मणिपुर

मणिपुर के 47 वर्षीय मोइरंगथेम लोइया ऐसी बेमिसाल हैं शख्सियत

Bharti sahu
12 Dec 2022 10:39 AM GMT
मणिपुर के 47 वर्षीय मोइरंगथेम लोइया ऐसी बेमिसाल  हैं शख्सियत
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मणिपुर के 47 वर्षीय मोइरंगथेम लोइया ऐसी बेमिसाल शख्सियत हैं, जिन्होंने लगी-लगाई जॉब छोड़कर ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ़ लगभग दो दशक लंबा संघर्ष करते हुए तीन सौ एकड़ बंजर ज़मीन को जंगल में बदल डाला।

मणिपुर के 47 वर्षीय मोइरंगथेम लोइया ऐसी बेमिसाल शख्सियत हैं, जिन्होंने लगी-लगाई जॉब छोड़कर ग्लोबल वॉर्मिंग के खिलाफ़ लगभग दो दशक लंबा संघर्ष करते हुए तीन सौ एकड़ बंजर ज़मीन को जंगल में बदल डाला। इस जंगल में अब हज़ारों तरह के पौधों की कई प्रजातियां हैं। और यहां दुनिया भर के पर्यटक आते रहते हैं। उन्होंने आज से बीस साल पहले इस अनोखे काम की शुरुआत की थी। उन्होंने दो दशक पहले इम्फाल शहर के बाहरी इलाके लंगोल हिल रेंज में पेड़ लगाना शुरू किया। उरीपोक खैदेम लीकाई इलाके के रहने वाले लोइया बचपन से ही प्रकृति प्रेमी हैं। वह बचपन में पुनशिलोक वनक्षेत्र में खेला-कूदा करते थे। साल 2000 की शुरुआत में मोइरंगथेम लोइया चेन्नई से कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोबरू पर्वत पर गए तो बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। लापता हरियाली की यादों ने उन्हे अंदर तक झकझोर कर दिया।

उन्होंने वहां की स्थिति देखकर सोचा कि बंजर ज़मीन को भी समय और समर्पण के साथ घने हरे-भरे जंगल में बदला जा सकता है। उसी दिन लोइया ने अपनी नौकरी छोड़ दी और वहीं पुनशिलोक में एक छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहने लगे और पेड़ लगाने शुरू किये। इस तरह छह साल गुज़र गए। इस बीच उन्होंने अकेले ही वहां मगोलिया, ओक, बांस, टीक, फिकस वग़ैरह के पेड़ उगा दिए। लोइया के काम को देखकर उनके कुछ दोस्तों ने भी उनका साथ दिया। 2003 में लोइया और उनके साथियों ने वाइल्डलाइफ ऐंड हैबिटैट प्रोटेक्शन सोसायटी (WAHPS) बनाई। इस संस्था के वॉलंटियर्स भी वृक्षारोपण में जुट गए। इसके बाद तो वन विभाग भी उनके समर्थन में आ गया और मदद करने लगा। आज उनकी संस्था पुनशिलोक वन के संरक्षण, अवैध शिकार और जंगल की आग से लड़ने के लिए समर्पित है।
अपनी पहल के दो दशक बाद, आज लोइया के जुनून और मेहनत का ही नतीजा है कि लगभग तीन सौ एकड़ का इलाका हरियाली से लहलहा रहा है। उनके बसाये हुए जंगल में इस समय बांस की दो दर्जन से ज़्यादा प्रजातियों के अलावा दो-ढाई सौ औषधीय पेड़-पौधे भी हैं। जंगल बस गया तो उसमें चीता, हिरण, भालू, तेंदुआ, साही जैसी वन्य प्रजातियां भी रहने लगी हैं। पूरा जंगल अब पक्षियों की आवाज़ से गूंजने लगा है। और इतना ही नहीं, हज़ारों पेड़-पौधों से क्षेत्र के तापमान में भी गिरावट आई है। उनके तीन सौ एकड़ में फैले पुनशिलोक जंगल में अब देश-विदेशों से पर्यटक भी घूमने आते हैं। अपनी कड़ी मेहनत से मोइरंगथेम लोइया ने इस वीरान जगह को हरा-भरा बना दिया है। उनको इस काम में राज्य सरकार से भी पूरा प्रोत्साहन मिला है।


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