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इंफाल (आईएएनएस)। मणिपुर विधानसभा का महत्वपूर्ण सत्र सोमवार से शुरू नहीं होगा, क्योंकि राज्यपाल अनुसुइया उइके ने औपचारिक रूप से सत्र नहीं बुलाया है। एक शीर्ष अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी। पिछला विधानसभा सत्र मार्च में हुआ था। नियमों के मुताबिक, हर छह महीने में कम से कम एक विधानसभा सत्र आयोजित किया जाना चाहिए। इस महीने की शुरुआत में एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया था, "राज्य कैबिनेट ने 21 अगस्त को 12वीं मणिपुर विधानसभा का चौथा सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल से सिफारिश की थी।"
सोमवार से विधानसभा सत्र नहीं बुलाने के पीछे का कारण किसी भी अधिकारी ने नहीं बताया है। राजनीतिक हलकों का कहना है कि अगर सत्र होगा तो जाहिर है कि मौजूदा जातीय हिंसा और उससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी।
पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस विधायक दल ने 26 जुलाई को राज्यपाल से मुलाकात की और संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के तहत विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी।
कांग्रेस नेता मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रहे हैं। वह कहते रहे हैं कि राज्य विधानसभा मौजूदा उथल-पुथल पर चर्चा और बहस करने के लिए सबसे उपयुक्त मंच है, जहां सामान्य स्थिति बहाल करने के उपायों के सुझाव पेश किए जा सकते हैं और चर्चा की जा सकती है।
सत्तारूढ़ भाजपा के सात विधायकों सहित दस आदिवासी विधायक, कई अन्य आदिवासी संगठनों के साथ, 12 मई से आदिवासियों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं। आदिवासी विधायकों ने यह भी कहा कि वे 'सुरक्षा कारणों' के कारण इंफाल में विधानसभा सत्र में भाग नहीं ले पाएंगे।
तीन बार सीएम रहे ओकराम इबोबी सिंह ने रविवार को कहा कि अगर छह महीने में विधानसभा सत्र नहीं होगा तो मणिपुर में संवैधानिक संकट हो जाएगा।
कांग्रेस विधायक दल के नेता सिंह ने रविवार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 79वीं जयंती के अवसर पर इंफाल के कांग्रेस भवन में सद्भावना दिवस पर एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि यह अभूतपूर्व है कि कैबिनेट के अनुरोध के बावजूद राज्यपाल ने विधानसभा सत्र नहीं बुलाया।
ज्ञात हो कि 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 160 से अधिक लोग मारे गए हैं और 600 से अधिक घायल हुए हैं। मणिपुर में जातीय संघर्ष के मद्देनजर विभिन्न समुदायों के लगभग 70,000 पुरुष, महिलाएं और बच्चे विस्थापित हो गए हैं। अब वे मणिपुर में स्कूलों, सरकारी भवनों और सभागारों में स्थापित 350 शिविरों में शरण लिए हुए हैं और कई हजार लोगों ने मिजोरम सहित पड़ोसी राज्यों में शरण ली है।
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Rani Sahu
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