नहीं खुला, उसने 2017 में सीधे सरकार ही बना ली थी. बीजेपी ने ये चमत्कार किया था कांग्रेस के एक पुराने नेता एन बीरेन सिंह के दम पर.
वह चुनाव से चार महीना पहले कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए. उस समय अमित शाह कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उन्होंने बीरेन सिंह के साथ मिल बेजान भाजपा को मणिपुर में एक मुख्य प्रतिदंवद्वी के रूप में खड़ा कर दिया. एन बीरेन सिंह ने अपने जनाधार का इस्तेमाल कर भाजपा को मजबूत बनाया.
2017 के चुनाव में 21 सीटें जीत तक भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी. 27 सीटें जीत कर भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी. एन बीरेन सिंह ने 03 अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर सरकार बना ली. भाजपा ने केवल चार महीने की मेहनत में ये करिश्मा कर दिया. उसने 15 साल से कायम कांग्रेस की सत्ता उखाड़ फेंकी.
मणिपुर की राजनीति में विचारवाद से अधिक अवसरवाद प्रभावी रहा है. दल-बदल यहां एक सामान्य प्रवृति है. इसकी वजह से राजनीतिक हालात के बदलते देर नहीं लगती. 2017 में भाजपा ने (21) नेशनल पीपल्स पार्टी (4), नगा पीपल्स फ्रंट (4), लोजपा (1) और दो अन्य विधायकों के सहयोग से सरकार बनायी थी.
एन बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने थे. जून 2020 में 06 विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. सरकार अल्पमत में आ गयी. तब कांग्रेस ने बीरेन सरकार के खिलाफ सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया. लेकिन खुद कांग्रेस के कई विधायकों ने गैरहाजिर रहकर भाजपा सरकार को गिरने से बचा लिया.
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