मणिपुर

होली एक ऐसा त्योंहार है जो पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता

Shiddhant Shriwas
6 March 2023 7:31 AM GMT
होली एक ऐसा त्योंहार है जो पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता
x
भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता
नई दिल्ली। होली एक ऐसा त्योंहार है जो पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पूर्वोत्तर भारत की बात करें तो यहां के मणिपुर राज्य में होली को याओसंग नाम से मनाया जाता है। इस त्योंहार के दौरान राज्य में होली का गजब उत्सव देखने को मिलता है. इस दौरान महिलाएं रातभर पुरुषों के साथ पूरे उल्लास के साथ होली यानी ‘याओसंग’ उत्सव मनाती है। आज भी मणिपुर में होली पूरी परंपरा और उल्लास के साथ मनाई जाती है। आज भी मणिपुर की होली पूरे आध्यात्मिक माहौल में मनाई जाती है, जहां होली का मतलब है आनंद और उल्लास। मणिपुर की मैतेई जनजाति के लोग होली की तरह ही ‘याओसंग’ उत्सव मनाते हैं।
छह दिनों तक मनाते हैं होली
मणिपुर की होली में न तो अश्लीलता का दखल बढ़ा है और न ही आधुनिकता ने प्रवेश किया है। होली का आध्यात्मिक मतलब क्या होता है, यह इंफाल आकर देखा जा सकता है। उत्तर भारत में होली दो दिनों तक मनाई जाती है, लेकिन मणिपुर में लोग पूरे छह दिनों तक होली मनाते हैं। वह भी राधा और कृष्ण के साथ। लोग भले ही मणिपुर को उग्रवाद और उग्र आंदोलनों के लिए जानते हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि मणिपुरी होली का कोई जवाब नहीं है। होली की मस्ती में पूरी मणिपुरी घाटी मदमस्त हो जाती है। मणिपुर सरकार इस मौके पर तीन दिनों के अवकाश की घोषणा करती है। अंतर सिर्फ इतना है कि यहां इसका नाम ‘याओसंग’ उत्सव है।
सदियों से मना रहे याओसंग उत्सव
दरअसल, सदियों से मणिपुर के लोग याओसंग उत्सव मनाते आए हैं। वैष्णव धर्म के प्रभाव के बाद अठारहवीं सदी में याओसंग उत्सव और होली मिलकर एक हो गए। छह दिवसीय होली का आरंभ फाल्गुन पूर्णिमा से होता है। उस रात लोग घास-फूस, लकड़ी आदि से झोपड़ी बनाते हैं और उसमें आग लगा देते हैं। उत्तर भारत में लोग उसे होलिका दहन के नाम से जानते हैं।
किया जाता है समूहिक भोज
अगली सुबह बच्चे घर-घर जाकर चंदा वसूलते हैं और रास्ते में रस्सी बांधकर गुजरने वाले से स्वेच्छा से चंदा मांगते हैं, जिसे नकाथेंग कहा जाता है। चंदे से जुटाई गई वस्तुओं और रुपये का उपयोग समूहिक भोज में किया जाता है। यह नजारा पूरी मणिपूर घाटी में देखा जा सकता है। दूसरे दिन लोग राधा-गोविंद मंदिर जाकर फगुवा गाते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं। लड़कों का दल समूह लड़कियों साथ होली खेलता है। सारा कुछ मर्यादित माहौल में होता है। कोई हुड़दंग नहीं। इस दिन की प्रतीक्षा पूरे साल की जाती है। यौवन की उमंग उस दिन देखते बनती है।
सिर्फ गुलाल का प्रयोग
मजे की बात यह है कि लड़कों के साथ होली खेलने के लिए लड़कियां उनसे पैसे लेती हैं। होली में भीगे रंग का प्रयोग पूरी तरह वर्जित है, सिर्फ गुलाल का प्रयोग होता है। होली के मौके पर ‘थाबाल चोंगबा नृत्य’ करने की परंपरा है। थाबाल का मतलब- चांदनी और चोंगबा का मतलब नृत्य होता है। ये नृत्य सभी क्षेत्रों में छह दिनों तक चलता है और इसके माध्यम से युवक और युवतियों को मिलने का मौका मिलता है।
करते हैं प्रेम का इजहार
दरअसल ‘थाबाल चोंगबा नृत्य’ के माध्यम से ही युवक या युवती को अपनी पसंद के साथ हाथ पकड़कर नृत्य करने और अपने प्रेम का इजहार करने का मौका मिलता है। यही वजह है कि युवा पीढ़ी इस उत्सव का इंतजार करती है। पहले इस नृत्य के दौरान सिर्फ ड्रम या ढोलक बजाने की इजाजत थी, लेकिन अब आधुनिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग होने लगा है।
Next Story