महाराष्ट्र

कागज के बाप्पा बने पर्यावरण दूत, 14 फीट की है भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा

Rani Sahu
5 Sep 2022 9:46 AM GMT
कागज के बाप्पा बने पर्यावरण दूत, 14 फीट की है भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा
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-अनिल चौहान
भायंदर: जल प्रदूषण (Water Pollution) रोकने की मंशा से प्रशासनिक स्तर पर ईको-फ्रेंडली मूर्तियों (Eco-Friendly Statues) को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता रहा है, लेकिन सरकारी प्रयास को संतोषजनक प्रतिसाद अभी तक नहीं मिल सका। इस बीच नवयुवक मित्र मंडल (Navyuvak Mitra Mandal) नवघर रोड भायंदर पूर्व (Bhayandar East) ने पर्यावरण के अनुकूल कागज से बाप्पा की बड़ी मूर्ति बनाकर एक प्रशंसनीय और अनुकरणीय मिसाल पेश की है।
मंडल के अध्यक्ष मेहुल शेठ, सेक्रेटरी सुनील जंगले और कोषाध्यक्ष सचिन पोतनीस संयुक्त रूप से बताया कि उनके मंडल में गणेश उत्सव का यह 21वां साल है। इस बार उन्होंने कागज की मूर्ति बनाकर बदलाव लाने की कोशिश की है।
मूर्ति का वजन तकरीबन 75 किलो
14 फीट ऊंची बाप्पा की मूर्ति में 75 हजार टिश्यू पेपर, 20 किलो चॉक (खड़ी) पाउडर, 25 किलो गोंद (गम) और 15 किलो स्टील रॉड का उपयोग हुआ है। मूर्ति का वजन तकरीबन 75 किलो है। बाप्पा को अलग-अलग रंग की कपड़े की धोती (धोतर) रोज बदल-बदलकर पहनाई जाती है।
28 से 30 दिन का लगा समय
मंडल के अध्यक्ष मेहुल शेठ ने कहा कि कागज की मूर्ति बनाने में अमूमन 28 से 30 दिन लगता है। चूंकि कागज की मूर्ति का बारिश में सूखना मुश्किल होता है, इसलिए इसकी तैयारी जनवरी से ही शुरू कर दी जाती है। मार्च से मई के बीच जब तेज गर्मी रहती है, तभी कागज से मूर्ति का ढांचा तैयार कर लिया जाता है और बाद में इस पर फिनिशिंग और रंगाई की जाती है।
शहर में पहली बार स्थापित हुई बड़ी इको फ्रेंडली मूर्ति
सचिन ने बताया कि कागज की इस मूर्ति को विलेपार्ले के मूर्तिकार राजेश मयेकर ने बनाया है। पीओपी की मूर्ति से इसका वजन 85-90 फीसदी कम और कीमत तकरीबन उतनी ही या थोड़ी सी ज्यादा हो सकती है। प्लास्टर से बनी इतनी ऊंची मूर्ति लगभग 7 से 8 क्विंटल वजनी हो सकती है, जबकि कागज की यहां मूर्ति महज 75 से 80 किलो के आसपास है। वजन हल्का होने से आगमन और विसर्जन में भी आसानी होगी। उन्होंने दावा किया कि इतनी बड़ी इको फ्रेंडली मूर्ति सम्भवतः शहर में पहली बार स्थापित की गई है। कागज की मूर्ति बनाने के पीछे सुर्खियां बटोरना नहीं, बल्कि पर्यावरण की रक्षा के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयास में हाथ बंटाना है।
Rani Sahu

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