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नितिन गडकरी ने भाजपा के सत्ता में लाने का श्रेय दिया अटल बिहारी और लाल कृष्ण आडवाणी के प्रयासों को
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को भाजपा के सत्ता में आने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और दीनदयाल उपाध्याय द्वारा किए गए कार्यों को दिया। आदिवासी क्षेत्रों में कई स्कूल खोलने वाली लक्ष्मणराव मनकर स्मृति संस्था, जिसमें करीब 11 शिक्षक कार्यरत हैं के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गडकरी ने मुंबई में भाजपा के 1980 के सम्मेलन में अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण को सुनकर याद किया।
अटल, आडवाणी, दीनदयाल उपाध्याय के प्रयास से है भाजपा सत्ता में
गडकरी ने कहा कि अटलजी ने कहा था: एक दिन अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा। इशारा करते हुए बताया कि मैं वहां था। उस भाषण को सुनने वाले सभी को विश्वास था कि ऐसा दिन आएगा। अटल जी, आडवाणी जी, दीनदयाल उपाध्याय और कई कार्यकर्ताओं ने ऐसा काम किया कि आज हम देश और कई राज्यों में मोदी जी के नेतृत्व में सत्ता में है।
दत्तोपंत ठेंगड़ी का भी दिया हवाला
नितिन गडकरी को इस सप्ताह भाजपा की सबसे ताकतवर संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से हटा दिया गया था। गडकरी ने सत्ता केंद्रित राजनीति पर बोलते हुए आरएसएस के विचारक दिवंगत दत्तोपंत ठेंगड़ी का भी हवाला दिया। ठेंगड़ी जी कहा करते थे कि हर राजनेता अपने अगले चुनाव के बारे में सोचता है। वह (अगले के) पांच साल सोचता है, क्योंकि वह सोचता है इस चुनाव के बाद अगला चुनाव कब आएगा, लेकिन हर सामाजिक-आर्थिक सुधारक जो समाज और देश का निर्माण करना चाहता है, वह एक सदी से दूसरी सदी तक सोचता है। वह सौ साल सोचता है। इस काम में कोई शॉर्टकट नहीं है।
हर साल सड़क दुर्घटना में 1.50 लाख से अधिक लोगों की मौत
मुंबई। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को कहा कि सलाहकारों द्वारा तैयार की गई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में गलतियों को सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसमें देश भर में सालाना 1.50 लाख से अधिक लोग मारे जाते हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री यहां सिविल इंजीनियर्स के राष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने दावा किया, देश में हर साल पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें 1.50 लाख से अधिक लोगों की जान जाती है। यह केवल सलाहकारों द्वारा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में की गई गलतियों के कारण है। उन्होंने दावा किया कि अधिकांश डीपीआर बहुत रूढ़िवादी हैं।