महाराष्ट्र

मुम्बई में वरवर राव और अन्य दो की याचिका का NIA ने किया विरोध

Deepa Sahu
24 Feb 2022 4:57 PM GMT
मुम्बई में वरवर राव और अन्य दो की याचिका का NIA ने किया विरोध
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एल्गार परिषद-माओवादी लिंक मामले में गिरफ्तार किए गए,

एल्गार परिषद-माओवादी लिंक मामले में गिरफ्तार किए गए, कवि वरवर राव और अरुण फरेरा और वर्नोन गोंजाल्विस की याचिका का एनआईए ने विरोध किया। इस याचिका में उन्होंने डिफाल्ट जमानत से इनकार करने वाले आदेश की समीक्षा करने की मांग की थी।

इस याचिका का विरोध करते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गुरुवार को मांग की कि एल्गर परिषद-माओवादी लिंक मामले में गिरफ्तार कवि वरवर राव और दो अन्य कार्यकर्ताओं द्वारा दायर एक याचिका को बॉम्बे हाई कोर्ट खारिज करे। हाईकोर्ट ने पहले ही उन्हें डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया था। गौरतलब है कि कवि वरवर राव फिलहाल मेडिकल जमानत पर बाहर हैं, जबकि अन्य दो कार्यकर्ता जेल में बंद हैं। एनआईए ने कहा कि याचिका के माध्यम से आरोपी रिकॉर्ड के सत्यापन और मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के आदेश को बदलने की मांग कर रहे हैं।
एनआईए ने कहा कि आवेदकों को इस अदालत के बजाय अपील करने के लिअ अपीलीय अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए था। एजेंसी ने अपने हलफनामे में कहा कि एक बार इस अदालत द्वारा मामले का निर्णय और खारिज कर दिए जाने के बाद आवेदक समीक्षा की आड़ में उसी प्रार्थना के साथ नहीं आ सकते हैं। यह कानून की उचित प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इससे एक गलत मिसाल कायम होगी।
गौरतलब है कि तीनों आरोपियों ने न्यायमूर्ति शिंदे की अगुवाई वाली पीठ द्वारा पारित 1 दिसंबर, 2021 के एक आदेश को चुनौती दी है। इस मामले में सह-अभियुक्त वकील सुधा भारद्वाज को डिफाल्ट जमानत दी गई थी, लेकिन कुछ अन्य आरोपी व्यक्तियों को डिफ़ॉल्ट जमानत से वंचित कर दिया गया था। तीनों याचिकाकर्ता भी इसी में शामिल हैं। उस समय हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा था कि भारद्वाज के अलावा अन्य आरोपियों ने कानून द्वारा निर्धारित समय के भीतर निचली अदालत के समक्ष डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए अपनी याचिका दायर नहीं की थी।
एनआईए ने अपने जवाब में कहा कि सीआरपीसी की धारा 362 उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक फैसले को योग्यता के आधार पर बदलने या समीक्षा करने के लिए अदालत पर प्रतिबंध लगाती है। हालांकि, अधिवक्ता सुदीप पासबोला और आर सत्यनारायणन के माध्यम से दायर अपनी याचिकाओं में आरोपी ने कहा कि एचसी का आदेश तथ्यात्मक त्रुटि पर आधारित था. क्योंकि कोर्ट यह नोट करने में विफल रहा कि एक सामान्य आदेश के माध्यम से निचली अदालत ने भारद्वाज द्वारा दायर डिफ़ॉल्ट जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। इसलिए, यदि हाईकोर्ट ने भारद्वाज को जमानत देने के मामले में 6 नवंबर 2019 के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया तो अन्य भी राहत के हकदार थे।न्यायमूर्ति एस एस शिंदे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 2 मार्च की तिथि निर्धारित की है।
मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित 'एल्गार परिषद' सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। इसके बारे में पुणे पुलिस ने दावा किया था कि अगले दिन महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी। पुणे पुलिस ने दावा किया था कि कॉन्क्लेव को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। मामले में एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है। केस को बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया था।


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