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SC ने मांगी है रिपोर्ट, हाई कोर्ट में याचिका खत्म, जेल अधीक्षक कुमरे की जांच का मामला
Rani Sahu
2 Aug 2022 7:52 AM GMT
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SC ने मांगी है रिपोर्ट
नागपुर. कई बार देरी से समर्पण करने के बावजूद पहले भी 45 दिनों का इमरजेंसी पैरोल दिया गया था. किंतु अब इमरजेंसी पैरोल देने का आवेदन ठुकराए जाने पर इसे चुनौती देते हुए कैदी हनुमान पेंदाम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. इस संदर्भ में अदालत ने जेल अधीक्षक कुमरे को दोषी करार दिया था. हाई कोर्ट के इस फैसले को कुमरे ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी.
हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार विभागीय जांच के बाद प्रशासन ने क्या कार्रवाई की? इसकी रिपोर्ट मांगी गई थी. सोमवार को सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसी संदर्भ में रिपोर्ट मांगी है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी वही रिपोर्ट मांगी जाने के कारण अब मसला उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन होने का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया. अदालत मित्र के रूप में अधि. फिरदौस मिर्जा तथा सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील एमके पठान ने पैरवी की.
अनुशासनात्मक प्राधिकरण की कापी दे सरकार
गत सुनवाई के बाद अदालत ने कहा था कि आदेश के अनुसार जांच पूरी की गई है किंतु इस मामले में अनुशासनात्मक प्राधिकरण की ओर से निर्णय लिया जाना बाकी है. अत: 4 सप्ताह के भीतर अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा लिए जाने वाले फैसले की कापी अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जाए. अदालत का मानना था कि जेल अधीक्षक के पद पर रहते हुए अधिकारों का दुरुपयोग किया गया है. न्याय करते समय भेदभाव किया गया. यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा कोई फैसला दिया जाता है तो सभी द्वारा इसका पालन किया जाना जरूरी है. इसकी भलीभांति जानकारी होने के बावजूद जेल अधीक्षक द्वारा जानबूझकर इसे नजरअंदाज किया जाना प्रतीत हो रहा है. इसके पूर्व हाई कोर्ट की अन्य बेंच ने भी जेल अधीक्षक की कार्यप्रणाली पर आपत्ति दर्ज की है. 25 नवंबर 2020, 26 फरवरी 2021 और 27 अगस्त 2021 को भी जेल अधीक्षक की मनमानी कार्यप्रणाली अदालत के समक्ष उजागर हुई है. इस तरह से कोर्ट की अवमानना हुई है.
पैरोल : उपायुक्त स्तर के अधिकारी से जांच
कैदियों को दिए गए पैरोल और ठुकराए गए पैरोल को लेकर कुमरे की कार्यप्रणाली की सम्पूर्ण जांच करने के लिए उपायुक्त स्तर के पुलिस अधिकारी की नियुक्ति करने के आदेश पुलिस आयुक्त को दिए गए थे. अदालत ने आदेश में स्पष्ट किया था कि जिस अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी, उसे जेल अधीक्षक की मदद लिए बिना स्वतंत्र रूप से जांच करनी होगी जिसके लिए पुलिस आयुक्त द्वारा नियुक्ति अधिकारी को हरसंभव सहयोग करने के आदेश डीआईजी (जेल) को दिए गए थे. अदालत के आदेशों के अनुसार जांच पूरी कर कोर्ट में रिपोर्ट पेश की गई.
सोर्स- नवभारत.कॉम
Rani Sahu
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