महाराष्ट्र

पति एवं उसके परिवार द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता को शमनीय अपराध बनाने पर विचार करे केंद्र: अदालत

Admin4
12 Oct 2022 6:03 PM GMT
पति एवं उसके परिवार द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता को शमनीय अपराध बनाने पर विचार करे केंद्र: अदालत
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मुंबई: (Mumbai) बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने केंद्र से कहा है कि वह पति या उसके संबंधियों द्वारा किसी महिला का उत्पीड़न या उसके साथ क्रूरता संबंधी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत मामलों को शमनीय अपराध बनाने पर विचार करे, ताकि संबंधित पक्ष अदालत में आए बिना समझौता कर सकें।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने 23 सितंबर को पारित एक आदेश में कहा कि आईपीसी की धारा 498ए को शमनीय बनाने की महत्ता को ''नजरअंदाज नहीं किया जा सकता''। उसने कहा कि यह अपराध अशमनीय होने के कारण सहमति के आधार पर मामलों को रद्द किए जाने का अनुरोध करने वाली न्यूनतम 10 याचिकाओं पर रोजाना सुनवाई होती है।इस फैसले की प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई।अदालत ने पुणे के एक थाने में 2018 में एक व्यक्ति, उसकी बहन एवं मां के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर यह फैसला सुनाया। व्यक्ति की पत्नी ने अपने पति और ससुराल वालों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
अशमनीय अपराध होने पर यदि पक्षकार मामले का निपटारा करना चाहते हैं, तो आरोपी को मामला खारिज कराने के लिए उच्च न्यायालय जाना पड़ता है।आदेश में कहा गया है कि यदि धारा 498ए को अदालत की अनुमति से शमनीय अपराध बना दिया जाता है, तो इससे न केवल पक्षकारों को होने वाली समस्याओं से बचा जा सकेगा, बल्कि उच्च न्यायालय का कीमती समय भी बचेगा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 498ए के तहत मामले इस प्रकृति के नहीं होते कि मजिस्ट्रेट उक्त अदालत की अनुमति से उनमें समझौता न करा सकें।पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह को निर्देश दिया कि वह संबंधित केंद्रीय मंत्रालय के समक्ष इस मामले को जल्द से जल्द उठाएं।
याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा कि उन्होंने आपसी रजामंदी से मामला निपटा लिया है और शिकायतकर्ता को 25 लाख रुपए देने एवं तलाक लेने पर सहमति जताई है। शिकायतकर्ता ने भी अपने हलफनामे में कहा कि वह प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिका का विरोध नहीं करती। इसके बाद अदालत ने प्राथमिकी को खारिज कर दिया।
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