महाराष्ट्र

काजिर्णे गांव में अब तक नहीं पहुंची बस सेवा, ठहर गए पांव

HARRY
15 Aug 2022 6:18 AM GMT
काजिर्णे गांव में अब तक नहीं पहुंची बस सेवा, ठहर गए पांव
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मुंबई: देश कहां से कहां पहुंच गया. लेकिन आजादी के 75 साल में देश का एक गांव ठहर गया.महाराष्ट्र के कोल्हापुर के काजिर्णे गांव में अब तक बस नहीं पहुंची है. महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन का यह नारा हुआ करता है कि जहां तक सड़क बहुचेगी वहां तक एसटी पहुंचेगी. लेकिन यह एसटी बस काजिर्णे गांव नहीं पहुंची है. यहां स्कूल तो है. चौथी तक पढ़ाई होती है. यहां 'विकास' तो हुआ है, लेकिन वो गांव के किसी जाधव परिवार में एक नया बच्चा पैदा हुआ है, इस नाम से उसका नामकरण हुआ है.

पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने लाल किले के भाषण से आज कहा कि हम ऊंचा तभी उड़ सकते हैं, जब हमारे पांव जमीन से जुड़े हों. इस गांव के पांव जमीन पर नहीं, जमीन के अंदर तक धंसे हुए हैं. कोई इसे दलदल से निकाले तो ये उड़ने को पंख फैला ले. देश आज आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है. उड़ने के लिए यह गांव भी फड़फड़ा रहा है.
गांव जहां- वहां एसटी, सड़क जहां- वहां एसटी!…नारा है, नारों का क्या
1947 में भारत आजाद हुआ. 1948 में यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए बॉम्बे स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (बीएसआरटीसी) का गठन हुआ. सार्वजनिक क्षेत्र की यह पहली कंपनी थी. 1 जून 1948 को पुणे से अहमदनगर के रुट में राज्य की पहली बस दौड़ी. इसके बाद महाराष्ट्र राज्य का गठन हुआ और महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन अस्तित्व में आया. लेकिन आज तक इसकी बस कोल्हापुर जिले के काजिर्णे गांव तक नहीं पहुंच पाई. 'गांव जहां एसटी और सड़क जहां एसटी' यह नारा ही रह गया.
डिजिटल इंडिया है भविष्य, पर वर्तमान में तो चौथी के बाद स्कूल तक अदृश्य
कोल्हापुर जिसे में चंदगढ़ तालुका का काजिर्णे गांव हजार से डेढ़ हजार लोगों का गांव है. इस गांव में काजिर्णे और म्हालुंगे की ग्रुप पंचायत है. इस गांव में चौथी कक्षा तक के लिए ही स्कूल है. इसके बाद बच्चों को पढ़ने के लिए हिंडगांव, चंदगड और नागनवाडी जाना पड़ता है. लेकिन वहां जाने के लिए बस नहीं है, इसलिए पढ़ाई इनके बस नहीं है. चौथी तक के बाद कई विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ देते हैं. पीएम मोदी आज लाल किले के भाषण में बोल रहे थे मेडिकल एजूकेशन से लेकर इंजीनियरिंग और अन्य क्षेत्रों की शिक्षा में डिजिटलाइजेशन ही भविष्य है.
सूरज उगने पर ही गांव से जाना, शाम ढलने से पहले ही वापस आना
पढ़ने के लिए बाकी गांवों तक जाना हो तो बेलगांव-वेंगुर्ला मार्ग पर दौड़ने वाली बस गांव के एक छोर के पास हिंडगांव फाटा से निकल जाती है. जिनमें आसमान उठा कर भी पढ़ने का जज़्बा है, उन्हें यहां बस पकड़ने के लिए चार-पांच किलोमीटर तक रोज पैदल चल कर आना-जाना कोई ज्यादा मुश्किल काम नहीं लगता है. लेकिन शाम होने से पहले किसी भी हालत में लौट आना पड़ता है क्योंकि पास में ही घाटियां और जंगल हैं. इसलिए जंगली सूअर, भालू और हाथी कभी भी आ जाते हैं.
अधिकारी अपने दे-ले में खोए रहे, गांववाले भी सोए रहे
अधिकारियों से सवाल करने पर उनका कहना है कि गांव तक बस पहुंचने के लिए यह जरूरी है कि ग्राम पंचायत इसके लिए आवेदन दे. लेकिन काजिर्णे-म्हालुंगे ग्रुप ग्राम पंचायत ने कभी ऐसा किया नहीं. इसलिए गांव तक बस आई नहीं. बस तो छोड़िए जनाब, दाह संस्कार के लिए गांव में अब तक श्मशान भूमि तक नहीं है. किसी परिवार में कोई मर जाता है तो वे लोग अपनी-अपनी जमीन में दाह संस्कार के कर्म पूरे करते हैं.
अमृत 9 अमीरों में बंट रहा, बाकियों का मन अमृत मंथन देख ललच रहा
जी हां, देश में लोग एंटीलिया में भी रहते हैं, देश में लोग काजिर्णे में भी रहते हैं. देश में लोग वैसे भी जीते हैं, देश में लोग ऐसे भी जीते हैं. देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, अमृत तो देश की आबादी में से सिर्फ 9 अमीरों पर ही बरसा जा रहा है. बाकियों को बस अमृत मंथन ललचा रहा है. बता दें कि देश की आधी आबादी के बराबर की संपत्ति आजादी के 75 सालों बाद आज सिर्फ 9 अमीरों के पास है.
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