महाराष्ट्र

महाराष्‍ट्र में ‘मशाल’ पर भी सियासत हुई तेज

Admin Delhi 1
23 Feb 2023 6:35 AM GMT
महाराष्‍ट्र में ‘मशाल’ पर भी सियासत हुई तेज
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मुंबई: भारत निर्वाचन आयोग और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब महाराष्ट्र में एक और बड़ी सियायी उठा पटक के आसार हैं। चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के धड़े को असली शिवसेना माना है। आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को पार्टी का नाम शिवसेना और चुनाव चिह्न तीर-कमान सौंप दिया। इसके बाद अब उन्हें पहले से दिए गए बालासाहेब शिवसेना और दो तलवार एवं ढाल के साथ दिए गए चुनाव चिह्न को फ्रीज कर दिया गया है।

बता दें कि चुनाव चिह्न ‘तीर-कमान’ और नाम ‘शिवसेना’ गंवाने के बाद उद्धव ठाकरे के मौजूदा निशान ‘मशाल’ पर भी सवाल उठ रहे हैं। खबर है कि बिहार से आए समता पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने बुधवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से यहां मुलाकात की और मशाल चुनाव चिह्न वापस लेने के लिए उनसे मदद मांगी। यह चुनाव चिह्न महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले धड़े को आवंटित किया गया है। समता पार्टी के अध्यक्ष उदय मंडल की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार शाम को ठाणे स्थित शिंदे के कार्यालय में उनसे मुलाकात की।

बताया जा रहा है कि यह बैठक ऐसे समय में की गई है, जब कुछ ही दिन पहले निर्वाचन आयोग ने शिंदे के नेतृत्व वाले समूह को वास्तविक शिवसेना के रूप में मान्यता दी थी और उसे तीर-कमान चुनाव चिह्न आवंटित किया था। आयोग ने फैसला सुनाया था कि ठाकरे गुट को पिछले साल आवंटित किया गया मशाल चुनाव चिह्न 26 फरवरी को पुणे जिले में उपचुनाव होने तक उसी के पास बना रहेगा।

प्रतिनिधिमंडल ने शिंदे से कहा कि समता पार्टी बिहार का एक पुराना राजनीतिक दल है। उसका चुनाव चिह्न मशाल है, लेकिन महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद निर्वाचन आयोग ने इसे ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट को आवंटित कर दिया। प्रतिनिधिमंडल ने शिंदे से यह भी कहा कि वे आयोग के फैसले को उच्चतम न्यायालय में भी चुनौती देंगे।

वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दिवंगत नेता जॉर्ज फर्नांडिस द्वारा 1994 में गठित समता पार्टी ने पिछले साल अक्टूबर में ठाकरे की पार्टी को यह चुनाव चिह्न आवंटित किए जाने के खिलाफ निर्वाचन आयोग से शिकायत की थी और इसके खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था, लेकिन अदालत ने मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसे पार्टी के चुनाव चिह्न तय करने का कोई अधिकार नहीं है। निर्वाचन आयोग ने 2004 में समता पार्टी की मान्यता रद्द कर दी थी।

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