महाराष्ट्र

PM मोदी के साथ मंच यूं ही साझा नहीं कर रहे पवार

Harrison
1 Aug 2023 4:53 PM GMT
PM मोदी के साथ मंच यूं ही साझा नहीं कर रहे पवार
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मुंबई | महाराष्ट्र की राजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले शरद पवार की भले आज उनके ही सहयोगी दल (कांग्रेस और शिव सेना के उद्धव गुट) के नेता इस बात के लिए आलोचना कर रहे हों कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच क्यों साझा कर रहे हैं लेकिन इसके पीछे भी मराठा छत्रप की सियासी चाल नजर आती है। दरअसल, अपने सियासी दुश्मनों के साथ भी दोस्ती रखने वाले शरद पवार हर मौके को भुनाना जानते हैं। यही वजह है कि वह अपनी ही पार्टी के दो फाड़ होने के महीने भर के अंदर ही दो बड़े सियासी शत्रुओं के साथ मंच साझा करने जा रहे हैं।
पुणे में शरद पवार आज (मंगलवार) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि पर लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करेंगे। उनके साथ मंच पर उनके बागी भतीजे और राज्य के नए डिप्टी सीएम अजित पवार भी होंगे। इनके अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी होंगे।
शरद पवार इस कार्यक्रम में पीएम मोदी को सम्मानित कर एक तीर से कई निशाने साध सकते हैं। मसलन, वह आम जनमानस को यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि उनका दिल बहुत बड़ा है। वह बहुत उदार हैं और दूसरे कि वह पीएम मोदी के बरक्स महाराष्ट्र की सियासत के बरगद हैं। वह इतने बड़े नेता है कि प्रधानमंत्री मोदी जिनकी विश्व में लोकप्रियता चर्चा में है, वह भी उनके हाथों सम्मान पाकर गदगद हैं।
दूसरी तरफ सियासी जादूगर नरेंद्र मोदी भी राज्य में बढ़ती अपनी पैठ को जगजाहिर करने और इस मौके का सियासी फायदा उठाने की कोशिश करेंगे कि इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की तरह उन्हें भी इस सम्मान के लिए काबिल समझा गया। वह इसी बहाने राज्य में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिशों को नई धार देंगे।
इसी बीच, मंच पर बैठे अपने भतीजे अजित पवार को भी सीनियर पवार यह संदेश देने में सफल होंगे कि उनके सामने उनकी बिसात अभी बहुत छोटी है क्योंकि जिस नेता की शरण में वह पहुंचे हैं, वह उनसे सम्मान पाकर आह्लादित हो रहे हैं। शरद पवार भतीजे के सामने आगामी चुनावों में लंबी लकीर भी खींचने की कोशिश करेंगे कि अभी भी महाराष्ट्र में एनसीपी का मतलब शरद पवार ही है। वह इस बात को भी साबित करने की कोशिश करेंगे कि 83 साल में भी वह महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्रबिन्दु क्यों हैं और लोग उन्हें भीष्म पितामह क्यों कहते हैं।
बीजेपी और बीजेपी के साथ गए अपने भतीजे को सख्त संदेश देने के साथ ही शरद पवार महाविकास अघाड़ी के सहयोगी दलों को भी यह संदेश देने की कोशिश में हैं कि उनके लिए सभी दरवाजे खुले हैं और वह अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। बहरहाल, वह सहयोगी दलों पर इस बात को मानने के लिए ज्यादा दबाव देंगे कि महाराष्ट्र के गांव की गलियों से लेकर दिल्ली की सत्ता पर बैठा सर्वोच्च व्यक्ति भी उनकी अदा का इस कदर कायल है कि उनके सामने झुककर सम्मान पाने में सम्मान महसूस कर रहा है।
टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले दृश्यों और अखबारों और सोशल मीडिया पर जारी होने वाली उस कार्यक्रम की तस्वीरों के सहारे शरद पवार महाराष्ट्र में जनमानस के बीच मनोवैज्ञानिक स्तर पर बढ़त बनाने की पहली जुगत में दिखते हैं, और उस कोशिश में वह साकार होते नजर आ रहे हैं। वह ऐसे मनोवैज्ञानिक खेल के उस्ताद रहे हैं।
बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनावों में अक्टूबर 2019 में जब शरद पवार ने सतारा में बारिश में भीगते हुए चुनावी रैली को संबोधित किया था, तब उसका जनमानस पर भारी सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। पवार उसी तरह की मनोवैज्ञानिक जीत मराठी मानुष पर लेना चाहते हैं, ताकि वह एक तीर से कई शिकार कर सकें।
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